बोझ से कराहते पहाड़ों को चाहिए राहत का मलहम !
गर्मियाँ आते ही मैदानी इलाकों के लोग पहाड़ों की तरफ दौड़ने लगते हैं। पिछले तीन दशकों से यह चलन काफी बढ़ गया है क्योंकि उदारीकरण के बाद देश का मध्यमवर्ग समृद्ध हुआ है और सप्ताहांत की दो छुट्टियों के साथ एक-आध और छुट्टी जोड़कर लोग हिल-स्टेशन तलाशने लगते हैं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पर्वतीय स्थल उत्तर भारतीय पर्यटकों के प्रिय स्थल तो हैं लेकिन केवल रौंदने के लिए ! आपने भी महसूस किया होगा कि बड़ी संख्या में पर्यटक अपनी गाड़ियों पर जाना पसंद करते हैं। पर्यावरणीय चेतना बढ़ी तो है लेकिन संभवत: केवल किताबी ज्ञान के तौर पर ही! संजीव शर्मा जब हाल में शिमला गए तो उन्हें जरूरत महसूस हुई कि वह पहाड़ों का दर्द अपने पाठकों के साथ बांटें।
बोझ से कराहते पहाड़ों को चाहिए राहत का मलहम !!
संजीव शर्मा
बढ़ती भीड़ से पहाड़ कराह रहे हैं और वाहनों की बेतहाशा संख्या उनका कलेजा छलनी कर रही है। फिर भी पर्यटक बेफिक्र हैं और पहाड़ों के पहरेदार यानि प्रशासन निश्चिंत । पहाड़ लगातार इशारा कर रहे हैं, खुलेआम संकेत दे रहे हैं और कई बार सीधी चेतावनी भी, फिर भी वीकेंड पर शिमला से लेकर मसूरी तक और मनाली से लेकर नैनीताल तक पर्यटकों और उनके वाहनों का जाम लगा है। एक घंटे का सफर 6 से 8 घंटों में हो रहा है। इसके बाद भी, पहाड़ों पर जाने वालों की संख्या घटने की बजाए लगातार बढ़ ही रही है।
यह स्थिति किसी एक पहाड़ी शहर या राज्य की नहीं है बल्कि देश के तमाम पर्वतीय राज्य लोगों और वाहनों की बेलगाम भीड़ से घायल हो रहे हैं। धूल, धुआं,कचरा,शोर और भीड़ का दबाव पहाड़ों का सीना घायल कर रहे हैं। वैसे, तो कमोवेश सभी पर्वतीय इलाकों का एक जैसा हाल है लेकिन शिमला जैसे शहर तो बर्बादी की कगार पर हैं। शिमला के हिमाचल प्रदेश की राजधानी और एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल होने के कारण, पिछले कुछ दशकों में वाहनों की संख्या में तेजी से वृद्धि देखी गई है। इससे न केवल पर्यावरणीय संतुलन पर असर पड़ रहा है, बल्कि पहाड़ों की भौगोलिक संरचना और पारिस्थितिकी पर भी दबाव बढ़ रहा है।
शिमला हिमालय की दक्षिण-पश्चिमी श्रृंखलाओं में 2 हजार 206 मीटर अर्थात् 7 हजार 238 फीट की औसत ऊँचाई पर स्थित है। यह शहर सात पहाड़ियों पर बसा है और जाखू हिल यहां की सबसे ऊंची चोटी है। शिमला मूल रूप से ब्रिटिश काल में महज 25 हजार लोगों के लिए बनाया गया था, लेकिन आज यहाँ लगभग ढाई लाख लोग रहते हैं। इसके फलस्वरूप मानवीय उपस्थिति के साथ तमाम संसाधनों की मात्रा तेजी से बढ़ रही है।
शिमला जिले की आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार, करीब 8 लाख 14 हजार थी, और 2025 तक इसके 9 लाख के करीब होने का अनुमान है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा में 2019 में प्रस्तुत जानकारी के अनुसार शिमला शहर में रोजाना चलने वाले वाहनों की संख्या 2005 में 66 हजार 617 से बढ़कर 2019 तक 1 लाख 65 हजार से ज्यादा हो गई थी। यह वृद्धि लगभग 2.5 गुना है। यदि इस बढ़ोत्तरी के हिसाब से अनुमान लगाया जाए और स्थानीय लोगों की जानकारी पर भरोसा किया जाए तो इस साल तक शिमला शहर में पंजीकृत वाहनों की संख्या करीब एक लाख और पूरे जिले में पंजीकृत वाहनों की संख्या करीब ढाई लाख तक हो सकती है। नियमित तौर पर आने वाले पर्यटक वाहनों को मिलाकर यह आंकड़ा 3 लाख तक जा सकता है।
आंकड़ों के अनुसार शिमला जिले में सालाना करीब 2 करोड़ पर्यटक आते हैं और इनमें से कई अपने वाहन लेकर आते हैं। एक अन्य अनुमान के अनुसार पर्यटन सीजन के दौरान महज 10 दिनों में 55,000-60,000 वाहन शिमला आ जाते हैं तो साल भर में यह संख्या लाखों में हो सकती है। हालांकि, ये वाहन स्थायी रूप से पंजीकृत नहीं हैं, लेकिन सड़कों पर बोझ बढ़ाते हैं।
