अध्यात्म-एवं-दर्शन

अस्तित्व की उठान, सौन्दर्य का उन्मेष और नीति के नूपुर

डॉ मधु कपूर के पिछले लेख में आपने  जिस तरह की दुविधाओं का सामना किया था, वो इस लेख में भी जारी हैं। पिछले लेख का प्रश्न कि मुझे अच्छा क्यों बनना है, इस बार भी कुछ दूर तक तो हमारे साथ चल रहा है और इस बार इस प्रश्न का उत्तर अस्तित्ववादी डेनिश दार्शनिक Søren Kierkegaard  के माध्यम से खोजा जाएगा।

अच्छा बनने की कठिनाइयाँ - दर्शनशास्त्र की दुविधाएं

डॉ मधु कपूर के इस लेख में आप उन दुविधाओं पर भी चर्चा देखेंगे जिनसे आप अपने जीवन में शायद कभी न कभी रु-ब-रु हुए होंगे, मसलन कभी-कभी तो हम यहाँ तक सोचते हैं कि मुझे अच्छा क्यों बनना है। या फिर यह कि किन परिस्थितियों में झूठ बोलना स्वीकार्य होगा। फिर इस लेख में ऐसे मुद्दे भी चर्चा में आते हैं कि जैसे जीवन मूल्य क्या होते हैं। उत्तर भी मिलता है कि मूल्य वह मान्यताएँ है जो हमें टूटने नहीं देती, चाहें कितने ही दुर्दिन क्यों न झेलने पडें। बहरहाल, अभी हम आपको बिना विलंब के लेख प्रस्तुत कर रहे हैं। 

Hanuman Mahaprabhu: the Merciful and Compassionate Guru

As we approach Hanuman Jayanti on Saturday, April 12th, we are delighted  to present an insightful piece by Tish Malhotra. In his article, Malhotra delves into the multifaceted significance of Lord Hanuman, exploring his relevance as an ideal for the youth—a perspective famously highlighted by Swami Vivekananda. Hanuman's qualities of unwavering devotion, strength, courage, and humility resonate deeply across generations. This article is a fitting offering by Tish Malhotra to the spirit of Hanuman Jayanti.

 

आखिर सुन्दरता ही दुनिया का त्राण करेगी !

सौंदर्यशास्त्र शृंखला में डॉ मधु कपूर के इस चौथे लेख में आप दोस्तोवस्की के इस प्रसिद्ध कथन की जांच करेंगे कि सौंदर्यबोध ही दुनिया को बचा सकता है। आज पूरी दुनिया में जिस तरह का नफरती माहौल छाया हुआ है, उसमें सौंदर्यबोध जैसी सुकोमल अनुभूति का ज़िक्र मात्र भी एकदम असहज सा लगता है। लेकिन यह भी सच है कि जब भी मनुष्यता को इस नफरती माहौल से निजात पानी होगी, तभी सौन्दर्यबोध जैसी अनुभूतियाँ अपने आप प्राथमिकता पा लेंगी। 
 

सुन्दर ही सत्य:सत्य ही सुन्दर - सौन्दर्यशास्त्र शृंखला का तीसरा लेख

सौंदर्यशास्त्र का तीसरा लेख सुंदर ही सत्य और सत्य ही सुंदर इस बात की जांच करता है कि 'सत्य' एवं 'सौन्दर्य' के बीच तालमेल कैसे किया जाए। प्रश्न यह भी है कि रसानुभूति का सत्य के साथ समायोजन कैसे किया जाए? फिर विज्ञान से जुड़े प्रश्न भी तो हैं। आइए, इन सभी प्रश्नों पर आप भी विचार कीजिए। 

 

अनहद राग रस - सौन्दर्यशास्त्र शृंखला का दूसरा लेख

दर्शनशास्त्र शृंखला का दूसरा लेख सौन्दर्यबोध कैसे होता है या रसानुभूति कैसे होती है - इस दार्शनिक प्रश्न पर भी विचार करता है। क्या हमारी भावनात्मक प्रवृत्ति ही वस्तु में सौंदर्य का संचार करती है या फिर वस्तु में अपना सौन्दर्य होता है। आपको ऐसे प्रश्नों का सीधा उत्तर मिले या नया मिले किन्तु ये लेख आपको ऐसे गूढ़ विषयों की गहराई तक ले जाएंगे और वहाँ पहुँच कर आप अपनी मति के अनुसार उस उत्तर तक पहुँच जाएंगे जो आपको जँचेगा। 

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