डिज़रिडू - संस्कृतियों के मिलन की एक मार्मिक प्रेम कथा
आप पायेंगे कि अनीता गोयल की नई कहानी एक अद्भुत प्रेम कथा है जिसमें कम से कम तीन संस्कृतियों का आपसी मिलन है . जर्मन मूल का बेन ऑस्ट्रेलियाई प्रान्त तस्मानिया की राजधानी होबार्ट में जन्मा और बड़ा हुआ है. उसके बचपन से ही कुला नाम की एक एब्रोजिन महिला (मूलनिवासिनी) बेन को बड़ा करने में उसकी माँ की सहायता करती है. बेन को वह मूलनिवासियों के बीच अत्यंत लोकप्रिय वाद्ययंत्र डिज़रिडू भेंट करती है. फिर भारतीय मूल की एक लड़की बेन के जीवन में आती है. इस मार्मिक कथा को आप एक बार आरम्भ करेंगे तो एक सांस में पढ़ जायेंगे.
डिज़रिडू - संस्कृतियों के मिलन की एक मार्मिक प्रेम कथा
अनीता गोयल
ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण में एक छोटा-सा, लेकिन बेहद सुंदर और अद्भुत द्वीपीय राज्य है—तस्मानिया। चारों ओर प्राचीन होते हुए भी युवा दिखाई देनेवाले हरे पहाड़ों से घिरा समुद्र, पेड़-पौधों के जीवंत रंगों की छटा, तरह-तरह के फूल, और विशेष रूप से नीले और जामुनी फूलों से लदे गुच्छेदार वृक्ष—और उन पर बहती ताज़ा हवा के झोंके, नासिका में गुलाबों की सुगंध भरकर तन-मन को मुग्ध कर देते हैं। पहाड़ों के बीच फैले घास के सुंदर मैदान पूरे आकर्षण के तीर चलाकर बस जाने का निमंत्रण देते हैं। किसी पगडंडी पर निकल जाएँ, तो बीच-बीच में गिरे हुए पेड़ दिखाई देंगे, जो समय के साथ प्राकृतिक रूप से मिट्टी में मिल जाने की प्रतीक्षा में होते हैं। उनके आँचल में नई काई और नए पौधे जन्म लेते हुए मुस्कराते प्रतीत होते हैं। यहाँ की हवा इतनी शुद्ध है कि हर साँस में ताज़गी का अनुभव होता है। ठंडा और निर्मल पानी मुँह में जाते ही अमृत का आभास देता है और साथ ही यह अनुभूति भी कराता है कि प्रकृति की हम पर कितनी अपार कृपा है। तस्मानिया के जंगलों में दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं देता—बस पहाड़, नदियाँ, जंगल और घास के मैदान।
कहते हैं कि यहाँ के मूल निवासी लगभग पैंतीस हज़ार वर्षों से इस भूमि पर निवास कर रहे थे। उनका प्रकृति के साथ एक गहरा आत्मिक संबंध था। वायु, जल, धरा, आकाश, वृक्ष, पहाड़, पठार, जंगल, पेड़-पौधे, फूल, जंगली जानवर — अर्थात् धरती के हर कण और हर जीव के साथ उनकी आत्मा का तार जुड़ा हुआ था। वे इन सबसे संवाद कर सकते थे।
प्रकृति तो सबका इतिहास जानती है, पर यहाँ के मूल निवासी (एबोरिजिन) आज भी अपनी कहानियाँ श्रुति परंपरा के माध्यम से — संगीत और नृत्य के जरिए — आपस में और प्रकृति के साथ साझा करते हैं।
करीब दो सौ वर्ष पहले 1830 के आसपास, जब यूरोप के प्रवासियों ने यहाँ प्रवेश किया, तो उन्होंने यहाँ रहने वाले मूल निवासियों का क्रूरता से नरसंहार किया और देश के तथाकथित अपराधियों के लिए कई जेलें बनाई। इन आधिपत्यवादियों के अत्याचार और आतंक की कहानियाँ आज भी सुनकर घाटियों में शून्यता छा जाती है। बाद में यहाँ से अधिकांश ब्रिटिश अधिकारी “सोने की दौड़” में मेलबर्न चले गए। अधिकतर तथाकथित अपराधी यहीं रह गए, और तस्मानिया की धरा ने अपना आँचल फैलाकर न केवल उन्हें, बल्कि यहाँ के मूल निवासियों की आत्मा पर भी मरहम लगाया। कहा जाता है कि तस्मानिया की वायु और जल विश्व में सबसे अधिक शुद्ध हैं। यहाँ बसे लोगों का हृदय भी करुणामय है और छल-कपट से परे। शायद यहाँ की शुद्ध वायु और जल के प्रभाव से ही ऐसा होता हो।
