मोटापा : आधुनिक जीवनशैली की समस्या
मोटापा और उससे सम्बंधित मसले जैसे ‘वेट लॉस’, बी.एम.आई., डाइट-प्लान (Weight losss, BMI, Diet-plan, lifestyle changes) इत्यादि आजकल जितने ज़्यादा चर्चा में हैं, उतना और कुछ नहीं। फिर भी समस्या जस की तस है बल्कि बढती जा रही है। नमिता शर्मा जिन्होंने हमारी वेब पत्रिका के लिए पहले भी स्वास्थ्य सम्बन्धी विषयों पर लेख दिए हैं, इस बार मोटापे की समस्या पर यह जानकारीपूर्ण लेख ले कर आईं हैं।
मोटापा : आधुनिक जीवनशैली की समस्या
डॉ नमिता शर्मा
मोटापा, स्थूलता, ओबेसिटी (obesity) यानि आप के शरीर में जरूरत से ज्यादा फैट, चर्बी या वसा जमा हो गयी है। कुछ साल पहले तक..अरे वजन बढ़ गया है, बच्ची थोड़ी स्वस्थ है, ऐसा कह कर मोटापे को हल्के में लिया जाता था। लेकिन अब परिस्थिति बदल गयी है। कम ही लोग ये बात जानते हैं कि मोटापा अब एक रोग की श्रेणी में शामिल कर लिया गया है। ये एक बीमारी है। अपने देश में मोटापे के आंकड़े चौका देने वाले हैं। केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों और स्वास्थ्य प्रणाली के लिये भी मोटापा बड़ा गम्भीर विषय बन गया है। सरकार स्थूलता के लगातार बढ़ते आंकड़ों से चिन्तित है। ये रोग हर उम्र में तेज़ी से पनप रहा है। बहुत से मंत्रालयों ने एक जुट हो कर मोटापे से जूझने के अभियान और योजनाएं शुरू कर दी हैं जैसे फिट इंडिया, ईट इंडिया, खेलो इंडिया और पोषण आहार के विभिन्न कार्यक्रम। हो सकता है कि यदि इन कार्यक्रमों का कार्यान्वन अच्छे ढंग से हो तो आने वाले सामान्य में कुछ सुधार हो किन्तु फिलहाल तो मोटापे के आंकड़े कुछ और ही कहते हैं।
निरंतर मोटा होता जा रहा है देश
सन् 2005 से 2015 तक मोटापे की दर दुगनी हो गयी थी। उसके बाद इन आंकड़ों में तेज़ी से इजाफा हुआ है। आज देश के 40.3 प्रतिशत लोग मोटापे से ग्रस्त हैं। जापान में यह दर केवल 4.5% है और अमेरिका में 41.9 प्रतिशत। एक अध्ययन के मुताबिक हमारे यहां हर पांचवां व्यक्ति मोटापा ग्रस्त है। यही कारण है कि अब सार्वजनिक ठिकानों बाजारों, सिनेमाहाल, ट्रेन, बस में दुबले, पतले छरहरे लोग कम ही दिखते हैं। बच्चे, जवान, अधेड़, बूढ़े सभी मोटापे की चपेट में आ रहे हैं। मोटापा संक्रामक रोग की तरह फ़ैल रहा है। स्वास्थ्य की दृष्टि से ये बहुत महत्वपूर्ण और गंभीर समस्या है।
हर वर्ग और लिंग के लोग मोटापे की चपेट में आ रहे हैं। एक समय तक मोटापा केवल समृद्ध लोगों की बीमारी था किन्तु अब यह निम्न-आय वर्ग के लोगों में भी देखने को मिल रहा है हालाँकि ज़्यादा संख्या में अभी समृद्ध लोग ही इसकी चपेट में हैं। इसी तरह पहले यह केवल शहरों की समस्या थी किन्तु अब गाँव में भी बड़ी संख्या में लोग मोटापे की बीमारी से ग्रसित हैं। आंकडें यह भी बताते हैं कि पुरुषों की अपेक्षा महिलायें मोटापे की शिकार ज़्यादा हो रही हैं।
मोटा होना बीमारी की निशानी है
