अनीता गोयल की कविता : आर्तनाद
इसी वेब-पत्रिका में प्रकाशित अनीता गोयल की रचनाएँ काफी पसंद की गईं हैं. हमारे लिए उन्होंने कहानियां और कवितायेँ दोनों ही लिखी हैं. जैसा कि आप उनकी रचनाओं में पायेंगे, वह मानवीय रिश्तों की तो गहन पड़ताल करती ही हैं, साथ ही वह अपने सामाजिक सरोकारों को भी नहीं भूलतीं.आज की इस कविता को आप स्त्री-विमर्श की श्रेणी में तो रखेंगे ही, साथ ही देखेंगे कि यहाँ वह मिथकीय प्रतीकों का सहारा लेकर पुरुष का आह्वान करती हैं कि वह अपनी ज़िम्मेवारियों को तत्परता पूर्वक निभाए.
अनीता गोयल की कविता : आर्तनाद
श्रद्धा विश्वास का गीत सुनाकर
चीर हरण है हुआ हमेशा
अंचल में बस अश्रु भरकर
मेरे प्रेम की हुई उपेक्षा
द्रौपदी वृंदा अहल्या सीता
बस छल ही पाया मैंने
पीयूष स्त्रोत सा हृदय सौंपकर
मरु जीवन क्यों पाया मैंने
स्वप्नो का सब तर्पण करके
क्यों चलती रहूँ बस सहने को
स्मित रेखा में अस्मिता खोई
तब ठहरी मैं कुछ कहने को
संकल्प ले लूँ कोई उससे पहले
नियम तुम्हें भी निभाना होगा
मंथन करो इस उर सागर का
विष तुमको भी कुछ पीना होगा
नर तुम कितने भी सक्षम हो
मेरे बिना कुछ पूर्ण नहीं
प्रेम तप हो या सृष्टि पथ
बिन मेरे कुछ सम्पूर्ण नहीं
है सन्धि पत्र दो पक्षों का
मान तुम्हें भी रखना होगा
तुम नर हो रूद्र रूप नटराज हो
प्रलय नृत्य फिर करना होगा
मेरी अस्मिता पे प्रश्न उठे गर
युग परिवर्तन फिर लाना होगा
मेरी शुचिता पे प्रश्न लगे तब
प्रियतम परिवर्तन फिर लाना होगा।
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अनीता गोयल, दिल्ली विश्वविद्यालय के भारती महाविद्यालय में 12 साल इतिहास पढ़ाने के बाद, मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया) जा कर बस गई। वहाँ उन्होंने विक्टोरियन स्कूल ऑफ़ लैंगुएजिज़ के प्रोग्राम के अंतर्गत कई बरस माध्यमिक स्तर पर हिंदी पढ़ाने का कार्य किया। अपने आस-पास के परिवेश के प्रति सजग उनकी रचनाएं सामाजिक संवेदना से सरोबर होती हैं।