हमारी कहानी के नायक बेन मान के दादा-दादी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नए जीवन की तलाश में जर्मनी से होबार्ट आए थे। उन्होंने ब्रूनी द्वीप पर कुछ सस्ती खुली ज़मीन लेकर भेड़-बकरियाँ और मुर्गियाँ पालनी शुरू कीं। चारों ओर खुला जंगल, ज़हरीले साँप, कंगारू, वॉम्बैट, एकिडना और लोमड़ियों के बीच उन्होंने अपना जीवन आरंभ किया। यह पशुपालन बेन के पिता जॉर्ज और माँ लिली को विरासत में मिला, जिसे उन्होंने बख़ूबी संभाला। लिली घर से एक छोटी कैफ़े भी चलाने लगी। बेन, जॉर्ज और लिली का इकलौता बच्चा था।
जब बेन एक-दो वर्ष का रहा होगा, तब कुला नाम की एक एबोरिजिन महिला जाने किन वनों से निकलकर लिली के कैफ़े में आने लगी। वह कभी अपनी भाषा में, तो कभी अंग्रेज़ी में बातें करती रहती। बेन की माँ अत्यंत सरल हृदय की थीं। वह कुला को अक्सर चाय-कॉफ़ी और कुछ खाने को देतीं। कुला प्रसन्नता से सब लेती, गाते-गुनगुनाते फिर जंगलों में विलीन हो जाती। वह बेन को अपना लुन्नेने कहती और गुनगुनाकर कहती,
“जब तू बड़ा होगा, तेरे लिए एक सुंदर पियाली आएगी।”
लिली कैंसर से पीड़ित थीं और प्रायः बीमार रहती थीं। बेन का अधिकांश बचपन कुला के सान्निध्य में बीता। वह तस्मानियाई एबोरिजिन भाषा के कई शब्द समझने लगा। कुला का नृत्य और संगीत उसे अत्यंत प्रिय था। बेन के तेरहवें जन्मदिन पर कुला ने उसे पाँच फुट लंबा एक डिज़रिडू भेंट किया और उसे बजाना भी सिखाया। डिज़रिडू एबोरिजिन निवासियों का अत्यंत प्राचीन वाद्य यंत्र है। स्थानीय यूकेलिप्टस वृक्ष की लकड़ी से बना यह यंत्र लंबी शहनाई जैसा होता है, जिसका एक सिरा ज़मीन पर और दूसरा मुँह की ओर रखकर बजाया जाता है।
रंग-बिरंगी धारियों और बिंदुओं से सजे डिज़रिडू पर बेन ने धीरे-धीरे अपनी नासिका और मुँह की श्वास का नियंत्रण पा लिया। कभी-कभी वह भभूत लगाए, शिव का रूप धारण कर डिज़रिडू बजाता और “धू-धूँ-धू-धू-ध्धू-ध्धु-ध्दु …” की मोहक ध्वनि पूरे वातावरण में गूँज उठती। तभी कुला लहराती हुई लिली की कैफ़े पर प्रकट हो जाती। उसके हाथों में स्वयं की तराशी हुई आठ-आठ इंच की दो चपटी लकड़ियाँ होतीं—क्लैप-स्टिक्स। उन पर रंगों से बनी लहरदार धारियों में उसके पूर्वजों, उसके जीवन और जंगलों की कथाएँ छिपी होतीं। कुला उन्हें अत्यंत कुशलता से बजाती। पूरी सृष्टि मानो संगीत में झूम उठती और लिली, बेन व कुला घंटों नाचते रहते।
कुला मनमौजी थी—कब आएगी, कब जाएगी, यह केवल उसके मन पर निर्भर था।
बेन आठवीं कक्षा तक स्कूल गया। पिता के साथ काम करना उसे अच्छा लगता था। काम का अनुभव और लोगों से बातचीत ही उसकी वास्तविक पाठशाला थी। स्केटिंग, सर्फ़िंग और नाव चलाना उसने द्वीप से विरासत में पाया। फिर जब वह लगभग सोलह वर्ष का होगा कि तो उसकी माँ का कैंसर से देहांत हो गया। माँ के निधन के बाद दुखी पिता ने एक दिन उससे कहा, “यह घर और सब कुछ अब तुम संभालो। मैं कुछ समय के लिए भ्रमण पर जा रहा हूँ। मुझे मन का परिवर्तन चाहिए। तुम अपना जीवन अपने ढंग से शुरू करो। शुरुआत कठिन होगी, पर इस पीड़ा से हमें दोनों को बाहर निकलना होगा।”
