अपने दिल की सुनें : हृदय रोगों से कैसे बचें
हर वर्ष 29 सितम्बर को वर्ल्ड हार्ट फाउंडेशन और डब्ल्यू एच ओ (WHO) दोनों संयुक्त रूप से 'विश्व हृदय दिवस' या World Heart Day मनाते हैं। इसकी ज़रूरत इसलिए महसूस की गई कि पूरे विश्व में दिल की बीमारियों में पिछले कुछ वर्षों से बहुत ज्यादा वृद्धि हुई है। प्रतिवर्ष दो करोड़ से भी कुछ ज़्यादा लोग दिल की बीमारियों के कारण जान खो बैठते हैं। इनमें से लगभग अस्सी प्रतिशत की जान बचाई जा सकती है यदि जीवन शैली के सम्बन्ध में सही जानकारी समय पर मिले और यदि उन्हें सही वक़्त पर उचित देखरेख मिले। हमें हाल में जब डॉ नमिता शर्मा ने अपना लेख यह बताते हुए भेजा कि विश्व हृदय दिवस तो अभी महीने भर से भी ज़्यादा दूर है तो हमने इस लेख को एक ओर रख दिया। फिर इस लेख को एक नज़र पढ़ा तो लगा कि दिल का मामला तो ज़रा गंभीर है। फिर हमने तय किया कि इसे ठीक एक महीना पहले प्रकाशित कर देते हैं और फिर प्रयास करते रहेंगे कि आने वाले महीने में दिल से सम्बन्धित और भी लेख हमें प्राप्त हो जाएँ. हो जाएं तो ठीक, वरना आप भी कह दीजिएगा, "दिल के बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा था"!
अपने दिल की सुनें
डॉ नमिता शर्मा
ह्रदय शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। यह जन्म से पहले गर्भ में ही चौथे हफ्ते से सक्रिय हो कर आखिरी साँस तक बिना रुके लगातार शरीर चलाता है। ह्रदय विशेष प्रकार की शक्तिशाली माँसपेशियों का एक समूह है जो एक मिनिट में 60 से 100 बार तक धडकता है। हर धड़कन में 70 मिलीलिटर तक रक्त पम्प करता है। ह्रदय का आकार दोनों हाथों की बंधी मुट्ठी जैसा होता है। ह्रदय में मौजूद विद्युत प्रणाली इसे निरन्तर चलाती है.
हृदय रोग के बढ़ते मरीज़
पिछले कुछ समय से ह्रदय से जुड़ी बीमारियों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। इस समय मृत्यु का सबसे बड़ा कारण दिल की बीमारियाँ हैं। लोग जानते हैं कि ये बीमारियां खतरनाक होती हैं फिर भी इनके प्रति बहुत सजग नहीं हैं। लोगों में ह्रदय रोगों के प्रति जागरुकता लाने के लिये हर वर्ष 29 सितंबर को विश्व ह्रदय दिवस मनाया जाता है। इस साल विश्व ह्रदय दिवस का विषय है - "एक भी धड़कन न चूके" "Don't Miss a Beat"। यह थीम हमें अपने शरीर के सबसे ज़रूरी अंग की देखभाल करने के महत्व को दर्शाती है। पहले युवाओं को दिल की बीमारी हो गयी है, ऐसा सुनने में कम ही आता था। आजकल 30 से से 50 वर्ष की उम्र के लोगों में दिल की बीमारियां तेजी से बढ़ीं हैं। ये उम्र 'प्रोडक्टिव एज' कहलाती है। जीवन के इस दौर में काम करने की क्षमता सबसे ज्यादा होती है। जो समय काम करके भविष्य सुनिश्चित करने का है, उस समय ह्रदय रोग हो जाना एक तरह से अभिशाप है।
कैसे काम करता है दिल
हमारे ह्रदय का मुख्य काम रक्त पम्प करना है। ये शुद्ध रक्त को शरीर की हर कोशिका तक पंहुचाता है और साथ ही अशुद्ध रक्त को शुद्ध करने फेफड़ों में भेजता है। इसका एक और ज़रूरी काम है। विभिन्न हार्मोन, कुछ रसायन और पौष्टिक तत्वों को रक्त संचार के साथ शरीर के विभिन्न अंगो तक भेजना। यही ब्लड प्रेशर पर नियंत्रण रखता है। ह्रदय अपने विद्युत संचार केन्द्र की मदद से ह्रदय की गति को भी नियंत्रित करता है। ये सभी क्रियाएँ बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन में से एक भी काम एक क्षण के लिये भी रुक जाये तो शरीर को बड़ी क्षति पंहुचती है।
बढ़ती उम्र के साथ शरीर के हिस्सों का कमजोर होना स्वाभाविक है। उसे सम्हालना काफी हद तक हमारे हाथ है। ह्रदय के कुछ रोग उसकी बनावट और ढांचे से जुड़े हुए हैं जैसे वाल्व, माँसपेशियाँ और विद्युत संचार के रोग। ये अधिकतर जन्मजात होते हैं। कभी कभी ये रोग किसी संक्रमण या शरीर की प्रतिरोधक शक्ति की गड़बड़ी से भी हो जाते हैं।