स्वास्थ्य के लिये शरीर का ज्यादा वज़नी होना बहुत नुकसानदेह होता है। मोटापे से बहुत सारी बीमारियों की सम्भावना बढ़ जाती है। जैसे डायबिटीज, बल्ड प्रेशर ,दिल और दिल से जुड़े दूसरे रोग, फैटी लिवर, जोड़ों में दर्द, बांझपन, अल्जाइमर और कैंसर के कुछ प्रकार। फैटी लिवर की समस्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है। पहले ये सब बीमारियां बड़ी उम्र के लोगों को होती थीं। अब मोटापे के कारण 35/40 वर्ष की उम्र से ये रोग होने लगे हैं। हर वर्ष 100 में से 63 लोगों की मृत्यु का कारण ये बीमारियां हैं। छोटी उम्र के बच्चों में भी मोटापा तेज़ी से बढ़ रहा है। ये संक्रामक रोग न हो कर भी एक संक्रामक रोग की तरह पसर रहा है।
पहले मोटापा सिर्फ बुरा दिखने की बात तक सीमित था। घरों में किसी का मोटा होना बुरा नहीं माना जाता था। कहते थे पता चलता है खाते पीते घर का है। वह शरीर की एक साधारण स्थिति की तरह माना जाता था। कोई दुबला है तो कोई मोटा। इसमें क्या बुराई है। लेकिन इसमें बहुत बुराई है। धीरे-धीरे वह एक रोग का रूप ले लेता है।
मोटापे से होने वाले कुछ रोग असाध्य हैं। इससे जुड़े कुछ रोगों के लिये जीवन भर दवाएं खानी पड़ती हैं,परहेज़ करना पड़ता है। दवाओं के दुष्परिणाम शरीर पर बुरा असर डालते हैं। शरीर की ताकत कम होती जाती है। इसका मन पर भी असर होता है। आपके चलने फिरने की क्षमता कम हो जाती है। जितना काम पहले कर पाते थे अब वो नहीं बनता है। मोटा व्यक्ति परिजनों पर आर्थिक और सामाजिक बोझ जैसा हो जाता है। बहुत से लोग खुद अपने मोटापे से परेशान होने लगते हैं। पर तब तक काफी देर हो चुकी होती है। शरीर पर चर्बी चढ़ना और मोटे होने में ज्यादा समय नहीं लगता पर जितना वज़न बढा लिया है उसे घटाने में बहुत मशक्कत करनी पड़ती है। वजन जिस तेजी से बढ़ता है उस तेज़ी से कम नहीं होता।
मोटापा सिर्फ खान-पान से ही नहीं बढ़ता
मोटापा सिर्फ खान पान से बढ़ता है ऐसी बात नहीं है। मोटापे से राहत पाने के लिये इसके होने के कारण जानना बहुत ज़रूरी है। लोगों को इस गम्भीर समस्या का अंदाजा नहीं है। वे इसे वज़न बढ़ना मान कर निश्चिंत रहते हैं। मोटापे के कारण क्या हो सकते हैं। कुछ ऐसी बीमारियां हैं जिनमें वज़न बढ़ता है जैसे थायराइड, क्रशिंग सिन्ड्रोम यानि मांसपेशियों का एक रोग (Crushing Syndrome) आर्थराइटिस, पी सी ओ डी। पी सी ओ डी एक हार्मोनल विकार है जो महिलाओं के प्रजनन अंगों को प्रभावित करता है। इसके अलावा कुछ दवाएं हैं जो वज़न बढ़ा सकती हैं। स्टेराइड दवाएं, डायबिटीज और ब्लड प्रेशर की कुछ दवाओं से वजन बढ़ सकता है। लेकिन इन दवाओं का मोटापे के आंकड़े बढ़ाने में कोई बड़ा योगदान नहीं है।
इस सबके अतिरिक्त जो एक बड़ा कारण है जिसे हम प्रमुख भी कह सकते हैं वो है पश्चिमी देशों से प्रभावित जीवन शैली। इसका प्रचलन सिर्फ बड़े शहरों तक सीमित नहीं है। छोटे शहर, गांव और दूर दराज के क्षेत्र सब इसके शिकार होते जा रहे हैं। बाजारवाद, प्रचार और ऑनलाइन ने हर तरह के नुकसानदेह खाद्य पदार्थों को सहज सुलभ करवा दिया है। कम मेहनत ज्यादा भोजन। शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिये, उसे ऊर्जावान बनाने के लिये कुछ विटामिन और मिनरल युक्त भोजन ज़रूरी होता है। ये हमें अपने रोज़ के भोजन से मिलते हैं। हर दिन शरीर को 1500 से 2000 कैलोरीज़ की ज़रूरत होती है। ये व्यक्ति के काम के हिसाब से होती है। ज्यादा श्रम करने वाले के लिये ज्यादा कैलरी और कम मेहनत करने वाले के लिये कम। कम काम और ज्यादा खाने से अतिरिक्त कैलरीज़ फैट में बदल कर शरीर में जमा होने लगती हैं और इसी से व्यक्ति मोटा होने लगता है।
