हमारी बात
एक वर्ष से कुछ ऊपर ही हुआ कि हमारी इस वेबसाइट को हैक होने के बाद मीडियाभारती वेब सॉल्युशन्स द्वारा पुन: खड़ा किया गया. उस समय का फैसला कुछ ऐसा ही रहा कि वेब-पत्रिका के सम्पादक की ओर से रोज़ाना या हफ्तेवार भी किसी चिट्ठी-पत्री की आवश्यकता नहीं समझी गई और इसलिए वही सम्पादकीय जो वेबसाइट के पुन: शुरू होने के बाद लिखा गया, स्थायी रूप से वहीँ टंगा रहा. हाल ही में कुछ मित्रों ने ध्यान दिलाया कि इस स्थायी से हो चुके ‘सम्पादकीय’ का शीर्षक (पुन: स्वागत है आपका) वेबपत्रिका से जुड़ने वाले नए पाठकों को भी ‘कन्फ्यूज़’ करता है और पुराने पाठकों को वह बहुत बासी लग रहा है. कुल मिलाकर यह कि हमें आलस्य त्यागने का आदेश हुआ है और मशवरा दिया गया है कि हम इस निर्धारित स्थान पर नई-नई सामग्री डालते रहें ताकि सम्पादकीय कमेंट्स में भी ताज़गी बनी रहे. आज से हम पुराना सम्पादकीय तो पीछे कर ही रहे हैं लेकिन नए का स्वरुप क्या होगा, उसकी आवधिकता क्या होगी, विषय का चुनाव कैसे होगा – इन सब बातों पर अभी हम कुछ नहीं कह रहे. हम चाहते हैं कि सहज ढंग से यह सब तय होता जाए और हम इस स्तम्भ को पाठकों के साथ नियमित संवाद का माध्यम भी बना सकें.
यह तो हुई भूमिका उस बात को कहने की जो अब हमें आज के सम्पादकीय के तौर पर कहनी है.
हम विश्व में लगातार बढ़ रहे तनाव को आज के विषय के तौर चुन रहे हैं. हम जानते हैं कि अगर हम यह काम दो अक्तूबर को करते तो यह ज़्यादा स्वाभाविक माना जाता क्योंकि गाँधी जयंती पर विश्व शांति की चिंता करना अवसर के अधिक अनुकूल होता. लेकिन आप कह सकते हैं कि वह चिंता केवल रस्मी होती. आज अगर रूस और यूक्रेन, तथा इज़राइल और फिलस्तीन के बीच चल रहे युद्धों को अलग रख कर भी सोचें तो दुनिया के कई देशों में आंतरिक कलह और संघर्ष की स्थितियां बनी हुई हैं. दक्षिण एशिया को ही लें तो बंग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल ही नहीं बल्कि पाकिस्तान भी आंतरिक संघर्ष के मुहाने पर बैठा है. अफ़ग़ानिस्तान की तो खैर हम सबने आदत सी डाल ली है. और आगे चलें तो ईरान भी बीच-बीच में अहसास करवा देता है कि मिडिल-ईस्ट में वह अपनी मर्ज़ी के खिलाफ चुपचुपाते से तो कुछ होने नहीं देगा.
पड़ोस अशांत हो तो हमें तकलीफ होना लाज़मी है ही. इसके लिए ज़रूरी है कि पड़ोस पर तो निगाह रखें ही, अपना घर भी सम्हालें. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत जी ने अपने वार्षिक संबोधन में बहुत उदारता दिखाई और यह कहा कि हमें एक दूसरे की पूजा पद्धतियों का सम्मान करना चाहिए और यह भी कि हम सब भारतीय हैं और इसलिए एक हैं. लेकिन दिक्कत यह है कि संघ के बड़े लोग (भाजपा के भी) ऐसे उदार वक्तव्य भी दे देते हैं और गाँधी जी को “प्रात: स्मरणीय” महापुरुषों की सूची में भी रख लेते हैं किन्तु दूसरी ओर अपने छुटभईय्यों को यह छूट देते हैं कि वह गाँधी जी के प्रति अपशब्द बोलते रहें और गोडसे का महिमामंडन करते रहें. उम्मीद करनी चाहिए कि अब कथनी और करनी का यह अंतर समाप्त होगा और देश में चहुँओर सौहार्द और शांति की स्थापना के लिए हमें मोहन भागवत जी के कहे अनुसार एक दूसरे की पूजा पद्धतियों का, एक दूसरे के धर्मों का सम्मान करना सीखना होगा. यदि हम धार्मिक आधार पर आपस में लड़ते रहे, या जैसा कि मोहन भागवत जी ने कहा, छोटी छोटी बातों पर सड़कों पर उतरते रहे तो हमें दुनिया में कोई भी गंभीरता से नहीं लेगा और विश्वगुरु बनने का हमारा सपना अधूरा रह जाएगा.