माँ नहीं रहीं, पिता ब्रूनी द्वीप छोड़कर चले गए और जाने क्यों कुला का आना भी बंद हो गया। शायद प्रकृति बेन को अकेलेपन में भी प्रशिक्षित करना चाहती थी। लेकिन बेन घबराने लगा। तस्मानिया के बादलों, हवा, पत्तों, फूलों और घाटियों में उसे कुला की गुनगुनाहट तो साफ़ सुनाई देती थी लेकिन कुला कभी दिखाई नहीं देते थी। वह उसे खोजने को व्याकुल हो उठा। उसने डिज़रिडू के माध्यम से भी कुला को पुकारा, पर वह नहीं लौटी। अपनी दोनों माओं और पिता के चले जाने से आहत और पीड़ित बेन ने अपनी भूमि और पशु पट्टे पर दे दिए और स्वयं भी निकल पड़ा - माँ तो स्वर्ग चली गईं लेकिन शायद कुला ही कहीं मिल जाए। तस्मानिया तो चारों तरफ़ समुंदरों से घिरा है। कुला अपने वंशजों की धरती तो नहीं छोड़ेगी, हो सकता है कि ब्रूनी द्वीप से निकल कर होबार्ट या अन्य किसी स्थान गई होगी।
बेन अठारह वर्ष का हो चला था। लंबा क़द, तीखे जर्मन नैन नक्श, कर्मठ शरीर के साथ साथ, उसके बातचीत में पिता की तहज़ीब थी। उसका व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था। तस्मानिया पर्यटकों के लिए आकर्षण का स्थान है, सो बेन को पर्यटक केंद्रों में, गाइड की नौकरी आसानी से मिलने लगी। पर्यटकों को घुमाते हुए, उसे प्रलोभन रहता कि कहीं कुला दिख ही जाये। होबार्ट से स्ट्रॉहन, क्रैडल माउंटेन, कोल्स बे, लॉनसेस्टन कहाँ कहाँ उसने जीवन के दस साल बीता दिए, न कुला मिली और ना ही आसक्ति गई। मूल निवासियों की बस्ती, नाच और गाना उसे बेहद पसंद था। वह इन में जाकर पूछता, “कुला को जानते हो क्या?” वो सभी हंस देते। किसने कुला को देखा ……वो तो लहराता बादल है, कहाँ रहेगा? उस तक पहुँचना मुश्किल है। आख़िर में कोल्स बे की पर्यटक क्रूज या छोटे जहाज की यात्रा कंपनी, बेन को भा गई। गाइड का काम तो वह पिछले कुछ वर्षों में सीख ही रखा था, इसलिए उसे तुरंत नौकरी मिल गई और उसने यहीं बसने का फैसला किया। कुछ वर्ष यूँ ही निकल गए। हर शाम समुंदर के पास फिश एंड चिप्स खाना और समुद्र को निहारते रहना उसे बहुत अच्छा लगता था।
हर रोज़ की तरह बेन ने अपने छोटे जहाज़ की धुलाई की। पौने ग्यारह बजे की यात्रा शुरू ही होने वाली थी। अचानक मौसम बदला और समुंद्र ने भी करवट बदली। बेन और साथियों ने रेडार पर मौसम के हाल देखे कि क्या यात्रा हो सकती है कि नहीं। जहाज़ चालक ने कहा, हम शुरू करते है, और देखते है कि सागर हमे कहाँ तक दक्षिण महासागर में जाने देगा। यात्री क्रूज के पैसे भर चुके थे और मौसम तो तस्मानिया में एक दिन में दस बार भी बदलता है। बेन की नज़र जहाज़ पर पड़े अपने डिज़रिडू पर पड़ी और उसके भीतर एक अजीब लहर दौड़ गई जो श्वास के साथ मस्तिष्क तक गई। उसने अपने भीतर एक अजीब गति को महसूस किया, रुक कर डिज़रिडू को स्नेह से थपथपाया, “मेट, आई विल प्ले यू इन द इवनिंग, इट्स वर्क टाइम”। और उसने ख़ुद को काम पर केंद्रित किया। नियमों के हिसाब से उसने बाहर जाकर घोषणा की कि “आज सागर कुछ उग्र है, इसीलिए यात्रा कुछ असहज हो सकती है। आप चाहे तो अपनी राशि वापस ले सकते है। हम आज एक घंटा देरी से निकलेगे”।
