नौ-तपा रविवार से - ज़रा संभलिएगा
नौतपा एक मौसमीय चक्र है, जो मई-जून के बीच आता है। इस दौरान सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है जिससे पृथ्वी पर तापमान में अत्यधिक वृद्धि होती है और भीषण गर्मी पड़ती है। भारत में रविवार सुबह सूर्योदय के साथ नौतपा या नवताप शुरू हो रहा है। नन्दिता मिश्र का यह छोटा सा लेख रोचक अन्दाज़ में नौतपा के बारे में बता रहा है।
नौ-तपा रविवार से - ज़रा संभलिएगा
नन्दिता मिश्र
इस हफ्ते बुधवार शाम एन सी आर और कुछ इलाकों में जो आंधी आई वो तूफान से कम नहीं थी। ये आंधी देश के कई हिस्सों में आई।खूब पेड़ टूटे। यातायात बाधित हुआ। हवाई यात्राएं प्रभावित हुईं। घर गिरे। झुग्गी झोपड़ी वालों पर कहर टूटा। ये मौसम की चेतावनी है कि तुम हमसे खेलोगे तो हमें भी खेलना आता है हम भी दाम देंगे।
पिछले कुछ बरसों से हम लोग अनुभव कर ही रहे हैं कि मौसम हर साल बदल रहा है। पहले मोटे तौर पर हम तीन ऋतुओं का अनुभव करते थे। गर्मी, सर्दी और बरसात। धीरे धीरे इनका आना जाना अनियमित होने लगा। अब बरसात साल भर हर कभी आ जाती है। जब ज़रूरत होती है तब नहीं आती। कुछ इलाकों में मौसम सिर्फ ठंड और गर्मी में सिमट कर रह गया है। इस साल बहुत ठंड पड़ी। शुरू से अनुमान था गर्मी खूब पड़ेगी। पारा 50 तक भी जा सकता है। कुछ दिन गर्मी ने अपने तेवर दिखाये भी लोग घबरा गये। फिर पहाड़ों पर बर्फ गिरने लगी मैदानों में आंधी , बारिश होने लगी। ये सब पर्यावरणीय प्रभाव हैं।
अभी ज्येष्ठ (जेठ) चल रहा है। जेठ आषाढ़ सावन भादों। इसमें जेठ तेज़ गर्मी का महीना है। आषाढ़ से बरसात शुरू होने लगती है। सावन भादों बादल खूब बरसते हैं। राजस्थान कम वर्षा का स्थान है। जहां पानी कम बरसता हो वहां बादलों के अनेक नाम हैं। तरह तरह के बादल हैं। पूजा पाठ टोटका करके ये बादल को रिझाते भी हैं। वादल और वादली जो हमारे बादल और बदली हैं, इनके अलावा जलधर, जलवाहक, जीमूत, घंटा, सारंग, जलधरण, जलद, व्योम, मेघ, मेघाडंबर, मुदिर जैसे नाम संस्कृत से लिये गये हैं। स्थानीय बोली में बहुत से नाम हैं। भरणनद, पाथोद, दादर, घन, जलाल, कालीकांठल, कालाहण, मैंमट, रामइयो और सेहर। और भी बहुत से नाम हैं। बादलों के आकार-प्रकार से भी उनके नाम रखे जाते हैं।
अभी जेठ चल रहा है। खूब तेज गर्मी पड़नी चाहिये। जेठ में कैसी गर्मी हुई, उससे किसान बारिश का अनुमान लगाता है। इसी माह में नौ-तपा आता है। जेठ के महीने में कृष्ण पक्ष की ग्यारस याने एकादशी से नौ-तपा लगता है। अंग्रेजी कैलेंडर में नौ-तपा मई के अंतिम सप्ताह या जून के शुरू में दर्ज होता है। तिथियों के बदलने का कोई प्रश्न ही नहीं है। नौतपा याने धरती के तपने के नौ दिन। ये खूब न तपें तो अच्छी बारिश नहीं होती और किसान पर इसका असर अभी से होने लगता है। जेठ में कितनी भी गर्मी हो किसान उसे शुभ मानता है हमारी तरह कोसता नहीं है।
इस साल नौतपा की चर्चा काफी सुनने में आ रही है। व्हाट्स एप पर काफी दिनों से नौ तपा पर पोस्ट आने लगीं हैं। याने नौ तपा अब फैशन में आ गया है।
क्या होता है नौतपा....
दो मूसा, दो कातरा,
दो तीड़ी, दो ताय।
दो की बादी जल हरै,
दो विश्वर, दो वाय।
नौ तपा के पहले दो दिन लू नहीं चली तो चूहे बहुत हो जाते हैं जो फसलों को बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं। उसके बाद दो दिन तेज़ गर्मी और लू नहीं चली तो फसल को नुक़सान करने वाले कीट बहुत हो जायेंगे। फिर लू नहीं चली तो टिड्डियों के अंडे नष्ट नहीं होंगे। चौथे दिन के बाद भी यही स्थिति रही तो बुखार लाने वाले जीवाणु नहीं मरेंगे। विश्वर याने सांप बिच्छू भी नहीं मरेंगे। आखिरी दो दिन अगर लू नहीं चली तो वो तेज आंधी के रूप में नुकसान करेगी। फसलें चौपट कर देगी। जेठ में बहुत सी फसलें बोई जाती है।
मूलतः फसलें बोने का समय आषाढ़ होता है। जेठ उसकी तैयारी का समय है। जैसे जैसे जेठ बीतता है वर्षा की तैयारी शुरू हो जानी चाहिए।
इस साल 25 मई से नौतपा लगने वाला है और तीन जून तक रहेगा। तेज गर्मी झेलने की तैयारी करें। बहुत ज़रूरी हो तभी घर से बाहर निकलें। निकलें तो पूरी सावधानी बरतते हुए जैसे खूब पानी पिएं, सूती और हल्के रंगों के कपड़े पहनें और घर से कुछ खा कर ही निकलें ताकि लू से बचाव हो सके। भोजन भी हल्का और सुपाच्य ही करें, मौसम जब अपने पर आ जाये तो किसी को छोड़ता नहीं है। उसके लिए अमीर गरीब सब एक हैं। हमारी कुछ जिम्मेदारियां हम ईमानदारी से निभाने लगें तो असंतुलित पर्यावरण को सुधारने में अपना योगदान दे सकते हैं। अगर पेड़ लगायें नहीं तो कम से कम काटे भी नहीं बीजें। पानी की बचत नहीं करते पर उसे व्यर्थ बहायें भी नहीं। इस तरह की बहुत सी छोटी छोटी बातें हैं जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं। यदि हम उनका ध्यान रखेंगे तो प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने में अपना गिलहरी जित्ता योगदान तो दे सकेंगे।
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वर्षों आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग और केंद्र सरकार के अन्य संचार माध्यमों में कार्य-रत रहने के बाद नन्दिता मिश्र अब स्वतंत्र लेखन करती हैं।