राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस - औपचारिकता से आगे बढ़ना होगा
पहली जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस या National Doctors’ Day के रूप में मनाया जाता है. इसके बारे में आपको डॉ नमिता शर्मा नीचे के लेख में विस्तार से बता रही हैं. सम्पादकीय टिप्पणी के माध्यम से हम केवल इतना जोड़ना चाहेंगे कि स्वास्थ्य और चिकित्सा बहुत ही व्यापक विषय हैं और देश में इनकी जैसी हालत है, उसे देखते हुए कहना होगा कि राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस जैसे प्रतीकात्मक उत्सवों को हमें एक अवसर की तरह प्रयोग करना चाहिए जब हम इनसे जुड़े तमाम सवालों पर गंभीरता से विचार करें और भविष्य के लिए बेहतर रास्तों की तलाश करें. उदाहरण के लिए हम चिकित्सक दिवस तो मना रहे हैं किन्तु क्या हमें याद है कि देश की राजधानी दिल्ली में ही एक सरकारी मेडिकल कॉलेज का यह हाल है कि वहाँ के हॉस्टल में जिसकी क्षमता दो सौ से ढाई सौ मेडिकल छात्रों की है, वहाँ तीन हज़ार से भी ज़्यादा छात्र रह रहे हैं? इस हॉस्टल में एक-एक कमरे में छह-सात छात्र रह रहे हैं और इसके अलावा बहुत से छात्रों को कॉरिडोर में भी सोना पड़ रहा है. बहरहाल, यह तो केवल एक उदाहरण है, स्वास्थ्य और शिक्षा तो ऐसे विषय हैं जिन पर बहुत कुछ किया गया है लेकिन जितना किया गया है, उससे कई गुना और करने की आवश्यकता है.
राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस : औपचारिकता से आगे बढ़ना होगा
डॉ नमिता शर्मा
मैंने जब डाक्टरी की पढ़ाई शुरू की थी, तब तक मुझे मालूम नहीं था कि डाक्टरों का भी कोई दिवस होता है। हमारे देश मे 1 जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। ये दिवस डा बिधान चन्द्र राय की स्मृति और सम्मान में मनाया जाता है।
डा बिधान चन्द्र राय एक कुशल राजनीतिज्ञ और पारंगत डाक्टर थे। उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में भी हिस्सा लिया था। संयोग देखिये उनका जन्म 1 जुलाई 1882 को हुआ था। उनकी पुण्यतिथि भी 1 जुलाई की ही है। सन् 1962 में उनका देहान्त हुआ।
स्वतंत्रता के बाद स्वास्थ्य सेवाओं, अस्पतालों और चिकित्सा की शिक्षा से जुड़ी योजनाओं में उनका बड़ा योगदान था। जनवरी 1948 से जुलाई 1962 तक वे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे। वह एक बहुत लोकप्रिय राजनेता भी थे। स्वतंत्रता के उपरांत पश्चिम बंगाल को बनाने और विकसित करने में उन्होंने बहुत मेहनत की। उनके योगदान को देखते हुए उन्हें 1961 में भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया। औपचारिक रूप से उनके सम्मान में 1991 की 1 जुलाई को उनकी जयंती को चिकित्सक दिवस (National Doctors’ Day) घोषित किया गया।
चिकित्सा एक बहुत प्रतिष्ठित पेशा है। डाक्टरों और उससे जुड़े हुए लोगों का समाज में बहुत आदर है। यहां तक कि उन्हें भगवान माना जाता है। किसी बीमार व्यक्ति को उसके शारीरिक और मानसिक कष्ट से राहत दिलवाने वाले के लिये इससे अच्छा सम्बोधन और क्या हो सकता है। एक समय डाक्टर और रोगी का रिश्ता सिर्फ रोग निदान तक सीमित नहीं था। इस रिश्ते में दोनों ओर से सद्भावना शामिल रहती थी। लोगों के मन में अपने डाक्टर के प्रति श्रद्धा और स्नेह का भाव रहता था।
