आज नागासाकी पर एटमी हमला हुए 80 बरस हो गए
नागासाकी और हिरोशिमा पर एटमी हमला हुए 80 बरस हो गए , क्या हमने उन हमलों से कुछ सीखा? क्या महावीर, बुद्ध, नानक और गाँधी का देश इस सम्बन्ध में कुछ ऐसा करेगा कि निशस्त्रीकरण की मुहिम में भारत को नेतृत्व मिले?
आज नागासाकी पर एटमी हमला हुए 80 बरस हो गए
विद्या भूषण अरोरा
9 अगस्त को भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरुआत के अलावा नागासाकी पर एटम-बम गिरने की तिथि के रूप में भी देखा जा सकता है, आज आठ अगस्त को अचानक यह अहसास तब हुआ जब आज अपराहन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर से कुछ मित्रों से मिलकर लौट रहा था. वहां एक खुले square में बमुश्किल पंद्रह-बीस पोस्टर-साइज़ की तस्वीरें लगीं थीं और उनमें हिरोशिमा (6 अगस्त 1945) और नागासाकी (9 अगस्त 1945) पर हुए इस अमानवीय कृत्य को कुछ हृदय-विदारक चित्रों द्वारा दर्शाया गया था. उन चित्रों को ज़्यादा गहराई से देखने का मन भी ना हुआ या यूँ कहें कि हिम्मत भी ना हुई और हम आगे चल दिए जैसे कुछ ना देखा हो. लेकिन इसका असर उल्टा ही हो रहा है. जितना हम उन चित्रों को भुलाने का प्रयास कर रहे हैं, उतना ही स्वयं को उनके पास पा रहे हैं.
शायद उन्हीं तस्वीरों को सहज ढंग से स्वीकार करने के प्रयास में हम यह आलेख भी लिख रहे हैं ताकि अगर कुछ अन्दर दबा है तो बाहर आ जाये और हम आराम से सो सकें. यह लिखने का प्रयास करना एक तरह का catharsis है अर्थात अपनी भावनाओं को बाहर आने का अवसर देने की एक कोशिश.
वापिस हिरोशिमा और नागासाकी पर आएं तो सबसे पहली बात यह कि बहाने और कारण जो भी रहे हों, अमेरिका के इस कुकृत्य को किसी भी तरह से ‘डिफेंड’ नहीं किया जा सकता. महात्मा गाँधी ने इसे अमेरिकी गुट की झूठी और खोखली विजय बताते हुए कहा था कि यदि अब भी दुनिया ने अहिंसा का रास्ता नहीं अपनाया तो समझ लेना चाहिए कि दुनिया आत्महत्या के रास्ते पर चल पड़ी है. गाँधी ने यह भी कहा कि एटम-बम अगर कुछ ख़तम नहीं कर सकता तो वह है अहिंसा!
इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि दुनिया में एटमी हथियार रहे तो उनका इस्तेमाल कभी ना कभी हो ही जायेगा. और तो और, उन हथियारों का इस्तेमाल गलती से या ग़लतफ़हमी से भी हो सकता है. यह बात ऐसे ही कहने के लिए नहीं कही जा रही बल्कि ‘शीत-युद्ध’ के दौरान एक से अधिक बार ऐसी स्थितियां आईं हैं जब गलतफहमी में एटमी हथियारों का प्रयोग हो सकता था. 1983 में नाटो के युद्धाभ्यास दौरान तो यह स्थिति बस बाल-बाल बच गई थी. इस सबके बावजूद एटमी हथियारों को समाप्त करने का कोई गंभीर प्रयास दुनिया में शायद कभी हुआ ही नहीं.
यूँ नाम के वास्ते तो संयुक्त राष्ट्र संघ में या क्षेत्रीय स्तरों पर भी एटमी हथियारों को नियंत्रित करने के लिए कई करार और संधियाँ मौजूद हैं लेकिन इन के बावजूद इस दिशा में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है. इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि नौ परमाणु हथियार संपन्न देशों (अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, भारत, पाकिस्तान, इज़रायल, उत्तर कोरिया) में से कोई भी परमाणु हथियार निषेध संधि में शामिल नहीं हुआ है. एक समय यह प्रयास शुरू हुआ था कि परमाणु सम्पन्न राष्ट्र अपने हथियार भंडारों में कटौती करेंगे किन्तु फ़िलहाल तो उल्टा ही हो रहा है और ये देश लगातार अपने एटमी भंडारों का आधुनिकीकरण कर रहे हैं. एक अनुमान के अनुसार विश्वभर में अब तक 12,000 परमाणु हथियार मौजूद हैं, जिनमें से कई हजार तो हाई अलर्ट पर हैं।
क्या आपका कभी इस बात पर ध्यान गया है कि भारत-पाकिस्तान के बीच जब भी कोई झड़प होती है तो तुरंत इस बात पर भी चर्चा शुरू हो जाती है कि ये दोनों परमाणु सम्पन्न राष्ट्र हैं और इनका झगड़ा तुरंत समाप्त होना आवश्यक है. कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि एटमी हथियारों के चलते ही यह संभव हो सका है कि पाकिस्तान से हमारी झड़पें कम होती हों या जल्दी समाप्त होती हों. लेकिन यह तर्क अपने आप में ही विकृत है क्योंकि हर समय परमाणु युद्ध के खतरे के साथ रहना कोई आदर्श स्थिति नहीं है.
एक और अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि परमाणु हथियारों से सम्पन्न इन नौ राष्ट्रों के अलावा ईरान, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देश भी हैं जो चाहें तो बहुत जल्दी एटमी हथियार बना सकते हैं.
अस्सी वर्ष पूर्व एटमी बमों के गिरने के बाद हिरोशिमा और नागासाकी पर क्या गुजरी, उसके विस्तार में जाने की बजाय हम केवल यह याद दिलाना चाहेंगे कि इन अस्सी वर्षों में एटमी हथियारों का ज़खीरा भी सैंकड़ों गुना बढ़ गया है और उनकी मारक क्षमता भी हज़ारों गुना बढ़ गई है. ऐसे में अक्लमंदी इसी में है कि दुनिया बिना देर किये हुए धरती से एटमी हथियारों के खात्मे की तरफ बढे और इस अमानवीय और राक्षसी हथियार को धरती से हमेशा के लिए मिटा दे. महावीर, बुद्ध, नानक और गाँधी के इस देश की भी इस सम्बन्ध में महती ज़िम्मेवारी बनती है, देखें कि क्या भारत को निशस्त्रीकरण की मुहिम में कभी नेतृत्व देने का अवसर मिलता है.
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विद्या भूषण स्वतंत्र लेखन करते हैं और इस वेबपत्रिका का संचालन भी।