इस वेब-पत्रिका के पाठकों को अनीता गोयल से परिचित कराते हुए हमें प्रसन्नता है। उनके जुड़ने से हमारी वेब-पत्रिका की 'साहित्य' कैटेगरी समृद्ध होगी, ऐसा विश्वास है। आशा है कि आपको भी उनकी कविताएं पसंद आएंगी।
1. भिक्षुक
दाढी उसकी बड़ी हुई और मैला कुचला तन है
बहकी-बहकी बातें बोले
कहते है पगला उसका मन है!
कूड़े के ढेर और पड़ा
कभी हँस दिया कभी रो दिया
कभी जाग गया कभी सो गया
यही तो उसका जीवन है!
रिसते है कुछ छाले, दुखते है कुछ घाव
मैली कूबड़ी काया से
सब झिड़कें उसको, दूर भगाएं,
बचते उसकी छाया से
लँगड़ लँगड़ पाव को खींचे, हाथ भी कुछ तो टूटा है
लगता है ईश्वर की सृष्टि से कोई तो मोती छूटा है।
गूढ़ भेद यह
वह क्यों हँस दिया क्यों रो दिया
जाने किस-किस की पीड़ा
उसकी आँखों को दिखती है
जटा जूट बालों में,
कीचड़ कपड़े-फटे हालों में
ग़दले जल की धारा उसके घावों से रिसती है।
न खाने की सुध, न पीने की सुध
वो चल दिया वो चल दिया
हम समझे वो हर पल मरा
वो समझे वो हर पल जिया
सब कहते, दूर रह उससे
वो जन्म-जन्म का रोगी है
क्या समझेगा कोई उसको,
जग में सारे भोगी हैं
माँ कहती जा दे आ रोटी
वो कोई तपस्वी कोई जोगी है।
वो घूम घूम के आयेगा
झोली भरकर लाएगा
जाने किस-किस के पापों का
बैठ हिसाब लगायेगा
उसकी दुनियाँ में हम सब बड़े भिखारी हैं
हम सब हैं पगले,
इच्छाओं की छाई लाचारी है।
साँझी धूप, सांझी हवा और साँझी सारी सृष्टि है
साँझा सबका अम्बर और साँझी सबकी धरती है
किसने फिर ये तय किया कि पगले का कोई हिस्सा नहीं
जो सब सुन ले और कुछ न बोले उसका कोई किस्सा नहीं
जो सब सुन ले और कुछ न बोले क्यों उसका कोई हिस्सा नहीं?
2. बोतल में जिन्न
मेरी हसरतें बोतल के जिन्न के जैसी
एक दिन ढक्कन खुला रह गया उसका
बोतल से जिन्न निकला और बोला
क्या हुक्म मेरे आका!
माँ बोली री बोबो थम जा
बवाल हो जाएगा हो जाएगा रोला
बोबो ने तो बोतल का ढक्कन खोला तो खोला
अब हो जाये बवाल, अब हो जाये रोला!
वो थामें मेरे जिन्न को चले मेरे साथ
मैं कहीं झूमूँ , वो कहीं की करे बात
मैं कभी उड़ाती पतंगे कभी उड़ाती कबूतर
न इनका, न उनका न किसी का डर
वो देखती मुझको तो खुश हो जाती
मैं करूँ वो सब जो वो कभी न कर पाती!
वो चराग़ उसने जलाया, वो जिन्न उसने दिखाया
जो रास्ते बंद थे, उन सबको उसने दिखाया
अब दौर वो हो, न बोतल न जिन्न की ज़रूरत
मैं, मेरा अक्स, मेरा निंबस और रक्स हो मस्त
सिलसिला यूँ ही चलता रहे…….
**********
कविता 'बोतल में जिन्न' अनीता गोयल की आवाज़ में सुनने के लिए आप इस लिंक पर जाकर सुन सकते हैं।
अनीता गोयल, दिल्ली विश्वविद्यालय के भारती महाविद्यालय में 12 साल इतिहास पढ़ाने के बाद, मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया) जा कर बस गई। वहाँ उन्होंने विक्टोरियन स्कूल ऑफ़ लैंगुएजिज़ के प्रोग्राम के अंतर्गत कई बरस माध्यमिक स्तर पर हिंदी पढ़ाने का कार्य किया। अपने आस-पास के परिवेश के प्रति सजग उनकी कविताएं सामाजिक संवेदना से सरोबर होती हैं।
We are trying to create a platform where our readers will find a place to have their say on the subjects ranging from socio-political to culture and society. We do have our own views on politics and society but we expect friends from all shades-from moderate left to moderate right-to join the conversation. However, our only expectation would be that our contributors should have an abiding faith in the Constitution and in its basic tenets like freedom of speech, secularism and equality. We hope that this platform will continue to evolve and will help us understand the challenges of our fast changing times better and our role in these times.