चुनाव आयोग को निष्पक्ष दिखना भी चाहिए
चुनाव आयोग की भूमिका पर फिर एक बार सवाल उठाये जा रहे हैं. ऐसे में आयोग को सिर्फ सरकार या सत्तारूढ़ दल से मिलने वाले समर्थन पर निर्भर रहने की बजाय अपनी ओर से भी कुछ ऐसा करना चाहिए कि विपक्ष द्वारा लगाये जा रहे आरोपों का समुचित निराकरण हो सके. इसी विषय पर हमारी एक टिप्पणी!
निष्पक्ष होना काफी नहीं, चुनाव आयोग को निष्पक्ष दिखना भी चाहिए
विद्या भूषण अरोरा
यह आज कोई पहली बार नहीं है कि चुनाव आयोग के कार्य-कलापों पर और निर्णयों पर गंभीर प्रश्न उठाये गए हैं. और यह भी सच है कि चुनाव आयोग के कार्य-कलापों पर भाजपा के सत्तारूढ़ होने से पहले भी प्रश्न उठे हैं. फिर भी यह कहना होगा कि विपक्ष के नेता राहुल गाँधी द्वारा आज उठाये गए प्रश्नों में यह बात खुलकर सामने आ रही है कि यदि चुनाव आयोग ने तुरंत कुछ प्रश्नों को जवाब ना दिया तो ऐसा लगेगा कि आयोग अपनी निष्पक्षता बनाए रखने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहा है.
यदि आयोग कुछ छिपाना नहीं चाह रहा तो उसे राहुल गाँधी से शपथ-पत्र की मांग करने के साथ-साथ इतना तो करना चाहिए कि उन्हें या बल्कि पूरे देश को अपनी वेबसाइट पर कम्प्यूटरीकृत मतदाता सूचियाँ उपलब्ध करवा दे. राहुल गाँधी बता रहे थे कि केवल एक विधानसभा क्षेत्र (बंगलौर सेंट्रल की महादेवपुरा विधानसभाई सीट) की सूचियाँ उन्हें इलेक्ट्रॉनिक रूप में देने की बजाय ऐसे फॉर्मेट में दी गई हैं जिन्हें कम्प्यूटर द्वारा पढ़ा भी नहीं जा सकता था. चलिए एक बार मान भी लें कि राहुल गाँधी द्वारा लगाये गए सारे आरोप गलत हैं लेकिन फिर भी क्या उनकी यह मांग नाजायज़ है कि उन्हें यह सूचियाँ ऐसे फॉर्मेट में दी जाएँ जिन्हें मशीन अर्थात कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर द्वारा पढ़ा जा सके और जाँच की जा सके? राहुल गाँधी का कहना था कि इस एक विधानसभाई क्षेत्र की मतदाता सूचियाँ जांचने में तीस-चालीस लोगों को करीब छह महीने लग गए. अगर यही डाटा उन्हें कम्प्यूटरीकृत रूप में दिया जाता (जो कि बहुत आसान है और आजकल आमतौर पर होता है), तो यही काम मिनटों या कुछ घंटों में हो जाता.
राहुल गाँधी ने अनियमितताओं के जो उदाहरण गिनवाए, उनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिनके स्पष्टीकरण तुरंत आने चाहिएं और यदि चुनाव आयोग को ऐसा लगे कि उनसे कहीं कोई चूक हो गई है तो उन्हें बहादुरी से अपनी गलती मान लेनी चाहिए जैसे एक ही वोटर का चार-पांच बूथों में नाम होना (उसी फोटो और नाम के साथ) और या फिर एक ही कमरे के पते पर अस्सी या ४६ वोटरों का होना इत्यादि.
भारत जैसे बड़े देश में आई टी का प्रयोग बहुत सी चीज़ों को आसान कर चुका है और प्रधानमंत्री मोदी स्वयं ना केवल इसके बहुत बड़े हिमायती हैं बल्कि उनके कार्यकाल में ‘डिजिटल इंडिया’ जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम चलाये गए हैं. नगद भुगतानों के लिए यू पी आई (UPI) का प्रयोग देश-विदेश में चर्चा का विषय है. कम्प्यूटर का प्रयोग इस देश में राहुल गाँधी के पिता राजीव गाँधी के प्रधानमंत्री काल में १९८५ में ही शुरू हो गया था. अर्थात आज चालीस वर्ष बाद भी चुनाव आयोग द्वारा कम्प्यूटरीकृत मतदाता सूचियाँ उपलब्ध ना करवाना बहुत आश्चर्यजनक है और संदेह तो पैदा करता ही है. राहुल गाँधी का कहना है कि एक विधानसभा क्षेत्र के लिए ३०० किलो कागज़ पकड़ा देना (जिनका ढेर सात फीट ऊँचा है), ऐसा लगता है कि आयोग चाहता ही नहीं कि कोई इनकी जांच कर पाए.
राहुल गाँधी के यह आरोप उस समय आये हैं जब चुनाव आयोग की भूमिका बिहार में मतदाता सूचियों के संशोधन को लेकर पहले ही आलोचना के घेरे में है. इंडियन एक्सप्रेस ने कुछ रिपोर्ट्स में और कम से कम एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपने शो में यह आरोप लगाया है कि बूथ लेवल ऑफिसर बिना घरों में आये ही फॉर्म भर कर जमा कर रहे हैं और जमा किये गए कागजों की कोई पावती भी मतदाताओं को नहीं दी जा रही. योगेन्द्र यादव जैसे चुनाव विशेषज्ञों का कहना है कि मतदाता सूचियों में इस तरह का संशोधन असंवैधानिक है और यह पहले से ही कमज़ोर मतदाताओं (जैसे प्रवासी मज़दूरों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों) में से बहुत सारों को मतदाता सूची से कर बाहर देगा.
न्याय के बारे में एक प्रसिद्ध न्यायविद का कथन सभी दोहराते रहते हैं कि ना केवल यह महत्वपूर्ण है कि न्याय हो बल्कि उतना ही महत्वपूर्ण यह है कि न्याय होता दिखे. इसी तरह किसी भी लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक है कि उसमें ना केवल स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हों बल्कि यह भी आवश्यक है कि चुनाव आयोग जैसी संस्थाएं यह भी सुनिश्चित करें कि उनकी भूमिका संदेह से परे हो और सभी को यह स्पष्ट दिखना चाहिए कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हैं. पिछले कुछ वर्षों में चुनावों के आसपास चुनाव आयोग की जो भूमिका रही है, उसे देखकर निष्पक्ष कहे जाने वाले प्रेक्षकों ने भी चिंता जताई है. यदि भारत में लोकतंत्र को जीवित रखना है तो देश की जनता को और राजनीतिक दलों को भी सजग रहना होगा. देश में सिविल सोसाइटी और विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख जनों को चुनाव आयोग से मांग करनी चाहिए कि वह कोई ऐसा काम ना करे जिससे उसकी निष्पक्षता पर ऊँगली उठे.
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इसी स्तंभकार की चुनाव आयोग पर कुछ पुरानी टिप्पणियां आप यहाँ पढ़ सकते हैं.
ईवीएम को संदेह से परे होना ही होगा
क्या हमारा चुनाव आयोग कायर है?
प्रधानमंत्री और राजीव गांधी व चुनाव आयोग का रवैय्या
लोकतन्त्र में विश्वास बनाए रखने की ज़िम्मेवारी चुनाव आयोग की

विद्या भूषण स्वतंत्र लेखन करते हैं और इस वेबपत्रिका का संचालन भी।