मीडिया-मंच

मन की बात - मीडिया का सकारात्मक इस्तेमाल

आज अर्थात ३ अक्तूबर को प्रधानमंत्री का मासिक कार्यक्रम'मन की बात' की अपनी ग्याहरवीं वर्षगांठ मना रहा है। इस अवसर पर जब हमारे लेखक मित्र संजीव शर्मा ने यह लेख भेजा तो हमने उनसे चर्चा की और बताया कि लेख के कुछ बिन्दुओं से हमारी असहमति है। मसलन हम लेख की गई इस प्रस्थापना को नहीं मानते कि यह कार्यक्रम "समाज में बदलाव का एक महत्वपूर्ण जरिया बन गया है" या फिर यह कि यह कार्यक्रम दोतरफा संवाद के चलते करोड़ों लोगों के मन की बात बन गया है। 

सोशल मीडिया प्रसंग : ‘इंफ्लुएंसर’ और ‘फॉलोअर’

राजेन्द्र भट्ट के सोशल मीडिया प्रसंग का यह अंतिम लेख है. अपने पिछले दो लेखों में  वह चार प्रसंग गिनवा चुके हैं.  इस लेख में प्रस्तुत है उनका पांचवा प्रसंग जिसमें वह ‘इंफ्लुएंसर’ और ‘फॉलोअर' पर टिप्पणी कर रहे हैं. 

 

सोशल मीडिया प्रसंग जारी है

राजेन्द्र भट्ट ने सोशल मीडिया पर अपने पिछले लेख में तीन प्रसंग गिनवाए थे. आज चौथे प्रसंग में वह खैनी-चूने की लत और सोशल मीडिया की लत की किस प्रकार की तुलना करते हैं, यह आप इस लेख में देखिये. 

 

और गर मर जाइए तो...: दास्ताने सोशल मीडिया

हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में सोशल मीडिया का दख़ल इतना बढ़ गया है कि अब ज़्यादातर लोगों के लिए इसके बिना जीवन की कल्पना करना मुश्किल होगा. अगर हम बड़ी-बड़ी कम्पनियों के लिए महज़ डाटा बन गए हैं तो हमें इसकी कोई चिन्त्ता होती नहीं दिख रही. इसके लाभ गिनाने वालों से भी हमारा कोई झगड़ा नहीं है. 

परंपराएं तोड़कर बदलाव की अंगड़ाई लेता रेडियो

पिछले कुछ दशकों से चल रही सूचना क्रांति अब अपने चरम पर है। इसका प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र पर पड़ रहा है। रेडियो इससे अछूता कैसे रह सकता है। मीडिया में करीब तीन दशकों से सक्रिय संजीव शर्मा आज हमें विजुअल रेडियो से परिचित करवा रहे हैं जो रेडियो का आने वाला कल है। 

Media forgetting its core functions...

I have spent decades with print and electronic media as a member of Indian Information Service, one of the Central Civil Services which handles information and publicity for the Government.

We are trying to create a platform where our readers will find a place to have their say on the subjects ranging from socio-political to culture and society. We do have our own views on politics and society but we expect friends from all shades-from moderate left to moderate right-to join the conversation. However, our only expectation would be that our contributors should have an abiding faith in the Constitution and in its basic tenets like freedom of speech, secularism and equality. We hope that this platform will continue to evolve and will help us understand the challenges of our fast changing times better and our role in these times.

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RaagDelhi: देश, समाज, संस्कृति और कला पर विचारों की संगत

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