हरसिंहपुरा की पंजाबी बेटियां
अगर आप जीवन के आठवें दशक में आ गए हों और आपकी मुलाक़ात ऐसे लोगों से हो जो आठ-दस बरस की उम्र में आपके पड़ोसी थे या गाँव में रहते थे तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी. अजीत सिंह ने अपने अनूठे अंदाज़ में यह विवरण अत्यंत रोचक ढंग से दिया है. वह हमारी वेबपत्रिका के लिए पहले भी लिखते रहे हैं. आप पूर्व में लिखे लेख उनके नाम (अजीत सिंह) पर क्लिक करके देख सकते हैं. उन्होंने कुछ लेख इंग्लिश में भी लिखे हैं जिन्हें आप Ajeet Singh पर क्लिक करके देख सकते हैं.
हरसिंहपुरा की पंजाबी बेटियां : क्यूं बार बार पूछती हैं गांव का हाल
अजीत सिंह
1947 के भारत विभाजन के बाद हरियाणा (तत्कालीन पंजाब) के करनाल ज़िले के गांव हरसिंहपुरा में आकर बसे पंजाबी परिवारों की लड़कियां अपने जीवन के प्रारंभिक दस पंद्रह साल गांव में बिता कर शादी के बाद या फिर परिवारों के ही शिफ्ट हो जाने के बाद सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, पानीपत, रोहतक, दिल्ली और अनेक शहरों में चली गईं थी। वे गांव छोड़ गईं थीं पर हरसिंहपुरा गांव आज भी उनके दिलो दिमाग़ में बसा हुआ है। ज़िक्र आते ही वे अपने बचपन की यादों में खो जाती हैं। सौ तरह के सवाल पूछती हैं... बताओ वो लड़का कैसा है, वो लड़की कैसी है जो उनके साथ गांव के स्कूल में पढ़ते थे...
इन लड़कियों से मेरा सामना हाल ही में दिल्ली के एक श्रद्धांजलि सभा में हुआ जहां मैं अपने परम मित्र स्वर्गीय प्रेमनाथ भाटिया के परिवार को सांत्वना देने के लिए गया था। मैं शायद 50 साल बाद उन व्यक्तियों से मिलने वाला था जो बरसों पहले मेरा गांव हरसिंहपुरा छोड़ कर जा चुके थे। उनके चेहरे-मोहरे बदल चुके होंगे। मुझे वहां पहचानेगा कौन, यह सवाल मेरे मन में घूम रहा था।
एक कोने में जहां कुछ पुरुष, महिलाएं और युवा खड़े थे, वहां जाकर मैंने अपना परिचय देना ही उचित समझा, इस उम्मीद में कि शायद कोई जानकार मिल जाए। मैने कहा, मैं अजीत सिंह गांव हरसिंहपुरा से। सभी ने उत्सुक हो मेरी तरफ देखा और जैसे तसल्ली के लिए पूछा, हरसिंहपुरा से? बस फिर तो बिन पूछे सवालों के उत्तरों की झड़ी जैसी लग गई। सवाल पूछने वालों में महिलाएं ज़्यादा उत्सुक नज़र आईं।
एक महिला ने अपना परिचय देते हुए कहा कि उसका जनम हरसिंहपुरा में ही हुआ था। तीसरी तक पढ़ाई गांव के स्कूल में ही की थी। मास्टर पन्नालाल बड़े अच्छे टीचर थे। फिर हमारा परिवार सिरसा आ गया था।
अब तो हरसिंहपुरा बहुत बदल गया होगा। तब से जाना नहीं हुआ। साठ साल से ऊपर हो गए.....महिला की उम्र सत्तर साल होगी।
एक दूसरी महिला ने कहा, कुम्हारों का लड़का रामकुमार मेरे साथ पढ़ता था पांचवीं तक। त्यागी चौपाल में चल रहे स्कूल के साथ उसके घर की दीवार थी। मैने बताया कि रामकुमार टेलीकॉम महकमे से सुपरिटेंडिंग इंजीनियर के पद से कोई दस साल पहले रिटायर हुआ और अब वो भिवानी में रहता है। उसका कहना था, बड़ी अच्छी बात है उसने बड़ी तरक्की की। उसने बताया कि उसके अपने बेटा बेटी भी खूब तरक्की कर रहे हैं।
जब एक महिला ने मुझे बताया कि वह प्रेम भाटिया के चाचा शालिग्राम की बेटी है, तो मैने पूछा कि क्या वह शांति है जो मेरे साथ हरसिंहपुरा के स्कूल में पढ़ती थी। उसने उदास मन से कहा, नहीं, मैं शांति की छोटी बहन हूं। शांति का पांच साल पहले सिरसा में स्वर्गवास हो चुका है।
समारोह में बात फ़ैल गई कि कोई हरसिंहपुरा से भी आया है। फिर तो पूरा मेला ही लग गया। एक बुजुर्ग महिला ने पूछा , आपके पिता का क्या नाम है। मैंने बताया, मुगला राम । वो तपाक से बोली , वो तो बड़े चौधरी थे। गांव में घुसते ही बड़ी बैठक थी। हमारे बड़े बताते थे कि चौधरी मुगला राम ने 1947 में पाकिस्तान से गांव में आए परिवारों की बड़ी मदद की। वे उन्हें गांव का गांधी कहते थे।
प्रेमनाथ भाटिया के भाई रमेश की पत्नी नरेश भी वहां आ गई और 1993 में मेरी बेटी की गांव में आयोजित शादी में शामिल होने के किस्से सुनाने लगी। कहने लगी, मैंने मेकअप किया था आपकी बेटी का। मैं चाहती थी कि एम ए पढ़ी लड़की घूंघट में शादी क्यों कराएगी। पर आप सबने कहा कि गांव में तो घूंघट करना ही पड़ेगा। वर्ना समाज नाराज़ होगा....