आधुनिक जीवन शैली और मोटापा
आधुनिक जीवन शैली में शारीरिक श्रम अपेक्षाकृत कम हो गया है। शहरों में निजी वाहनों का चलन बहुत बढ़ गया है। ये आपकी भाग दौड़ कम कर देते हैं। छोटी छोटी दूरी के लिये भी लोग पैदल नहीं चलते। बड़ी संख्या में लोग अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों की खरीददारी अब ऑनलाइन करते हैं। खाना-पीना, सब्जी-भाजी, किराने का सामान, कपड़े-लत्ते, जूते-चप्पल, घर को सजाने का सामान - यहाँ तक कि फर्नीचर भी - यानि सब कुछ तो घर बैठे मिल जाता है याने बाहर जाने की कवायद भी खत्म।
शहरों में फास्ट फूड, डिब्बा-बंद खाना, या कहिए प्रासेस्ड-फूड जो खूब प्रचलन में हैं, कैलरी से भरे होते हैं और पौष्टिकता से खाली। सभी जानते हैं कि सॉफ्ट-ड्रिंक चीनी और नुकसानदायक कैमिकल्स से युक्त होने के बहुत ख़तरनाक होते हैं किन्तु फिर भी इनकी खूब पब्लिसिटी और उससे भी ज़्यादा बिक्री है। पता नहीं कब सरकारें चेतेंगी और इनके विज्ञापनों के साथ यह जोड़ना आवश्यक हो जाएगा कि ‘याद रखिए, कोल्ड ड्रिंक का सेवन आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है’। आप किसी भी रेस्टोरेंट में जाएँ, आपको हर टेबल पर नौजवान दिखेंगे जो बर्गर या पिज़्ज़ा के साथ कोल्ड ड्रिंक लेकर बैठे होते हैं। शहरों में कामकाजी महिलाओं की व्यस्तता और परिवार को समय न दे पाने के कारण बच्चों को बाजार के खाने की लत लग जाती है। सप्ताह में दो तीन बार तो बाहर से खाना मंगवाया ही जाता है। इसीलिए तो हमारे यहां हर तीसरा दम्पति स्थूलता या ओबेसिटी का शिकार है।
बच्चों में मोटापा
पहले गांव में मोटे लोग, वृद्धजन, मोटी महिलाएं , और थुलथुल बच्चे कम दिखते थे। अब वहां भी उनकी कमी नहीं दिखती। शहर में भी जितने दिखते हैं पहले नहीं दिखते थे। भारत में स्कूल जाने वाले बच्चों में मोटापे का प्रतिशत 10 से 20% के बीच है। 5 से 9 वर्ष के बच्चों का मोटापे का आंकड़ा बहुत अधिक है। राजधानी दिल्ली में बच्चों का मोटा होने का प्रतिशत देश में सबसे ज्यादा है। इस बीच थोड़ी जागरूकता देखने मिली है। बहुत से स्कूल के बच्चों ने अनाप-शनाप खाने की आदत बदलने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने अपने स्कूल की कैंटीन में बनने वाली खाद्य सामग्री पर निगाह रखना शुरू किया है और खाने की सूची में पौष्टिक खाद्य पदार्थ शामिल करवाये हैं।
नींद की कमी से मोटापा
