‘‘बारूद के इक ढेर पर बैठी है ये दुनिया.........’’ ध्यान नहीं किस कवि की ये पंक्तियाँ हैं जो आज मानस पटल पर बार-बार उभर आती हैं। दो दिन पहले कश्मीर में हुई अमानवीय दर्दनाक दुर्घटना यूं तो कहीं भी, कभी हो सकती है चाहे सरहद हो या शहर की गलियां होंलेकिन कश्मीर पिछले कुछ वर्षों से जिन हालातों से गुज़र रहा है, वो ऐसे हैं कि बस उसके बारे में सोचते ही मन उदास हो जाता है।