CVD कार्डियो वेस्कुलर डिज़ीज़
ह्रदय के रोगों में मुख्य रोग CVD है याने कार्डियो वेस्कुलर डिज़ीज़। दिल को लगातार पम्प करने के लिये बहुत अधिक आक्सीजन की जरूरत होती है। इस की पूर्ति कोरोनरी आर्ट्री और उसकी शाखायें बखूबी करती हैं। ह्रदय के एक एक छोटे से छोटे भाग को धमनियों की कई शाखाओं द्वारा रक्त भेजा जाता है। रक्त संचार में जरा सी भी गड़बड़ हो भी जाये तो दूसरी शाखायें उसकी पूर्ति करती हैं। बढ़ती उम्र में रक्त नलिका का लचीलापन कम हो जाता है। इस कारण धमनी या नलिका के फैलने और सिकुड़ने में बाधा आती है जो दिल के रक्त संचार को प्रभावित करती है। CVD होने का एक और कारण नलिका में कोलस्ट्राल जमना है। ज्यादा कोलस्ट्राल् से रक्त गाढ़ा हो जाता है।
कई बार कम उम्र में ही रक्त में कोलेस्ट्राल की मात्रा अधिक आ जाती है। ये आनुवांशिक होता है। दिल का दौरा,एंजाइना, हार्ट ब्लॉक ये CVD की बीमारियों में शामिल हैं। इनके उपचार के लिये बाईपास, एंजिओग्राफी, एंजियोप्लासटी और ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है। हम सब इन नामों से परिचित हैं।
स्वस्थ हृदय के लिए खान पान के साथ मन पर नियंत्रण रखना भी जरूरी है। नई पीढी को इस पर ध्यान देना होगा। इसके लिये ज़रूरी है अच्छी और सकारात्मक सोच ,थोड़ा संतोष, धीरज और सुख-शांति। ये सब दवाओं से बेहतर हैं। दिल की बीमारियों से बचने के लिये अपनी रुचि के व्यायाम नियमित करें। चलना, दौड़ना, तैरना, साइकिल चलाना आदि रक्त में हार्मोन एंडोरफ़िन बढ़ाता है। ये 'फील-गुड' हार्मोन है। आहार में सब्जियाँ, फल, खड़ा या साबुत अनाज, दूध-दही, अंडा, दालें ज्यादा खायें। आजकल लोग मिलैट्स का खूब उपयोग कर रहे हैं। ये सब साबुत अनाज होते हैं। गेहूं की रोटी खाना कम करें। इसकी जगह ज्वार,जौ,बाजरा और रागी की चपाती खायें। भोजन में तेल, शक्कर और नमक कम करें। धूम्रपान,शराब और दूसरे नशों के सेवन पर नियंत्रण रखें। प्रयास करें और हो सके तो ये आदतें छोड़ें।
क्रोध,ईर्ष्या, निराशा आदि जैसी प्रवृत्तियां दिल के रोग बढ़ाती हैं
मानसिक तनाव का सीधा संबंध दिल की बीमारियों से है। क्रोध,ईर्ष्या, निराशा, अपराध भाव और प्रतिकूल परिस्थिति से दूर भागने की मानसिकता रक्त में हार्मोन कार्टिज़ाल, एड्रीनलीन को बढ़ाते हैं। इनसे दिल की गति और रक्तचाप बढ़ता है। ये ह्रदय रोग के कारण हैं। इसके अलावा अचानक कोई खुशी या दुख की खबर अथवा गम्भीर परिस्थिति भी दिल को धक्का पहुंचा सकती है।
ह्रदय संबंधी स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें। चेतावनी संकेतों को नज़रअंदाज़ न करें। नियमित जांच करायें। चिकित्सा और उपचार को प्राथमिकता दें। अपने हर बढ़ते कदम के साथ दिल की धड़कन का ध्यान रखें। आपका दिल इतना स्वस्थ रहे कि वह "एक भी धड़कन न चूके"। साल 2025 का विश्व ह्रदय दिवस आपसे उम्मीद करता है कि आप हर रोज़ कम से कम 25 मिनिट पैदल चल कर इसे सार्थक बनायेंगे और अपने प्यारे दिल को खुश और सेहतमंद रखेंगे।
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डॉ नमिता शर्मा पेशे से चिकित्सक हैं। 25 वर्ष तक कैंटोनमेंट बोर्ड, पुणे में बतौर मेडिकल ऑफिसर काम किया। अवकाश -प्राप्ति के बाद कुछ समय तक विभिन्न सामाजिक कार्यों से जुड़ी रहीं। पिछले लगभग पाँच वर्ष से रामकृष्ण मठ (पुणे) से संबद्ध एक चैरिटेबल अस्पताल में चिकित्सीय सेवाएँ दे रही हैं और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर पढ़ती-लिखती और गुनती रहती हैं।