पारुल हर्ष बंसल की दो नई कविताएं...
पारुल हर्ष बंसल इस वेब पत्रिका के लिए नई नहीं हैं। उनकी कवितायें पहले भी इस वेबपत्रिका में आप कई बार पढ़ चुके हैं। स्त्री-अस्मिता पर कविताएं लिखना पारुल को विशेष प्रिय है। आइए देखिए उनकी ये दो नई कविताएं।
*आखिरी भूल*
नहीं हूँ मैं कोई बावड़ी
जहां तुम आए
सुस्ताए, चुल्लू भर पानी पिया
मन हल्का किया
या गुनगुनाया कोई मर्सिया
लेकिन नहीं किया वादा
आखरी सांस तक साथ निभाने का
मैं तुममें कुछ अपना खोजने लगी
तुम्हारी क्षणिक उपस्थिति से
अपने मन के रिक्त स्थानों को ,
जिन्हें कोई आज तक न भर सका
उन्हें भरा समझ
हल्का महसूसने लगी ,
शायद वही भूल थी मेरी
जिस तरह मैं धॅंसी हूँ धरा के सीने में
उसी तरह मैंने तुम्हें पनाह दी ....
(नासिरा शर्मा का कहानी संग्रह पत्थर गली पढ़ते पढ़ते)
*स्त्रियों की भूख*
इस धरती पर शायद स्त्रियाँ ही
सबसे अधिक खाती और पीती हैं
अब चाहे वह कैसी भी मार हो
या कितनी ही विकट परिस्थितियों का गरल हो
इन्हें अपने भीतर समोने की अद्भुत कला
को सही दिशा देने के लिए निर्मित है
अनगिनत बावड़ियाँ
जो इनकी देह में ईश्वर ने रोप रखीं हैं
शायद यह स्त्रैण गुणों में
अव्वल नंबर पर ही रहा होगा...
इतना सब खाने- पीने के बाद भी
क्यों इनका पेट नहीं भरता
बॅंधी रहती हैं उसी खूँटे से
न जाने किस आस में
जब रखती हैं व्रत और उपवास
बस उसी दिन
नहीं खाती और पीतीं कुछ
सब बचा हुआ घूमता है घर में इधर से उधर
और फिर उन्हीं के पास आ जाता है।
क्या हर आखिरी बची हुई वस्तु उन्हीं के लिए बनी है?
क्या वही निपुण है हर उपेक्षा को सहने के लिए...?
क्या उनकी अस्थि मांस-मज्जा अभ्यस्त है
निकृष्ट वस्तुओं के ग्रहण के लिए....?
क्या परोपकार का इंजेक्शन
सिर्फ उनकी ही नसों में लगाया गया है..?
क्या उनकी मनोदशा हमेशा तत्पर है
हर आवेग को समेटने के लिए...?
यदि हाँ,
तो वह भी रत्नगर्भा से कम नहीं...
जो अनुकूल वातावरण और
उचित खाद पानी ना मिल पाने के
बावजूद भी,
तलछट को हटाकर
सींचती है
देश के भविष्य को ....

(पारुल हर्ष बंसल मूलत: वृन्दावन से हैं और आजकल कासगंज में हैं। इनकी कवितायें स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं और वेब पोर्टल्स पर प्रकाशित होती रही हैं। स्त्री-अस्मिता पर कविताएं लिखना इनको विशेष प्रिय है। इनकी कवितायें पहले भी आप रागदिल्ली.कॉम पर पढ़ चुके हैं।)