लम्बे समय बाद दीपाली शर्मा 'deez' की कविताओं की एक और खेप आई है लेकिन छोटी सी! दो नन्हीं-नन्हीं कविताएँ हैं पर हैं दोनों दमदार! आपने उनकी पिछली की कविताएं देखनी हों तो ऊपर उनके नाम पर क्लिक करके उनकी सभी रचनाओं तक आराम से पहुंचा जा सकता है.
दीपाली शर्मा 'deez' की दो नई कविताएं
वानप्रस्थ
वन के रस्ते जो कदम बढ़े
अरमान कई परवान चढ़े
कुछ नई दिशा कुछ नई दशा
कुछ नया राग कुछ नया नशा
जब रस्ते वन को जाते हैं
कुछ तो हमको बतलाते हैं
अब इनकी बाजू थाम-थाम
चलना है धूप चलना है शाम
देखें ये कहाँ ले जाते हैं
ये रस्ते जो वन को जाते हैं
सब्र
चलो आज सब्र दिखायें
छोटे बच्चे के साथ मिलके
रेत के ढेर से घरौंदे बनायें
किसी बड़े-बूढ़े के साथ बैठ
बार-बार दोहराई बातें सुन आयें
रसोई में जाके, धीमी आँच पे
माँ वाली वो काली दाल बनायें
अख़बार हाथ में लिए सुबह-सुबह
चाय की चुस्कियाँ लगायें
अपने मोबाइल फ़ोन को
घर के किसी कोने में खो आयें
पुराने दिनों की तरह ही
रेडियो में भूले-बिसरे गीत सुन आयें
कुछ पल के लिए ही सही
जिंदगी की चूहा दौड़ से हट जायें
चलो आज सब्र दिखायें
सब्र में ही एक दिन बितायें
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डॉ. दीपाली शर्मा श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र विभाग में एसोसियेट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। करियर के तौर पर अर्थशास्त्र को अपनाने के बावजूद उनका साहित्यिक रुझान हमेशा ही बना रहा। स्वयं उनके शब्दों में, “मैं सिर्फ़ अपने मन में उमड़ते-घुमड़ते विचारों को कविता में पिरो देती हूं, बिना यह चिंता किये कि वो तयशुदा साहित्यिक मानदंडों पर खरी उतरती हैं या नहीं हैं! मेरी कविताएं अगर कुछ सहृदय पाठकों के मन को भी छू जाती हैं तो यह मेरे लिए बहुत संतोष की बात होगी।"