समन्वय, सात्विकता और आत्मदर्शन से होगी वैश्विक शांति

सुज्ञान मोदी | समाज-एवं-राजनीति | Apr 26, 2025 | 98

आज पूरे विश्व में जब चहुँओर राष्ट्रों के आपसी विवाद, संघर्ष, युद्ध और अशान्ति का वातावरण छाया हुआ है, सुज्ञान मोदी हमें स्मरण करा रहे हैं कि भारत वह देश है जिसने प्राचीनकाल से ही विश्व को, पूरी मानवता को एक सूत्र में बांधने का संदेश दिया है। दुर्भाग्य से ना केवल विश्व में अशान्ति और संघर्ष है बल्कि भारत भूमि में भी हम अपनी ही खूबियों को भूलते लग रहे हैं। आवश्यकता इस बात कि है कि हम भारतवासी विविधता में एकता के दर्शन को स्वयं भी ना भूलें और विश्व को भी फिर एक बार स्मरण कराएं। 

समन्वय, सात्विकता और आत्मदर्शन से होगी वैश्विक शांति

सुज्ञान मोदी

आज जहाँ दुनिया एक ओर तो प्रगति के शिखर पर खड़ी है, वहीं दूसरी ओर वैमनस्य, हिंसा और विभाजन की गहरी खाई में भी फँसी हुई है। भारत तो प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक और आध्यात्मिक समन्वय का प्रतीक रहा है। उसने समय-समय पर विश्व को एक सूत्र में बांधने का संदेश भी दिया है। संत विनोबा ने वेदों में आए ‘विश्वमानुष’ शब्द को लोकप्रिय बनाया और ‘जय जगत’ का मर्मस्पर्शी नारा दिया। डॉ. लोहिया भी विश्वनागरिकता और वैश्विक यारी की बात करते थे। ऋषियों, संतों, सूफ़ियों, बुद्धों और तीर्थंकरों ने तो अपनी सारी शिक्षा पूरे विश्व के मानवजाति को ही एक मानकर संबोधित किया। 

विविधता में एकता भारत की आत्मा है जिसे आजकल ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ कह दिया जाता है। लेकिन भारत की आध्यात्मिक एकात्मकता ‘इंडिया’ के विचार आने से बहुत पहले की है। गांधीजी ने इसे अपने ‘स्वराज’ के सिद्धांत में भी पहचाना था। इसलिए यह सिद्धांत वैश्विक शांति का आधार भी है। ऋग्वेद का यह श्लोक इस भाव को सुंदरता से व्यक्त करता है: ‘आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः’ (ऋग्वेद 1.89.1), अर्थात्, "सभी दिशाओं से कल्याणकारी विचार हमारे पास आएँ।" यह श्लोक हमें सिखाता है कि यदि हमारा हृदय प्रेम, समावेश और एकात्मकता के लिए खुला हो तो विभिन्नता में भी एकता की साधना संभव है।

नैसर्गिक विविधता: सृष्टि की सृजन-लीला

प्रकृति स्वयं विविधता का उत्सव है। पर्वत, नदियाँ, वन, और जीव-जंतु, ये सब अपने अनूठे रूप में सृष्टि की सुंदरता को बढ़ाते हैं। मानव समाज भी इसी प्रकार रंगों, संस्कृतियों, धर्मों और विचारधाराओं का मिश्रण है। भारत में यह विविधता और भी स्पष्ट दिखाई देती है। यहाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी और अन्यान्य समुदाय सब एक साथ रहते हैं। ऊपर-ऊपर से ये भले ही अलग दिखते हों, लेकिन अपने मूल में यह एक ही सनातन धर्म या धम्म की जीवंत धाराएँ हैं, इसलिए एकात्मक हैं। विभिन्न भाषाएँ, परंपराएँ और रीति-रिवाज एक अनूठा सांस्कृतिक ताना-बाना बुनते हैं। सच्चा धर्म वह है जो पूरी मानवता को आपस जोड़े, न कि उसे तोड़े। जब हम विविधता को एकता के दृष्टिकोण से देखते हैं, तो यह हमें विभाजन के बजाय समन्वय की ओर ले जाती है। संत कबीर यही तो कहते थे:
‘जाति-पाति पूछे नहि कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।’

विश्व की वर्तमान चुनौतियाँ

आज विश्व कई संकटों से जूझ रहा है। पर्यावरणीय असंतुलन, सामाजिक असमानता, धार्मिक कट्टरता और युद्ध की आशंकाएँ मानवता के सामने गंभीर प्रश्न खड़े करती हैं। भारत भी इन चुनौतियों से अछूता नहीं है। सामाजिक तनाव, आर्थिक असमानता और क्षेत्रीय विवाद समय-समय पर उभरते हैं। ऐसे में, यह प्रश्न उठता है: शांति का मार्ग कहाँ है? उत्तर सरल किंतु गहन है। शांति की शुरुआत वास्तव में स्वयं से होती है। जब तक मनुष्य अंतर्मुखी होकर स्वयं को नहीं देखता है, जब तक अपने मन और इंद्रियों को संयमित नहीं करता है, तब तक वह न स्वयं शांति प्राप्त कर सकता है और न ही दूसरों को सुख-शांति दे सकता है। अपने विकारों और कषायों पर विजय प्राप्त करने में ही शांति का रहस्य छिपा है।

