हो सकता है कि पहली नज़र में योगेंद्र दत्त शर्मा के इन गीतों में आप निराशा के स्वर देखें लेकिन जल्द ही आपको अहसास हो जाएगा कि इनमें निराशा नहीं बल्कि क्षोभ है, दुःख है और साथ ही दूर कहीं एक टिमटिमाती आशा की लौ भी है. तभी तो महाभारत में कौरव सभा में द्रौपदी के चीर-हरण की कथा कहने के बाद वह ललकार कहते हैं कि "चक्र घूमेगा कभी तो......" और या फिर अगले गीत 'त्रासदी' में वह गाते सुनाई देते हैं, "दूर कहीं है क्षीण रोशनी टिकी हुई जिस पर निगाह है"