जी हाँ, डिज़रिडू की बदौलत बेन की आवाज़ ऊँची, साफ, काफ़ी औपचारिक और पेशेवर थी। उसका काम जहाज़ पर सूचना और विवरण देना था। यात्रा में आधा घंटा था, सो बेन जहाज़ के ऑफिस में संभावित पैसे वापिसी के लिए आ गया। जहाज़ के ऑफिस में काफ़ी लोग थे जो ठंड से बचने के लिए अंदर आ गए थे। बेन को बातचीत करना पसंद था – वो लोगो में घुलने मिलने लगा। उसने देखा एक परिवार अलग सा खड़ा है और सूचना वाले पोस्टर पढ़ रहा है। बेन ने वहाँ जाकर सबको हेलो की तो उसकी नज़र पतली सी युवा लड़की पर गई – नज़र क्या गई, उसके विचारों का ताँता ही टूट गया। बेन ने परिवार से पूछा कि क्या आप लोग इस क्रूज पर है या राशि वापस चाहते है। लड़की ने झिझक से कहा, “हम यहाँ एक दिन ही है, और हमे क्रूज का नहीं पता था – क्या आज की कोई टिकट है”।
बेन कभी सर्फ़िंग या तैरने में समुंदर की लहरों में इतना नहीं डूबा जितना इस आवाज़ की मधुरता में डूबने लगा। जैसे डॉल्फ़िल नीचे से ऊपर कूद कर आती है, उसका मन डुबकी सी लगा वापस आया। उसने तुरंत लड़की को कहा, “ अगर आप जाना चाहती है तो मैं आपके लिए चेक कर सकता हूँ”। लड़की ने धीरे से कहा, “जी, हमे चार टिकट चाहिए”। बेन ने कंप्यूटर डेस्क पर जाने से पहले परिवार पर फिर से एक दृष्टि डाली। साथ खड़ा युवक कुछ परेशान और नाराज़ सा लग रहा था। लड़की शांति से गरिमा बनाए रखने के लिए साड़ी ठीक कर रही थी। बाहर की वर्षा से उसके गालो पर कुछ बूंदे थी। ऐसी कशिश बेन को पहले कभी न महसूस हुई। बेन ने चेक किया और परिवार के पास जाकर बताया कि टिकट है और एक सो बीस डॉलर की एक टिकट है। लड़की ने ये सूचना परिवार को भारतीय भाषा में बताई। परिवार के हाव भाव से बेन तुरंत समझ गया कि उनके लिए टिकट की क़ीमत बहुत ज़्यादा है।
जाने बेन को क्या सूझा कि उसने तुरंत लड़की से कहा कि अगर आप आज जाते है तो बची टिकटों पर मैं आपको पच्चास प्रतिशत छूट दे सकता हूँ। लड़की ने परिवार को छूट के बारे में बताया और चर्चा से जरा छिटक कर खड़ी हो गई। बेन लड़की के पास गया और पूछा , “ मैं आज आपका गाइड हूँ और ब्रूनी आइलैंड से हूँ।आर यू गायस फ़्रॉम इंडिया”। इससे पहले वो उत्तर देती, परिवार के युवक ने टिकट के लिए सहमति दी और बड़ी उम्र वाली महिला ने लड़की को अपने नज़दीक खड़ा होने को कहा। बेन ने कहा कि उसे टिकट के लिए सबके नाम चाहिए। परिवार में अंग्रेजी केवल लड़की को ही आती थी। लड़की ने जाकर डेस्क पर नाम दिए - “प्रकाश सिन्हा, अजय सिन्हा, रजनी सिन्हा एंड माइसेल्फ पिया सिन्हा”। उसे भी मालूम नहीं कि उसने अपना नाम क्यो माइसेल्फ के साथ बताया। शायद उसे भी बेन से बात करना उतना ही अच्छा लगा हो। इतने में ही खड़े युवक ने पैनी निगाह से देखा और बिजली की गति से पास आकर बोला, “टिकट हो गया तो चले”। बेन और उस लड़की का वार्तालाप आगे बढ़ा ही नहीं।