विविधता में एकता का सिद्धांत हमें यह सिखाता है कि विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और विचारधाराओं के बीच सामंजस्य स्थापित करना संभव है। यह सामंजस्य बाहरी स्तर पर ही नहीं, बल्कि हमारे अंतर्मन में भी होना चाहिए। जब हम अपने भीतर शांति स्थापित करते हैं, तो वह शांति बाहर भी प्रकट होती है।

भारत का आध्यात्मिक संदेश

भारत का आध्यात्मिक दर्शन विश्व को एकता का संदेश देता है। उपनिषदों में कहा गया है: "सर्वं विश्वेन संनादति", अर्थात्, "सब कुछ विश्व के साथ एक है।" यह दर्शन हमें सिखाता है कि प्रत्येक प्राणी में एक ही परमात्मा का अंश है। इस दृष्टि से, कोई भी व्यक्ति या समुदाय पराया नहीं है। स्वामी विवेकानंद ने शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में यही संदेश दिया था: "हम न केवल सहिष्णुता में विश्वास करते हैं, बल्कि सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। लेकिन एक को श्रेष्ठ और दूसरों को हेय कहने से बहुत अशांति पैदा होगी।" उनकी यह वाणी आज भी प्रासंगिक है, जब विश्व धार्मिक और सांस्कृतिक विभाजन से जूझ रहा है।

भारत की संत परंपरा ने भी इस सिद्धांत को जीवंत किया है। सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया हों या गुरु नानकदेव, सभी ने प्रेम और एकता का मार्ग दिखाया। गुरु नानक देव जी ने कहा कि ‘आवी पंथी सकल जमाती’ यानी सब अपने ही हैं। उन्हीं की परंपरा से आनेवाले गुरु अर्जुन देव जी ने कहा:‘न को बैरी नहि बिगाना, सगल संग हम को बणि आई। बिसर गई सभ तात पराई।’ यानी कोई शत्रु नहीं, कोई पराया नहीं, सभी के साथ हमारा प्रेम का नाता है। यह भावना ही शांति का आधार है।

शांति का मार्ग: व्यावहारिक उपाय

विविधता में एकता को अपनाने के लिए हमें कुछ व्यावहारिक कदम उठाने होंगे। पहला, शिक्षा के माध्यम से बच्चों में समावेशी और समन्वयवादी दृष्टिकोण विकसित करना होगा। यह बताना होगा कि सभी धर्मपंथों की मूल शिक्षा एक ही है और वह है सात्विक जीवन का आचरण। शील-सदाचार, पवित्रता, जीवदया, प्रेम, करुणा, दान, परोपकार, क्षमा, संयम, निःस्वार्थ सेवा, आत्मदर्शन आदि ही वास्तविक धर्म हैं। दूसरा, संवाद और सहयोग को बढ़ावा देना होगा। विभिन्न समुदायों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान, उत्सव और सामुदायिक कार्यक्रम एकता की भावना को मजबूत करते हैं। तीसरा, हमें अपने मन में पूर्वाग्रहों और घृणा को त्यागना होगा। ध्यान, योग, प्रार्थना और सात्विक आहार जैसे आध्यात्मिक अभ्यास हमें अपने भीतर शांति, करुणा और सात्विकता विकसित करने में सहायता करते हैं।

आज विश्व को भारत के वसुधैव कुटुम्बकम् (समूचा विश्व एक परिवार है) के सिद्धांत की आवश्यकता है। यह सिद्धांत हमें सिखाता है कि हमारी पहचान केवल हमारे धर्म, जाति या राष्ट्र तक सीमित नहीं है; हमारी सच्ची पहचान मानवता है। जब हम इस भावना को अपनाएंगे, तो हिंसा, घृणा और विभाजन स्वतः ही समाप्त हो जाएंगे। यही शांति का सच्चा मार्ग है, और इसी में मानवता का सुखद भविष्य है।
सत्पुरुषों का योगबल जगत का कल्याण करे! सबका मंगल हो!

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श्रीमद राजचन्द्र, महात्मा गांधी एवं आचार्य विनोबा भावे जैसे संतों के आध्यात्मिक विचारों को समर्पित साधक सुज्ञान मोदी ने आध्यात्मिक और राजनैतिक सजगता का अद्भुत संतुलन साधा है। जहां पिछले एक दशक से वह श्रीमद राजचन्द्र सेवा-केन्द्र से संबद्ध मुमुक्षु के रूप में अपनी आध्यात्मिक चेतना को विस्तार देने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं वह बहुत सी सामाजिक-राजनीतिक संस्थाओं से भी जुड़े रहे हैं। इनमें से प्रमुख हैं, गांधी शांति प्रतिष्ठान, नर नारायण न्यास, राष्ट्रीय आंदोलन फ्रंट, सोसाइटी फॉर कम्यूनल हार्मनी, समाजवादी समागम, ज्ञान प्रतिष्ठान, और स्वराज पीठ।

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