मार्टिन हाईडेगर की दार्शनिक कविताएँ (३)
Thought poems संग्रह में हाईडेगेर, एक अस्तित्ववादी दार्शनिक होने के नाते, मानवीय अस्तित्व की अभिव्यक्ति बिना किसी मुखौटे के उजागर करने का प्रयास करते है. अस्तित्व को खंगालने में वे दैनिक गतिविधियों के साथ साथ आसपास के प्राकृतिक परिवेश का भी उल्लेख करना नहीं भूलते हैं. ‘मैदानी हवा’, हो ‘दैनंदिन क्रिया कलाप’, हो ‘होने और न-होने’ का एहसास हो, ‘संसार की लय में बंधना’ हो, ‘अपार्थिव लीला’ हो – इन सभी कविताओं में, हाईडेगेर सर्वत्र प्रतीकों के माध्यम से गहराई में जाकर अस्तित्व की तलाश करते नजर आते है. परिणामस्वरूप वे एक ऐसे मोड़ पर आकर थम जाते है, जहाँ मानवीय अस्तित्व प्रकृति के साथ अपार्थिव नृत्य करने को विवश हो जाता है. आध्यात्मिक उड़ान का उद्देश्य न होते हुए भी प्राच्य दार्शनिकों का आध्यात्मिक स्पर्श स्वतः झलक उठता है. ‘चिंतन’ उनके लिए तर्कशास्त्र में व्यवहृत science of thought न होकर एक आत्मीय अनुभूति है, जो सत्य को नग्न रूप में उपस्थित करती है.
अक्सर अदालतों में में देखा जाता है, व्यक्ति कसूरवार हो या न हो, वकीलों का काम तर्क के माध्यम से अपने पक्ष का समर्थन करना होता है, सत्य घटना से कहीं ज्यादा वे एकतरफा पक्ष समर्थन में लगे रहते हैं. इस बौद्धिक व्यायाम से अस्तित्व के चिंतन को, हाईडेगर, पृथक करके देखते है. उनके अनुसार थोथा तर्क हमें उलझन में डाल देता है. वस्तुतः अस्तित्व के चिंतन की अभिव्यक्ति निरंतर प्रश्नों और उनके उत्तरों की टकराहट के माध्यम से घटती है, जिससे जूझते हुए व्यक्ति अपने अस्तित्व की पहचान करने में सक्षम होता है. हाईडेगेर की चिंतन प्रक्रिया की विशेषता यह है कि वह हमें विरोधों के साथ जीना सिखाती है. जीवन के घात-प्रतिघातों और द्वंद्वों को झेलता हुआ चिंतन गतिशील होता है, जो हमारे अस्तित्व को विस्तार देता है.
साधारणतः देखा जाता है कि किसी कथन की सत्यता इस बात पर निर्भर करती है कि कथन के साथ वस्तु का तालमेल है अथवा नहीं. उदाहरण के लिए यदि किसी ने कहा ‘मेज़ पर दस हाथी हैं’ तो सचमुच मेज पर दस हाथी होने चाहिए तभी यह वाक्य सत्य हो सकता. लेकिन हाईडेगेर के अनुसार सत्य का अर्थ अस्तित्व की गांठों को खोलना है, जो ‘मानवीय अस्तित्व’ (Dasein) यानि ‘है’ (Being) और ‘हो रहे है’ (becoming) ̶ के बीच निरंतर एक वार्तालाप या संवाद है, ताकि ‘हो रहे है’ का स्वरूप कहीं धुंधला न हो जाये. अस्तित्व का यह खेल हमारी अनंत सम्भावनाओं को अभिव्यक्त करता हुआ आगे बढ़ता है. हाईडेगेर के लिए हमारा अस्तित्व संसार के साथ एक ऐसी लय से बंधा रहता हैं कि बिना इस युगल बंदी के अस्तित्व बे-सुरा और बे-ताला हो जाता. जिस तरह अभिनेता बिना किसी अभिनय के अभिनेता नहीं कहला सकता, उसी तरह बिना संसार के मानवीय सत्ता का पूर्ण विकास नहीं हो सकता.
आधुनिक तकनीकी विज्ञान की आलोचना करते हुए वे कहते है कि विज्ञान की चिंतन पद्धति एकांगी होने के कारण खण्डों या टुकड़ों (reductionist) में सोचने के लिए मजबूर करती है, जो सामग्रिक चिंतन का हनन कर देती है. यदि हम चिंतन की गहराई में जाना चाहते हैं तो हमें तकनीकी पद्धति को छोड़ कर कवित्व की सामग्रिक दृष्टि को अपनाना चाहिए. कविता चिंतन के मार्ग को न केवल प्रशस्त करती हैं, बल्कि उसमें प्राण भी फूंक देती है. कविता में अनुविद्ध भाषा, संवाद के अतिरिक्त, हमें एक नई उड़ान भी देती है. जब कभी अँधेरा हमें ग्रास करता है, तो हम उजाले की तलाश में निकलते है, जो हमें कविता से प्राप्त होती है. हाईडेगेर एक विरले दार्शनिक है जो अपनी कविता में पृथिवी की परछाई का आभास रात की छाया के रूप में देखते हैं.