बेन ने जहाज़ में यात्रा का विवरण देना आरम्भ किया। आज आशा करता हूँ कि सागर की लहरें साथ देगी। हम फ़्रेसिने नेशनल पार्क के पास है। क्रूज के चारों और समुंद्र, खाड़ी, पहाड़ और जंगल फैले है। यह क्रूज तस्मान सागर से निकल कर दक्षिणी महासागर की तरफ़ जाएगा। इस क्रूज से आप वाइन ग्लासबे के सुंदर दृश्य, नीले पानी, ऊँची चट्टानों, हरी भरी पहाड़ियों के साथ साथ समुद्री जीव जैसे कि डॉलफिन, सील और अगर हम क़िस्मत वाले हुए तो व्हेल भी देख सकते है। आज समुद्र कुछ अशांत है, आप को अगर जरूरत है तो हम इससे उत्पन्न होने वाली मतली को रोकने के लिए अदरक गोली भी दे सकते हैं। जब बेन ये सब घोषणाएँ कर रहा था तो उसकी नजरें बार-बार पिया पर टिक रही थीं और वह समझ नहीं पा रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है। पिया भी बीच-बीच में बेन की ओर देख रही थी।
बेन उससे बातचीत करना चाहता था। उसने अपनी जेब से कुछ टैबलेट निकाले और सीधे उसके पास गया। “क्या तुम्हें कुछ चाहिए?” उसने पूछा। बेन के पिया के पास आने से युवक काफ़ी नाराज़ हुआ और उसने पिया को बीच में बिठा लिया। बेन ने पिया से कोई असभ्य बात या ज़्यादा बात नहीं की थी पर परिवार को शायद दोनों के बीच नज़रों का मिलना चुभ रहा था। बेन ने देखा कि लड़की के साथ कठोर शब्दों में बातचीत हो रही थी और वह डर कर खिड़की के पास बैठ गई। फिर उसने बेन की तरफ़ न देखा। बेन ने अचानक एक पेपर पर एक फोन नंबर लिखा और भोजन वितरण के समय पिया के हाथ में खिसका दिया। बेन के साथी स्टीव ने उसे चेतावनी दी कि यह करना ठीक नहीं है और गंभीर समस्या न खड़ी हो जाये। बेन ने कहा,”नहीं, मुझे लग रहा कि लड़की के साथ कुछ गड़बड़ है, मैंने तो उसकी मदद की है”। स्टीव ने कहा, “ तुम संभल कर रहो, मुझे लग रहा है कि मदद की उसे नहीं तुम्हें ज़रूरत है”।
क्रूज समाप्त हुआ। स्टीव ने अपने सीनियर्ज़ को इस घटना के बारे में और बेन के व्यवहार के बारे में बताया। पूछताछ में यह भी पता चला कि उस परिवार की टिकेट के आधे पैसे बेन ने ही भरे थे। बेन की क्रूज की नौकरी पर अस्थाई रोक लगा दी गई और कहा गया कि उसे प्रोफेशनल ट्रेनिंग दी जाएगी। इसके बाद बेन और स्टीव साथ कुछ बियर पीने गए। बेन ने बताया कि लड़की की गर्दन पर चोट के निशान थे तो उसने वूमेन हेल्पलाइन का नंबर उसे दिया है। स्टीव ने कहा, “मुझे तुम्हारे व्यवहार पर संदेह नहीं है पर हम अलग संस्कृतियों के बारे में ज़्यादा नहीं जानते सो हमे हमेशा पेशेवर और सतर्क रहना चाहिए”।
बेन ने शाम में दो घंटे बहुत ही आलौकिक डिज़रिडू बजाया। उसने रात में नेत्रों को बंद किया कि पिया दिखेगी पर कुला दिखी और मुस्कुरा कर बोली, “पियाली”। बेन को सारी रात नींद नहीं आई। अगले दिन बेचैनी से पूरा कोल्स बे घूम डाला, न पिया और न ही कुला दिखी। बेन अब भारत के बारे में पढ़ने लगा। ऑनलाइन हिंदी भी सीखने लगा। पिया के बारे में सोचता, कि क्या साथ वाला युवक उसका पति होगा। भारत में तो विवाह बहुत ही सोच समझ कर होते है। क्या पिया सिन्हा का फेस बुक या अन्य कोई सामाजिक मीडिया पर अकाउंट होगा। क्या पिया उस नंबर पर फ़ोन करेगी। चार साल निकल गए उसका अब कोल्स बे से मन उठ गया। पिया का अब मिलना असंभव ही है, तो क्यो न ब्रूनी द्वीप जाकर माँ की कैफ़े चलाई जाये। शायद वहाँ कुला कभी आ ही जाये। बेन घर लौट चला। कैफ़े पर हर भारतीय परिवार से उनकी संस्कृति पर बातचीत करता। शाम का डिज़रिडू वादन ही उसका अपने और ब्रूनी द्वीप के लिए समर्पण था।
