हमारी वेब-पत्रिका को अजंता देव की कविताएँ इस बार शायद कई माह के अंतराल के बाद मिली हैं. पांच मिलीं तो हमने दो बचाकर रख लीं कि उन्हें कुछ दिनों बाद प्रकाशित करेंगे. ये होती ही इतनी अच्छी हैं कि सब एक साथ 'खर्च' कर देने को जी नहीं चाहता. हमें एक बार फिर यह बताने की ज़रूरत पड़ रही है कि एक बार अजंता देव ने अपने पत्र में हमें लिखा था, "ये कविताएं स्वयं से भी संवाद हैं। कविता के अलावा मेरा संवाद और भला कैसे होगा।" सहृदय पाठक भी कविता के साथ उनके संवाद का लाभ उठाएं!