आपको ये जानकार आश्चर्य हो सकता है कि नींद की कमी भी मोटापे का एक कारण है। कम नींद से रक्त में लैप्टिन(Leptin) हार्मोन कम हो जाता है। कम Leptin शरीर की ऊर्जा की खपत कम कर देता है। नतीजा शरीर में फैट जमा होने लगता है और उसका नतीजा है वज़न बढ़ना या मोटा होना। लगातार टी वी, मोबाइल, लेप टॉप याने ब्लू स्क्रीन से शारीरिक गतिविधि का कम होना भी मोटापे का बड़ा कारण है। ब्लू स्क्रीन से मैलाटोनिन (Melatonin) हार्मोन,कम हो जाता है और उसके कारण नींद कम हो जाती है। विशेषज्ञों की मानें तो सोने से 2 घंटे पहले ये गतिविधियां बंद कर देनी चाहिए। आज लगभग हर व्यक्ति सोते सोते तक मोबाइल हाथ में पकड़े रहता है। कम नींद के कारण ग्रेलिन (Ghrelin) हार्मोन ज्यादा हो कर भूख बढ़ता है । इससे खास कर मीठा और तला खाना खाने की इच्छा बढ़ती है। भोजन में हमें इन बहुत सारी बातों की सावधानी रखनी चाहिये। एक बात जो सब अपना सकते हैं वो है कम नमक और कम चीनी या शक्कर का सेवन। इसके परिणाम तुरन्त नहीं दिखते पर अच्छे होते हैं।
मानसिक तनाव से भी मोटापा
इसी तरह मानसिक तनाव से भी मोटापा बढ़ता है। कई लोग जब मानसिक तनाव में होते हैं तो उन्हें खूब भूख लगती है। हमें मानसिक तनाव से बचना चाहिए। इससे शरीर में कार्टीसाल हार्मोन बढ़ जाता है। इससे पेट के आसपास चर्बी जमा हो जाती है। ये फैट इंसुलिन हार्मोन के असर को कम करके डायबिटीज होने की सम्भावना बढ़ा देता है। कई बार परिवार के एक से ज्यादा सदस्य मोटे होते हैं। ये अनुवांशिक होने के साथ साथ एक जैसी जीवन शैली के कारण भी होता है।
मोटापे पर काबू ज़रूरी पर कैसे
जब तक मोटे व्यक्ति को खुद यह एहसास नहीं होगा कि उसका भविष्य खतरे में है, दूसरा कोई कुछ नहीं कर सकता। बढ़ता वज़न रोकना बहुत ज़रूरी है। भविष्य में मोटापे से जीवन कितना कठिन हो सकता है इसका एहसास खुद करना पड़ेगा। समय बदल रहा है। जीवन शैली बदल रही है। आप भी बदलें। अपना खान पान बदलें। भोजन में ज्यादा प्रोटीन,फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों का समावेश करें। याने ज्यादा फल, दूध, दही, सब्जियां, अंडा, मछली और अलग अलग तरह की दालों का उपयोग करें। चावल, रोटी, मीठा और तली चीज़ें कम खायें। रोटी और चावल हमारे मुख्य खाद्य पदार्थ अवश्य हैं किन्तु आधुनिक जीवन शैली में जब हमारा शारीरिक श्रम बहुत कम हो गया है तो है हमें सचेत रहकर रोटी-चावल की मात्रा घटाकर सब्जियों और फलों की मात्रा बढ़ानी होगी। हमें ऐसी खाद्य सामग्री का उपयोग करना होगा जिसमें कैलरी कम हो और पौष्टिकता ज्यादा हो। पैकेट-बंद चीजों का सावधानी पूर्वक उपयोग करें। नियमित व्यायाम करें। सुबह या शाम टहलने जायें। तनाव से बचें।
परिवार के लोग , मित्र , शुभचिंतक आपको सिर्फ प्रोत्साहित कर सकते हैं। लेकिन मोटापे से बचने के सभी उपाय व्यक्तिगत हैं। इन्हें आपको खुद करना है। ये काम सिर्फ और सिर्फ आपकी इच्छा शक्ति से ही किया जा सकता है।
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डॉ नमिता शर्मा पेशे से चिकित्सक हैं। 25 वर्ष तक कैंटोनमेंट बोर्ड, पुणे में बतौर मेडिकल ऑफिसर काम किया। अवकाश -प्राप्ति के बाद कुछ समय तक विभिन्न सामाजिक कार्यों से जुड़ी रहीं। पिछले लगभग पाँच वर्ष से रामकृष्ण मठ (पुणे) से संबद्ध एक चैरिटेबल अस्पताल में चिकित्सीय सेवाएँ दे रही हैं और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर पढ़ती-लिखती और गुनती रहती हैं।