पंकज जी आपसे ज्यादा ‘हिट’ हैं भोपाल के दर्शक!
पंकज जी,आपसे ज्यादा ‘हिट’ हैं भोपाल के दर्शक…!!
संजीव शर्मा
दर्शक पल पल इंतजार कर रहे थे कि अब नाटक शुरू होगा..पंकज कपूर एक पेज,दो पेज पढ़ेंगे..शायद पांच पेज की भूमिका होगी और फिर कलाकार अपनी कला का जादू बिखेरेंगे। आमतौर पर पारंपरिक नाटक ऐसे ही तो होते हैं…लेकिन पंकज जी तो एक-एक कर पूरे 84 पन्नों का उपन्यास पढ़ गए। कुछ उतावले और उकताए दर्शकों ने उठना शुरू कर दिया..उनकी देखादेखी कुछ और भी उठे…लेकिन, फिर नाटक के संवाद,पंकज कपूर की संवादगी के उतार चढ़ाव और भाव धीरे धीरे मीठी शहद के समान कतरा-कतरा मन-मस्तिष्क में उतरने लगे…और दर्शक चुपचाप बूढ़ी अम्मा के एकाकीपन, जुम्मन की मसखरी, श्रीवास्तव साहब की संजीदगी के साथ चलने लगे। फिर क्या था..पंकज कपूर की इस एकल प्रस्तुति में कभी तालियां,कभी हंसी और कभी सन्नाटा पसरा रहा और एक घंटा 20 मिनट का ‘दोपहरी’ कब खत्म हो गया, पता ही नहीं चला।
मेरे जैसे रंगमंच के तमाम अपरिपक्व दर्शकों के लिए यह नाटक की नई शैली थी,इसलिए आत्मसात करने में, उससे जुड़ने और महसूस करने में समय लगा। मैं अभी भी यह मानता हूं कि यदि इसे नाटक की बजाए ‘कहानी पाठ’ या ‘उपन्यास पाठन’ कहकर प्रचारित किया जाता तब भी शायद इतने ही दर्शक जुटते लेकिन तब वे पारंपरिक नाटक देखने की उम्मीद लेकर नहीं आते बल्कि ‘सुनने’ आते और शायद बहुतों की उम्मीदें नहीं टूटती।
खैर, पंकज (कपूर) जी, आप तो आला दर्जे के कलाकार हैं हीं लेकिन आज भोपाल के दर्शकों ने बता दिया कि वे सुपरहिट हैं। संभवतः भोपाल में पहली बार इतनी महंगी टिकट दर पर किसी नाटक का प्रदर्शन हुआ और फिर भी सभागार खचाखच भर गया। आज के ओटीटी के दौर में जब सब कुछ घर बैठे उपलब्ध है और चाय-पकौड़ों के साथ टुकड़ों-टुकड़ों में अपनी सहूलियत से देखने की सुविधा है फिर भी, ऐसे में 70 साल के एक कलाकार के करीब डेढ़ घंटे लंबे शो को देखने के लिए सैकड़ों की संख्या में लोगों का जुटना किसी चमत्कार से कम नहीं है।
शाम सात बजे से दर्शकों के आने का सिलसिला जो शुरू हुआ, वह शो शुरू होने के बाद तक चलता रहा। टिकट वाले तो समय पर आए ही, मुफ्त पास वाले भी समय से पीछे नहीं रहे क्योंकि उन्हें डर था कि ऐसा न हो उनकी सीट पर कोई और कब्जा कर ले। रवींद्र भवन में आए दिन होने वाले नाटकों के दौरान आमतौर पर खाली रहने वाली सीटें आज अपने होने पर रश्क कर रही थीं। बालकनी भो घमंड से इतरा रही थीं क्योंकि सबसे पहले वही फुल-हाउस हुई क्योंकि सबसे कम 499 रुपए की टिकट बालकनी की ही थी। परिवार के परिवार रात में भी ‘दोपहरी’ का आनंद लेने टकटकी लगाए बैठे थे । कभी नाटक देखने के लिए 100 रुपए सहयोग राशि देने के नाम से भी बिदकने वाले भोपाल के लोगों के इस थियेटर प्रेम को सलाम।
अब बात नाटक ‘दोपहरी’ की! गूगल गुरु के मुताबिक नाटक पर केंद्रित यह कुल 84 पृष्ठों में लिखा गया संक्षिप्त उपन्यास उन्होंने चार दिन की अल्पावधि में पूर्ण किया है और इस नाटक के देश दुनिया में तकरीबन 50 प्रदर्शन हो चुके हैं।
नाटक आरंभ से अंत तक रोचक है। ऐसा लगता है जैसे यह हमारे अपने जीवन और पास पड़ोस से जुड़े बुजुर्गों के एकाकीपन, किरायेदारों में परिवार तलाशने की कहानी है। पंकज कपूर ने पढ़ने के दौरान वाचन कला का भरपूर अभिनय दिखाया, मंच को अलग-अलग कोण से दिखाती लाइट और बैक ग्राउंड संगीत ने वाचन को और निखार दिया। लेकिन यदि ‘दोपहरी’ की निर्माता और पंकज की पत्नी सुप्रिया पाठक अम्मा के किरदार में स्वयं उतार जातीं और पंकज को जुम्मन के रूप में मंच पर उतार देतीं तो शायद ‘दोपहरी’ चुभने वाली धूप ना होकर सुबह की उजास सी होती। दर्शक सभागार से सिसकते हुए और अपने अंदर कुछ टूटता सा महसूस करते हुए बाहर निकलते। तब शायद विदेश जाने के सपने में उनींदे हो रहे युवाओं की नींद उचटती और अरेरा कालोनी के भव्य बंगलों में होली-दीवाली पर बच्चों का इंतजार करने वाले साहबों का दंभ सुकोमल भावनाओं के सामने बिखर जाता। बच्चों के भेजे डॉलरों से पड़ोसियों पर रूतबा झाड़ने वाले मां बाप का झूठा घमंड बह जाता। खैर, हो सकता है पंकज जी की टीम तक हम दर्शकों की आवाज पहुंचे और भविष्य में ‘दोपहरी’ कुछ ऐसे ही रंग में नज़र आए तब तक शरद जोशी और उनकी रचना ‘वर्जिनिया वुल्फ से सब डरते हैं’ को याद करके हंसते रहिए।
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संजीव शर्मा तीन दशक से ज्यादा समय से मीडिया में सक्रिय हैं और फिलहाल आकाशवाणी भोपाल में सहायक निदेशक समाचार का दायित्व संभाल रहे हैं। आपको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी के साथ जापान और अफ्रीकी देशों की यात्रा पर जाने का अवसर मिला है और इन यात्राओं पर केन्द्रित कर पुस्तक‘चार देश चालीस कहानियां’ काफी लोकप्रिय हुई है. इन्होने हाल ही में अयोध्या पर केन्द्रित ‘अयोध्या 22 जनवरी’ नामक किताब भी लिखी है. संजीव शर्मा का ‘जुगाली’ jugaali.blogspot,com के नाम से एक ब्लॉग भी हैं ।