मैंने हां कहते हुए बताया कि बेटी सुनीता हिसार के हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में प्रोफेसर है और वह पांच साल बाद रिटायर भी हो जाएगी।
ऐसे ही बातें चलती रहीं। कई ने मेरे साथ फोटो लिए और कई ने मोबाइल नंबर नोट किए।
वे लड़कियां जिन्हें मैंने दस साल से भी कम आयु की देखा था, उन्हें साठ और सत्तर वर्ष की आयु में पहचानना असंभव सा था। स्वर्गीय प्रेम भाटिया की छोटी बेटी मधु और दामाद उमेश भाटिया मेरा परिचय कराते गए और मिलने वाले हरसिंहपुरा गांव से अपनी यादें सुनाते गए।
कुछ बुजुर्ग महिलाओं का परिचय कराते हुए मधु ने कहा, ये हमारी बुआ पुष्पा और सुमित्रा हैं, हमारे दादा रामलाल भाटिया के भाई शालिग्राम की बेटियां; ये सफेद सूट में बुआ ममता हैं, दूसरे दादा गिरधारी लाल की बेटी; ये चाचा कस्तूरी लाल हैं, दादा शालिग्राम के बेटे; ये बिट्टू चाचा, दादा गिरधारी लाल के बेटे। हमारे मँझले चाचा सुभाष अब नहीं हैं, ये उनके तीन बेटे सचिन, अमित और अजय भाटिया हैं। पापा प्रेम भाटिया ने हमारे कितने ही बहन भाइयों के घड़ियों के कामयाब बिजनेस स्थापित कराए।
यह सिलसिला चल ही रहा था कि एक युवक मेरे पास आया और कहने लगा कि दूसरी तरफ बैठी एक बुजुर्ग महिला मुझे बुला रही है। मैं उधर गया तो कहने लगी, कैसा है हरसिंहपुरा। मैं वहां कई साल रही। गोपाले बनिए की दुकान के आगे त्यागी मोहल्ले में हमारे चाचा की किरयाने की दुकान थी। उन्होंने गांव सबसे बाद में छोड़ा था। अब गांव में शायद कोई पंजाबी परिवार नहीं है।
श्रद्धांजलि सभा में पंडित जी ने बड़े ही स्वर में भजन सुनाए। कुछ व्यक्तियों ने 81 वर्षीय स्वर्गीय प्रेमनाथ भाटिया की यादों को ताज़ा करते हुए उनके मानवीय गुणों और सामाजिक कार्यों का उल्लेख किया। मेरा जी भी कुछ कहने को था पर यह कार्यक्रम में शामिल नहीं था।
श्रद्धांजलि सभा के बाद चाय के समय फिर चर्चा हरसिंहपुरा की चल पड़ी। कई बुजुर्ग महिलाएं अपनी बहूओ बेटियों व पोतियों को मिलाने लाई। एक पोती ने कहा कि उसने मास कम्युनिकेशन किया है। उसने बताया कि प्रेम भाटिया के बारे में मैने दो साल पहले जो लेख व्हाट्सएप पर लिखा था और जिसे सिरसा के दैनिक समाचार पत्र पलपल ने छापा था, उसने उसे पढ़ा था और फेसबुक पर डाला था। पास खड़ी कई महिलाओं ने कहा कि वो लेख तो उनके फोन में भी है। भाटिया बिरादरी के व्हाट्सएप ग्रुप में भी है। अब परिचय और गहरा गया था। एक ने कहा कि आप बहुत अच्छा लिखते हैं। मैने कहा, आकाशवाणी का,दूरदर्शन का डायरेक्टर रहा हूं। रिटायर हुए 18 साल हो गए। पर कुछ पत्रकारिता जानता हूं, कुछ लिखता रहता हूं।
सभा समाप्ति पर लोग जाना शुरू हो गए थे। मुझे भी वापिस हिसार आना था। भाटिया परिवार के सदस्यों को प्रणाम कर अलविदा कहा। दिल्ली यमुना पार के प्रीत विहार से यमुना नदी का पुल पार कर भीड़ भरे बहादुरशाह जफर मार्ग से होते हुए इंडिया गेट पहुंचे तो फोन आया कि सिरसा से पलपल समाचार पत्र के मुख्य संपादक सुरेंद्र भाटिया मुझसे मिलना चाहते थे। मुझे पहले पता होता तो ज़रूर मिलता। उन्होंने ही तो मेरा संपर्क प्रेम भाटिया के परिवार से कराया था। टेलीफोन नंबर दिया था। उनसे मिलने के लिए मैं बहुत उत्सुक था। जल्द मिलने की आशा रखता हूं। फिलहाल तो मेरे मस्तिष्क में हरसिंहपुरा की पंजाबी लड़कियों के किस्से ही तैर रहे हैं। उनका संघर्ष उनके माता पिता से कम नहीं है। वे इस बात की जीती जागती तस्वीर हैं कि संकट में शिक्षा , हौसला और संघर्ष बहुत काम आते हैं। बस यही कामना है कि जुग जुग जीएं हरसिंहपुरा की पंजाबी बेटियां और फूलें फलें उनके परिवार। कभी जाकर देखें अपना पुराना गांव और मिलें अपने सहपाठियों से।
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लेखक अजीत सिंह 2006 में दूरदर्शन केंद्र हिसार से समाचार निदेशक (डायरेक्टर न्यूज़) के पद से सेवानिवृत्त हुए। वह अब एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. सम्प्रति हिसार में ही रहते हैं. 9466647037 ajeetsingh1946@gmail.com