मजदूर आंदोलन में सोशलिस्ट तहरीक की भूमिका - भाग 5
मजदूर आंदोलन में सोशलिस्ट तहरीक की भूमिका - भाग 5
प्रोफेसर राजकुमार जैन
प्रोफेसर राजकुमार जैन के इस लेख के पहले चार भागों में आप पढ़ चुके हैं कि किस प्रकार कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के स्थापना सम्मेलन में कांग्रेस के एजेंडा पर मज़दूरों और किसानों के हितों के सर्वोपरि रखने के प्रयास शुरू हो गए थे और कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के प्रथम सम्मेलन में मज़दूरों से संबंधित प्रस्ताव में किस तरह से बहुत से प्रगतिशील कदमों की सिफारिश की गई। पिछली किश्तों में डॉ लोहिया और जयप्रकाश नारायण (जे पी) की मज़दूरों और कामगारों के लिए प्रतिबद्धता की बानगी देखने को मिली। आपने यह भी पढ़ा कि कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी कांग्रेस से अलग हो गई और इधर 1948 में सोशलिस्टों के प्रभाव तले काम कर रहे इंडियन लेबर फेडरेशन और हिंद मजदूर पंचायत को मिलाकर एक नया मजदूर संगठन बनाया गया और इसका नाम 'हिंद मजदूर सभा' रखा गया। इस किश्त में आप पढ़ेंगे कि सोशलिस्ट जहाँ कामगारों की ज़मीनी लड़ाई में आगे रहे है, वहीं आंदोलन के नये औजार और उसके वैचारिक पक्ष पर भी लीक से हटकर नये परिपेक्ष में मजदूरों के अधिकारों , चार्टर .मांगपत्र को भी गहन छान-बीन कर तथ्यों पर आधारित हकीकत से जोड़कर प्रस्तुत करते आये है। प्रस्तुत है पाँचवीं किश्त।
1952 के आम चुनाव से पहले सोशलिस्ट पार्टी ने अपना घोषणा पत्र 'वि बिल्ड फॉर सोशलिज्म” अंग्रेजी में तथा “समाजवादी निर्माण की ओर” हिंदी' शीर्षक से प्रकाशित किया। इसमें देश के उद्योगों को तीन वर्गों में विभाजित किया। राष्ट्रीयकृत सेक्टर, मध्य दर्जे के गैर सरकारी उद्योग के सेक्टर, सहकारी सेक्टर, घोषणा पत्र में यह मांग की गई थी कि क्रेडिट इंस्टीट्यूशंस और बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण हो, वस्त्र उद्योग, चीनी और सीमेंट उद्योग जिनकी आम आदमी को काफी मात्रा में आवश्यकता होती है उन्हें सार्वजनिक सेक्टर में रखा जाए। भारी उद्योग जैसे लोहा, इस्पात, बिजली, पावर, भारी रसायन, खान, जहाजरानी और रेलवे राष्ट्रीयकृत वर्ग में होना चाहिए। इन उद्योगों का प्रबंधन पूर्ण रूप से राज्य के हाथ में होना चाहिए। शेष उद्योगों को छोटे उद्यमियों में से ऐसे लोगों के हाथ में दिया जाना चाहिए जिनमें उद्योग के संगठन की क्षमता हो और जिन्होंने अनिश्चितता के समय में भी जोखिम उठाने की क्षमता दिखाई है।
सोशलिस्ट जहाँ कामगारों की ज़मीनी लड़ाई में आगे रहे है, वहीं आंदोलन के नये औजार और उसके वैचारिक पक्ष पर भी लीक से हटकर नये परिपेक्ष में मजदूरों के अधिकारों , चार्टर .मांगपत्र को भी गहन छान-बीन कर तथ्यों पर आधारित हकीकत से जोड़कर प्रस्तुत करते आये है। काग्रेसं सोशलिस्ट पार्टी के 84वे स्थापना दिवस (17 मई) के अवसर पर समाजवादी समागम की ओर से “समाजवादी घोषणा” पत्र प्रकाशित किया गया तथा इस दिशा में क्या होना चाहिए उसको भी रेखांकित किया गया। .