हाल ही में अपनी शिमला यात्रा के दौरान मैंने खुद यह महसूस किया कि वाहनों के दबाव बढ़ने के कारणों में एक प्रमुख कारण शिमला का पहाड़ी क्षेत्र होना भी है इसलिए यहाँ की सड़कें तीखी चढ़ाई वाली हैं। शिमला की सड़कें, विशेष रूप से शहरी और उपनगरीय क्षेत्रों में, कई जगहों पर 15% से 30% तक की चढ़ाई हैं। कुछ खास सड़कें, जैसे कि मॉल रोड से जाखू मंदिर या अन्य ऊँचे इलाकों तक जाने वाली सड़कें, काफी खड़ी हैं। सड़कों के संदर्भ में, यह वाहनों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण है, खासकर भारी वाहनों या कम शक्तिशाली इंजन वाले वाहनों के लिए तो यह वाकई पहाड़ चढ़ना ही होता है।
इतना ही नहीं, शिमला जिला भूकंपीय जोन IV में आता है, जो उच्च जोखिम वाला क्षेत्र है। वाहनों की लगातार आवाजाही से होने वाले वाइब्रेशंस से पहाड़ों की पहले से कमजोर भूगर्भीय संरचना और अस्थिर हो रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि सड़क यातायात के कारण होने वाला कंपन भूस्खलन के खतरे को बढ़ाता है। 2023 में शिमला में हुए भूस्खलन जैसे मामले बताते हैं कि अत्यधिक वर्षा के साथ-साथ मानवीय गतिविधियाँ, जैसे सड़क निर्माण और यातायात इस खतरे को बढ़ा रहे हैं।
अध्ययनों से यह भी पता चला हैं कि वाहनों से निकलने वाला धुआँ और कार्बन उत्सर्जन हवा की गुणवत्ता को खराब कर रहा है। हिमाचल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, पर्यटन सीजन में शिमला में हवा की गुणवत्ता खराब हो जाती है। उत्सर्जन से निकलने वाली ब्लैक कार्बन बर्फ और ग्लेशियरों की सतह को काला कर देती है, जिससे सूरज की गर्मी अधिक अवशोषित होती है और बर्फ तेजी से पिघलती है। यह हिमालयी पारिस्थितिकी के लिए खतरा है।
बढ़ते वाहनों को संभालने के लिए सड़कों का चौड़ीकरण और नई सड़कें बनाई जा रही हैं, जैसे शिमला-चंडीगढ़ एक्सप्रेसवे। इसके लिए पहाड़ों को काटा जा रहा है और जंगल साफ किए जा रहे हैं, जिससे मिट्टी का कटाव बढ़ रहा है और पहाड़ कमजोर हो रहे हैं। भारी यातायात और सड़क निर्माण से प्राकृतिक जल निकासी व्यवस्था बाधित हो रही है। पानी पहाड़ों में रिसता है, जिससे उनकी स्थिरता कम होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि अनियोजित निर्माण और ट्रैफिक इसका कारण है।
हालांकि,पहाड़ों पर बढ़ते दबाव को कम करने के लिए सरकार ने सरकारी वाहनों को इलेक्ट्रिक करने की योजना बनाई है। इसी तरह शिमला में मल्टी-स्टोरी पार्किंग बनाई गई है। अब जरूरत इस बात की है कि इसे और इसकी तरह की अन्य पार्किंग के अधिकतम उपयोग को प्रोत्साहित किया जाए। बेहतर बस सेवाएँ भी निजी कारों का संख्या को कम कर सकती हैं। इसके अलावा, सरकार रिज जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को नो-व्हीकल जोन बनाकर मुसीबत को कम कर सकती है।कुल मिलाकर शिमला में वाहनों की बढ़ती संख्या और जनसंख्या को तत्काल रोकना जरूरी है अन्यथा पहाड़ों पर दबाव बढ़ता जाएगा । यह भूस्खलन, प्रदूषण, वन कटाई और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को और तीव्र कर रहा है। अगर इसे नियंत्रित न किया गया, तो शिमला की प्राकृतिक सुंदरता और स्थिरता खतरे में पड़ जाएगी ।

संजीव शर्मा तीन दशक से ज्यादा समय से मीडिया में सक्रिय हैं और फिलहाल आकाशवाणी भोपाल में सहायक निदेशक समाचार का दायित्व संभाल रहे हैं। आपको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी के साथ जापान और अफ्रीकी देशों की यात्रा पर जाने का अवसर मिला है और इन यात्राओं पर केन्द्रित कर पुस्तक‘चार देश चालीस कहानियां’ काफी लोकप्रिय हुई है. इन्होने हाल ही में अयोध्या पर केन्द्रित ‘अयोध्या 22 जनवरी’ नामक किताब भी लिखी है. संजीव शर्मा का ‘जुगाली’ jugaali.blogspot,com के नाम से एक ब्लॉग भी हैं ।