वह अब तीस से ऊपर का हो चला था पर कोई लड़की उसे पसंद ही नहीं आती थी। ब्रूनी द्वीप कैफ़े पर्यटन के समय ही व्यस्त होते है और बाक़ी समय कोई कोई स्थानीय व्यक्ति कॉफ़ी और गप शप के लिए आ जाता है। एक दिन एक कार कैफ़े पर आकर रूकी, एक औरत करीब पाँच साल की लड़की के साथ उतरी और उसने कॉफ़ी के लिए पूछा। बेन के भीतर फिर से एक रोमांच भर आया। दोनों ने एक दूसरे को ध्यान से देखा। औरत ने कहा, “बेन?” और उत्तर की प्रतीक्षा के बिना ही वो बेन के गले लग गई। कैफ़े में बैठे अन्य पर्यटक आश्चर्य से देखने लगे। बेन ने उससे कहा, “वुड यू लाइक टू स्टे फॉर द डिनर विद योर लिल प्रिंसेस ”? और फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ।
उस दिन बेन का दिया फ़ोन नंबर, पिया ने अपने पर्स में दबा लिया था। शादी के बाद उसे अक्सर पति की मार और सास के अति कड़वे शब्दों का सामना करना पड़ता था। उस दिन क्रूज के बाद उसकी इतनी पिटाई हुई कि अस्पताल तक जाना पड़ा। वही मौका मिलते ही उसने हेल्पलाइन पर फ़ोन किया। किस्मत से होबर्ट अस्पताल की नर्स को उसके जख्म देखकर दया आ गई। उसने पिया के लिए आश्रय की प्रार्थना भर दी। पिया की प्रार्थना सरकार ने स्वीकार कर ली और और उसके परिवार को उसके बिना ही वापस आना पड़ा। पिया शिक्षित थी, सुंदर थी पर ससुराल में कभी प्रेम न मिला था। कोल्स बे की क्रूज में पहली बार पिया ने अपने लिए किसी की आँखों में प्रेम, स्नेह और सम्मान देखा था और अपने लिए जीने की इच्छा उसमे जागृत हुई थी। पिया ने तस्मानिया में ही रहने का निश्चय किया, यहाँ जनसंख्या कम होने से उसकी नौकरी में भी कम मुश्किलें थी। तस्मानिया में गूँजती एबोरिजिन डिज़रिडू ध्वनि ने दो सौ साल में सरकार की भी कार्य शैली बदल दी। वूमेन प्रोटेक्शन सेल ने, पिया को आत्मनिर्भर बनाया, सुरक्षा दी और बच्चे के साथ पूरा सहयोग दिया। आज पिया पूरे आत्मविश्वास के साथ अकेले अपनी बच्ची के साथ रहती है। पिछले पाँच साल से किसी डोर से खिची वो बेन को ढूँढ रही थी।
पिया का नाम अब पियाली है और बेन ने बच्ची का नाम कुला रखा है। बेन अब अपना फ़ार्म हाउस चलाता है और पियाली कैफ़े। हर शाम समुंदर की लहरें, बेन का डिज़रिडू , पियाली की कैल्प-स्टिक्स और छोटी सी कुला का अद्भुत नृत्य ब्रूनी द्वीप की सुंदर आत्मा का अलौकिक प्रतिबिम्ब है। कुछ बंधन केवल प्रेम के बंधन है, न जाति, न धर्म, न देश, न भाषा, न रिवाज़, न परंपरा - बस संगीत की ध्वनि, बस डिज़रिडू की गहरी योग ध्वनि जो केवल प्रकृति और स्वयं के अस्तित्व पर केंद्रित हो।
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अनीता गोयल, दिल्ली विश्वविद्यालय के भारती महाविद्यालय में 12 साल इतिहास पढ़ाने के बाद, मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया) जा कर बस गई। वहाँ उन्होंने विक्टोरियन स्कूल ऑफ़ लैंगुएजिज़ के प्रोग्राम के अंतर्गत कई बरस माध्यमिक स्तर पर हिंदी पढ़ाने का कार्य किया। अपने आस-पास के परिवेश के प्रति सजग उनकी रचनाएं सामाजिक संवेदना से सरोबार होती हैं।