जैसे जीवन में बदलाव एक सहज प्रक्रिया है इस क्षेत्र में भी धीरे-धीरे बहुत परिवर्तन हुए। एलोपैथिक चिकित्सा में हमारे देखते देखते बहुत उन्नति हुई है। अब शरीर के लगभग सब अंगों का प्रत्यारोपण होने लगा है। इलाज से जुड़ी सभी विधाओं में बहुत तरक्की हुई। डाक्टरी पेशे में भी परिवर्तन होने लगा। बहुत कुछ अच्छा ही हुआ लेकिन भौतिकतावाद की जिस पागल दौड़ में समाज के हर अंग में बहुत सी विकृतियाँ आईं हैं, उसी तरह डॉक्टरी के पेशे में भी कुछ खराबियाँ आईं हैं. वैसे सच कहें तो बाज़ारवाद की जो भी कमियां होती हैं, वो सभी दवा उद्योग में भी आईं हैं और उन्हीं खराबियों का खामियाज़ा चिकित्सको को भी भुगतना पड़ा. फिर दवाएं तो मंहगी होती ही गईं, साथ ही नई-नई जांचें भी। डाक्टरी की पढ़ाई भी कम महंगी नहीं होती और ये अब सबके बस की बात नहीं रही। MBBS की डिग्री पाने में 6/7 साल लग जाते हैं। बहुत परिश्रम लगता है। खर्चे की बात करें तो लाखों रुपये लग जाते हैं। समाज ने चिकित्सा क्षेत्र को व्यवसाय मान लिया और डाक्टरों को पैसा कमाने की मशीन।
इन बदलती हुई परिस्थितियों का रोगी और चिकित्सक के बीच आपसी व्यवहार पर भी असर पड़ा। एक दूसरे के प्रति अविश्वास बढ़ता गया और यही अविश्वास बहुत बार आक्रोश का रूप लेने लगा। रोगी फीस देने लगा और डाक्टर उपचार। डाक्टर एक प्रोवाइडर बन कर रह गये। अस्पतालों में तोड़ फोड़ डाक्टरों के साथ बत्तमीज़ी, मार पीट यहां तक की जानलेवा हमले भी हुए। डाक्टर के अपने काम की जगह भी सुरक्षित नहीं रही। एक अध्ययन से पता चलता है कि हजा़र में से लगभग 756 चिकित्सकों को काम पर किसी न किसी तरह की हिंसा का सामना करना पड़ता है। ये सिर्फ डाक्टरों के लिये ही नहीं बल्कि पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था के लिये चिंता का बात है। डॉक्टर्स की सुरक्षा के लिए एक केंद्रीय कानून की मांग उठती रही है किन्तु अभी तक इस विषय पर कोई देशव्यापी कानून नहीं बना है. हाँ, कुछ राज्य सरकारों ने जैसे तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र ने इस पर अपने कानून बनाये हैं.
इस वर्ष की चिकित्सक दिवस की थीम इसी बात को ध्यान में रख कर तय की गयी है। "मास्क के पीछे देखभाल करने वालों की देखभाल कौन करे” (Behind the Mask: Who Heals the Healers?) ये इलाज करवाने वालों को सोचना समझना होगा। उनके काम के घंटों का कोई हिसाब नहीं होता। एक मरीज के उपचार में उन्हें भी तनाव होता ही होगा क्योंकि उनकी हर सम्भव कोशिश यही रहती है कि जो अपना इलाज करवाने आया है वो संतुष्ट लौटे।
अस्पतालों में चिकित्सक दिवस पर अनेक आयोजन होते हैं। उन्हें सुरिचिपूर्ण तरीके से सजाया जाता है। विभिन्न विषयों पर सेमिनार होते हैं। वरिष्ट नागरिक मरीजों का सम्मान किया जा है। बच्चों के वार्ड में मिठाई फल वगैरह दिये जाते हैं। केक भी काटी जाती है। लेकिन इस सबके पीछे जो मुख्य पात्र होता है अर्थात डॉक्टर उसकी तरफ किसी का ध्यान इस नजरिये से नहीं जाता कि इसे भी देखभाल की ज़रूरत हो सकती है.
डाक्टर वह व्यक्ति है जिसके पास मरीज़ बहुत आशा ले कर जाता है। डाक्टर के चेहरे की मुस्कुराहट देख कर उसकी आधी बीमारी और चिन्ता दूर हो जाती है। उसे लगता है वह सही जगह पर आ गया है।
राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस पर यही कामना है कि हम इस वर्ष की थीम को सार्थक करने में सहयोग करें। मास्क के पीछे छिपे व्यक्तित्व को पहचाने। वो हमारे स्वास्थ्य की देखभाल करते हैं हमें उनकी परवाह करना चाहिए।
वे एक तरह से हमारे स्वास्थ्य के रखवाले हैं। हमें उन्हें पूरा सम्मान देना चाहिए। उनकी सुविधा असुविधा का ख्याल रखना चाहिए। हमारे स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले चिकित्सकों को, जिन्हें हम डाक्टर साहब कहते हैं , उन्हें चिकित्सक दिवस की अनेक शुभकामनाएं।
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डॉ नमिता शर्मा पेशे से चिकित्सक हैं। 25 वर्ष तक कैंटोनमेंट बोर्ड, पुणे में बतौर मेडिकल ऑफिसर काम किया। अवकाश -प्राप्ति के बाद कुछ समय तक विभिन्न सामाजिक कार्यों से जुड़ी रहीं। पिछले लगभग पाँच वर्ष से रामकृष्ण मठ (पुणे) से संबद्ध एक चैरिटेबल अस्पताल में चिकित्सीय सेवाएँ दे रही हैं और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर पढ़ती-लिखती और गुनती रहती हैं।