चक्र घूमेगा कभी - योगेंद्र दत्त शर्मा के चार गीत
हो सकता है कि पहली नज़र में योगेंद्र दत्त शर्मा के इन गीतों में आप निराशा के स्वर देखें लेकिन जल्द ही आपको अहसास हो जाएगा कि इनमें निराशा नहीं बल्कि क्षोभ है, दुःख है और साथ ही दूर कहीं एक टिमटिमाती आशा की लौ भी है। तभी तो महाभारत में कौरव सभा में द्रौपदी के चीर-हरण की कथा कहने के बाद वह ललकार कहते हैं कि "चक्र घूमेगा कभी तो......" और या फिर अगले गीत 'त्रासदी' में वह गाते सुनाई देते हैं, "दूर कहीं है क्षीण रोशनी टिकी हुई जिस पर निगाह है"।
योगेंद्र दत्त शर्मा के चार गीत
1 -चक्र घूमेगा कभी तो.....
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एक सहमी, क्षुब्ध लड़की
पूछती है प्रश्न अक्सर
देश है यह या किसी
धृतराष्ट्र की कौरव-सभा है !
केश पकड़े द्रौपदी को
खींच लाया जा रहा है
निर्वसन करके उसे
उत्सव मनाया जा रहा है
दांव पर किसने लगाया
यह न कोई जानता है
कौन जाने यह कि कब
किसने, कहां खेला जुआ है !
भीष्म चुप हैं, द्रोण चुप
धृतराष्ट्र चुप हैं, चुप विदुर हैं
मौन हैं आकाश-धरती
मौन सारे नगर-पुर हैं
आर्त, कातर चीख हैं
असहाय पांचाली भयातुर
लुट रही है लाज पल-पल
कृष्ण भी तो लापता है !
ये दुशासन, कर्ण, दुर्योधन
अजब उन्माद में हैं
भीम, अर्जुन जड़
नकुल, सहदेव.. सब अवसाद में हैं
स्तब्ध, विस्मित, त्रस्त, व्याकुल
आत्मविस्मृत हैं युधिष्ठिर
है विकट संताप मन में
जो निरंतर बींधता है !
और कब तक याज्ञसेनी
धैर्य की देगी परीक्षा
क्या किसी विस्फोट की ही
कर रहे हम सब प्रतीक्षा
भूल बैठे हैं सभी क्या
द्रौपदी ज्वालामुखी है
अग्नि से जन्मी हुई यह
स्वयं पावकसंभवा है !
क्या असंभव है कि वह
प्रतिकार हो कोई संजोये
कल दुशासन के लहू से
स्यात् अपने केश धोये
क्या न संभव है कि कल कोई
महाभारत मचे फिर
डर नहीं लगता किसी को
चल रही कैसी हवा है !
एक दुष्क्रम है कि जो
अविराम गति से चल रहा है
क्षेम की करुणा-धुरी को
अस्मिता को छल रहा है
याज्ञसेनी कल विकल थी
अब भयातुर निर्भया है !
चक्र घूमेगा कभी तो
यह दुखी की बद्दुआ है !
2 - त्रासदी
गुजर रही है महात्रासदी
भीतर का हंसा गवाह है !
उमड़ रहे भावातिरेक में
नीर-क्षीर वाले विवेक में
निष्प्रभ चेहरों पर उदासियां
अंतस् में उठती कराह है !
शिथिल हो गई हर हलचल है
मन में बेबस उथल-पुथल है
सतत यातना की चक्की में
पिसा जा रहा बेगुनाह है !
भूल गये हम जीवन जीना
याद न अब घावों को सीना
ओझल मरहम, दवा न कोई
मंद पड़ा सारा उछाह है !
मृदुल भावनाएं हैं आहत
मिलती नहीं कहीं से राहत
अवसादों की दीर्घ शृंखला
घुमड़ रहा सागर अथाह है !
बिसरे सब संदर्भ पुरातन
सूख गई है धार सनातन
तीक्ष्ण गंध है ठहरे जल में
रुका हुआ निर्मल प्रवाह है !
छल-छद्मों से उगे सुभाषित
निश्छलता लगती निर्वासित
दूर कहीं है क्षीण रोशनी
टिकी हुई जिस पर निगाह है !
हम साक्षी, हम भोक्ता भी हैं
दुख के प्रथम प्रयोक्ता भी हैं
लय-छंदों में व्यक्त हो रहा
महाकाव्य का विकल दाह है !
3 - खो गए शब्दों के अर्थ
एक तुम्हीं
ठहरे हो, बंधु, सही
सारा इतिहास गलत हो गया !
झूठी पड़ गई हर परंपरा
मिथ्या दृष्टांत सभी हो गये
जनश्रुतियां, किंवदंतियां हुईं
सब उत्सव, पर्व कहीं खो गये
लोककथा
काल्पनिक विधा हुई
मन का विश्वास गलत हो गया !
निराधार हो गये मुहावरे
झुठला दी गईं सभी सूक्तियां
कीर्तिमान केवल तुम गढ़़ रहे
हैं निरस्त पिछली उपलब्धियां
तुमने क्या
अभिमंत्रित कर दिया
सबका अभ्यास गलत हो गया !
तुमने जो सूत्रवाक्य कह दिया
आप्तवचन अर्थहीन हो गये
सद्य को पुरातन उच्चार कर
तुम सहसा चिर नवीन हो गये
कांस उगे
खिल उठे बबूल-वन
सिर्फ अमलतास गलत हो गया !
चमक रहा छद्म प्रखर सूर्य-सा
धुंधलाईं सच की परछाइयां
खड़ा कठघरे में असहाय-सा
चेहरे की उड़ रहीं हवाइयां
गर्वोन्नत
उद्धत उद्घोष है
भावुक उच्छ्वास गलत हो गया !
निश्छल अहसास गलत हो गया
निर्जल उपवास गलत हो गया
मोहक आभास गलत हो गया
छवि का विन्यास गलत हो गया
पतझर को
मिल गई वरीयता
मादक मधुमास गलत हो गया !
शब्दों का मूल अर्थ खो रहा
यह कैसा बीज समय बो रहा
लयहीना भाषा की दीनता
क्षुब्ध छंद कंधों पर ढो रहा
श्लेष, यमक
उपमा के सामने
एक अनुप्रास गलत हो गया !
सही सिद्ध हुई
एक लघुकथा
वृहद उपन्यास गलत हो गया !
4 - बंधु कुछ तो बोल
घोल, मौसम की शिराओं में
हरापन घोल !
बंधु! कुछ तो बोल !
मंच की कंठस्थ
गूंगी भूमिकाओं में
भर सके, तो आग भर
ठंडी हवाओं में
ऊंघते नेपथ्य की आंखें
जरा तो खोल !
बंधु! कुछ तो बोल !
ले रहा जमुहाइयां
हर ओर सन्नाटा
एक वहशी यातना का
चुभ रहा कांटा
देर से बदला नहीं
इतिहास का भूगोल !
बंधु! कुछ तो बोल !
पर्वतों की देह पर
शिकनें खिंचीं गहरी
थरथराती बस्तियों में
हिमनदी ठहरी
है प्रतीक्षा में किसी
अक्षांश पर भू-डोल !
बंधु! कुछ तो बोल !
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लेखक कवि और गीतकार हैं। कई लब्धप्रतिष्ठ पत्र-पत्रिकाओं में गीत-नवगीत, ग़ज़ल, कहानी, निबंध व आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन से रचनाओं का प्रसारण; हाल ही में दो उपन्यास प्रकाशित हुए हैं जिनके बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
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