वे मानते हैं कि हम सबमें एक जबरदस्त कवि बैठा है, जो हमारे अस्तित्व की सत्यता को अभिव्यक्ति देता हैं. कविता अस्तित्व की आवाज पर सृजनशील क्षमता का आह्वान कर, हमें जंगली और वहशी होने से बचा लेती है. हाईडेगेर विश्वास करते हैं कि हमारा कपटहीन अस्तित्व हमें नृत्य की उस चरमावस्था में पहुँचा देता है, जिसे वे अपार्थिव लीला की संज्ञा देते है, जो हमें ‘कवि की तरह हो जाने का’ निमंत्रण देता है, ताकि हम सत्य और अस्तित्व के ब्रह्मांडीय नृत्य का अंग बन सके, जिसमें सितारों को हाथों में पकड़ना, पत्तियों की सरसराहट को महसूस करना, तारों की टिमटिमाहट के साथ टूटी टेबल, धूल भरी खिड़की, चाकू, सुराही इत्यादि भी शामिल हो.
१
चिंतन (Thinking)
चिंतन निकटता का एक एहसास है,
निःशब्द कृतज्ञता,
चिंतन शालीन कवच है,
एक दुःसाहसी परिकल्पना.
घोर संकेतों का एक घुमावदार रास्ता
‘होने’ और ‘कुछ न होने’ के बीच.
बुराई से, पीड़ा से
कभी-न-भागना ही चिंतन है.
चिंतन धारण करना है, छीनना नहीं,
एक बेबाक प्रश्न,
स्वयं-को-बोलने-देना चिंतन है,
एक शीतल पेय.
राह पे, एक हलकी चमक
अनगिनत रोशनियों की.
नाहक गुलाबों सी लिखी कविताएँ,
घाटियों और नदियों की प्रशंसा में.
चिंतन आलम्ब है सर्व-विमुक्त का,
बेजुबानों की पुकार का,
ताकि नश्वर प्राणी जीवित रह सके
अभीष्ट लक्ष्य के उपचार हेतु.
२
अपार्थिव लीला (Heaven play)
सफ़ेद बादलों के पहाड़ जब
पीछा करते हुए नील-आकाश को पार करे,
तब भी तुम्हारे लिये यह कहना बाकी रहेगा
अन्तरिक्ष बढ़ रहा है,
या अन्तरिक्ष रौशन करता है
या फिर एक को दूसरे में नकारा जाय,
या एक में दूसरे को तराशा जाय,
यह बस उपहार और अभिहार का खेल है
मुक्त फिजूलखर्ची के परे.
३
मैदानी हवा (Meadow Wind)
विश्राम में कोई बाधा न हो
गर्मियों की दोपहर
पूर्वानुमान कुछ नहीं
अनजान हवाएँ
घास को सहलाती हुई
तरंगों में नरम होती
एक फिसलन, बस थोड़ी सी,
थपेड़े अब बहुत ज्यादा,
लौटने का एहसास,
थोड़ी देर के लिए रिहा कर,
फिर सख्ती से खारिज कर दिया गया,
खोया नहीं, लेकिन रहेगा भी नहीं,
बमुश्किल एक शुरुआत,
पार करने की शुद्ध राहत सिर्फ.
४
क्या हम इस दुनिया की लय में बंधे हैं?
क्या हम इस दुनिया की लय में बंधे हैं?
क्या हम प्रथागत बंधनों में झूल रहे हैं?
केवल जो बंधे हैं वही सुन सकते है,
इस बात का ध्यान रखना चाहिए.
एक बात पर गौर करें:
क्या सुधार अभी भी सार्थक हैं?
संसार और उसके भ्रमों में?
उलझे हुए इरादों पर हंसें
लेकिन अपने छिपे हुए ‘होने’ की
पगडंडी पर चलते रहें.
पहले तो यह अपार्थिवता को अवरुद्ध करता है
संसार की आड़ में रह कर.
हमारे लिए तो वह पिरोनेवाली है
जो हमें अपने आसपास के माहौल से जोड़ती है.
५
दिन का चिंतन कार्य (Day’s Work of Thinking)
जुड़ने वाले का सम्मान
सत्ता से जुड़ी एक गाथा.
जुताई का धीमापन
चमकीले तारों के बीजों की बुनाई.
चरवाहे का अकेलापन
बिना राहत के दर्द का एहसास.
बेसुधों के दिन का कार्य,
उन लोगों का चरम जंगलीपन.
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(डॉ मधु कपूर कलकत्ता के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में दर्शनशास्त्र की प्रोफेसर रही हैं। दर्शनशास्त्र के अलावा साहित्य में उनकी विशेष रुचि रही है। उन्हीं के शब्दों में, "दार्शनिक उलझनों की गुत्थियों को साहित्य के रास्ते में तलाशती हूं।" डॉ कपूर ने हिंदी से बंगला में कुछ पुस्तकों का अनुवाद किया है और कुछ कविता संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं। दर्शन पर उनके निबंधों का एक संग्रह Dice Doodle Droll Dance हाल ही में दिल्ली में सम्पन्न हुए विश्व पुस्तक मेला में रिलीज़ हुआ है।)