चार्टर में सरकार की मजदूर सम्बन्धित नीतियों का निचोड़ इन शब्दों में किया गया कि सरकार एक तरफा तरीकों से श्रम सुधारों के नाम पर वर्तमान श्रम कानूनों में संशोधन कर अपने कार्यक्रमो को गतिशीलता के साथ लागू कर रही है।.सरकार ने 44 केन्द्रीय श्रम कानूनों को समाप्त कर 4 कामगार एवं जन विरोधी, नियोजक समर्थक श्रम संहिताएँ औद्योगिक सम्बन्धो पर श्रम संहिता, वेतन पर श्रम संहिता, सामाजिक सुरक्षा पर श्रम संहिता तथा स्वास्थ्य एवं सुरक्षा पर श्रम संहिता बनाने का निर्णय ले लिया है। कुछ राज्य सरकारों ने कुछ मूलभूत श्रम कानूनों जैसे कारखाना कानून, औद्योगिक विवाद. अधिनियम ठेका कामगार कानून आदि को संशोधित कर दिया है। जन विरोधी, श्रमिक विरोधी नियोजन समर्थक उक्त संसाधनों सॉरी का उद्देश्य वर्तमान श्रम कानून में लंबे संघर्ष से प्राप्त श्रमिक हित वर्धक प्रावधानों को शिथिल संशोधित और समाप्त करना है।
हमारे देश में कार्यरत लाखो खेतिहर मजदूर अत्यंत दयनीय स्थिति में कार्य कर रहे है, उन्हें असीमित घंटे कार्य करना पड़ता है, पारिश्रमिक के नाम पर बहुत कम धनराशि ( जो अक्सर न्यूनतम वेतन से कम होती है ) दी जाती है, कोई कार्य सुरक्षा नहीं। इन खेतीहर मजदूरों के वेतन कार्य दशाओ में सुधार किया जाये तथा चिकित्सा लाभ एवं बुढ़ापे का सहारा पेंशन कि व्यवस्था की जाए। .
सोशलिस्ट मैनिफेस्टो समाजवादी समागम (दिल्ली) की ओर से हिन्द मजदूर सभा के महासचिव साथी हरभजन सिंह सिद्धू की और से प्रकाशित किया गया जिसको उन्होंने मजदूर संघो की कोआर्डिनेशन समिति को भी अग्रसारित किया जिसे समिति ने मंज़ूर कर कारवाई करने का इरादा जाहिर किया। .
हमें इस बात का फख्र हैं कि कामगारों द्वारा चुनी गई सबसे बड़ी यूनियन All Indian Railway Men’s Union द्वारा जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में करवाई गई रेलवे हड़ताल, मजदूर आंदोलनों के इतिहास में दर्ज हो गई है। इससे बड़ी हडताल अभी तक हिंदुस्तान में कामगारों द्वारा नहीं हो पायी है। उसी तरह हिन्द मजदूर सभा जिसके साथ अनेकों मजदूर संघ जिनकी संख्या लाखों में है, वे इससे सम्बद्ध है।.मजदूर आंदोलन की एक बड़ी त्रासदी यह भी रही है कि कम्युनिस्ट विचारधारा वाली यूनियनों ने प्रतिस्पर्धा में सोशलिस्ट यूनियनों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से विरोध किया। खास तौर से पिछली काग्रेंसी सरकारों के शासन में क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टी का तालमेल कभी खुला, कभी छुपा हुआ - कांग्रेस पार्टी के साथ रहा जिसके कारण उनकी यूनियनों को बढावा तथा सोशलिस्ट यूनियनों को नजरअंदाज किया गया।
अन्त में कहूंगा कि महान सोशलिस्ट नेताओं द्वारा स्थापित मजदूर यूनियनों ने अनेकों प्रकार के कष्ट उठाने, विरोध सहने के बावजूद मजदूरों के बीच में हमेशा आदर / समर्थन बनाये रखा। नतीजन आज भी HMS , All India Railway men’s यूनियनों को हमारे जुझारू नेताओ हरभजन सिंह सिद्धू (महामंत्री एचएमएस) तथा साथी शिवगोपाल मिश्रा अध्यक्ष( All India Raiway Men’s Union ) के कुशल नेत्तृव में दिन-प्रतिदिन बुलंदी पर हैं।
(पाँचवीं किश्त के साथ फिलहाल यही तक – इस से पहले की किश्त आप यहाँ पढ़ सकते हैं।)
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(प्रोफेसर राजकुमार जैन, दिल्ली विश्वविद्यालय में 45 साल अध्ययन अध्यापन, सोशलिस्ट विचारधारा के अध्येता, लेखक, समीक्षक, दिल्ली विधानसभा के भूतपूर्व मुख्य सचेतक। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में विशेष रुचि)
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