नव वर्ष के नए उजाले में नई उत्तरांचल पत्रिका
जब तक उत्तरांचल पत्रिका का यह अंक आपके हाथ में होगा तो 2018 समाप्त हो चुका होगा और आप पूरे उत्साह के साथ नव.वर्ष का स्वागत करे रहे होंगे!
सबसे पहले तो आपको नववर्ष 2019 की बधाई और शुभ कामनाएं ! हमारी ये दुआ है कि नए साल में आप अपने हर शुभ इरादे को पूरा कर सकें और देश और समाज के विकास के लिए अपना सार्थक योगदान कर सकें!
आमतौर पर वर्ष के आखिर में ये उम्मीद की जाती है कि अखबारेंए पत्रिकाएं और आजकल तो वेबसाइटस भी पूरे वर्ष पर एक उड़ती निगाह डाल लें और उनमें से कुछ बातों को खास अंदाज़ में याद कर लें लेकिन अपना कोई खास इरादा नहीं है कि आपको ऐसी किसी लेखा.जोखा किस्म की सामग्री से बोर किया जाये! आज जब 2018 का अंतिम आखिरी पन्ना लिखने की बारी है तो समस्या वही है कि बात कहाँ से शुरू की जाए . राजनीति की बातें करें तो पांच विधानसभा चुनावों के परिणामों पर चर्चा हो सकती है हालाँकि उस पर भी इतना कुछ लिखा.सुना गया है कि उस पर चर्चा अब कुछ बासी.बासी लगेगी! हाँ ये है कि इन विधान सभा चुनाव परिणामों के बहाने से मई में होने वाले लोकसभा चुनावों पर चर्चा हो तो आप में से उन पाठकों को मज़ा आ सकता है जिनकी राजनीति में रूचि है! बीते वर्ष की राजनीति किसान केंद्रित रही और किसानों की समस्यायों को राजनैतिक दलों के अलावा मीडिया में भी काफी प्रमुखता मिली! वर्ष 2018 में कम से कम दो बार राजधानी में किसान.संगठनों द्वारा देश भर से लाखों किसानों को देश की राजधानी में ताकत दिखाने के इक्कठा किया गया और ऐसा लगा कि ऋणों से जूझते किसानों को चाहे तुरत .फुरत कोई राहत ना मिले लेकिन उनकी आवाज़ केंद्र सरकार तक बखूबी पहुँच गई होगी! फिर ये भी हुआ कि चूँकि कांग्रेस पार्टी किसानों से ऋण माफ़ी का वायदा कर चुकी थी ;और सम्भवतरू इसी कारण उसे तीन राज्यों . मध्यप्रदेशए राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने का अवसर भी मिल गया थाद्ध तो उसने इन राज्यों में सत्ता में आते ही किसानों का कर्ज़ा माफ़ करने की घोषणा कर दी! हर बार की तरह नामी अर्थशास्त्रियों ने ये ध्यान दिलाया कि क़र्ज़.माफ़ी मूल समस्या का निदान नहीं है और कुछ दूसरे लोगों ने ये दोहराया कि कॉर्पोरेट सेक्टर के हज़ारों करोड़ के कर्ज़े श्नॉन.परफार्मिंग एसेटश् ;छच्।ेद्ध यानि वापिस ना मिल सकने वाले कर्ज़ों में तब्दील हो चुके हैं! लेकिन इतना तो तय है कि इस गुल.गपाड़े से किसानों की समस्याएँ एक बार फिर केंद्र में आ गईं और ऐसा लगता है कि आने वाले आम चुनावों में फिर एक बार राजनैतिक दल किसानों के के लिए नई.नई किस्म के पैकेज लेकर आएंगे और किसान चुनाव प्रचार के केंद्र में रहेंगे !
बीत गया बरस राजनीती में आई कड़ुवाहट के लिए भी खूब याद किया जायेगा! जहाँ भाजपा का ज़ोर परिवारवाद के नाम पर नेहरू जी तक को कोसने पर रहाए वहीं कांग्रेस ने भी राफेल विमानों में हुई कथित अनियमितता की आड़ में ष्चौकीदार चोर हैष् का नारा बुलंद किया! राजनीती में पहले मतभेदों के बावजूद एक शिष्टता बरती जाती थी किन्तु आजकल दोनों तरफ से ही इसकी कोई चिंता नहीं की जा रही! नेहरू जी की भी जिस प्रकार छिछालेदारी की जा रही हैए वह सब शोभनीय नहीं लग रहा!
उधर बीते वर्ष में सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ ऐसे फैसले सुनाये जिनकी गूँज देर तक बनी रहेगी . इनमें से कुछ फैसलों को लेकर अच्छी.खासी गर्मागर्मी का भी माहौल बना ! सबसे ज़्यादा चर्चित फैसलों में एक था धारा 377 का अवैध ठहराया जाना यानि इस प्रगतिगामी फैसले ने एक बहुत ही प्रतिगामी कानून को समाप्त कर दिया जिसके तहत समलैंगिक लोगों को जेल तक भेजा जा सकता था! इसी तरह विवाहेत्तर सम्बन्धों को लेकर जो दोहरापन थाए उसे भी सुप्रीम कोर्ट ने समाप्त किया! इनके अलावा तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित किया गया और सबरीमाला में औरतों पर जाने के प्रतिबन्ध को भी उच्चतम न्यायालय ने न्यायसंगत नहीं माना!राफेल विमानों की खरीद में हुई कथित अनियमितताओं के विरुद्ध जांच की मांग करते हुए दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का हाल में दिया गया निर्णय की भी खूब चर्चा हुई क्यूंकि कहा जा रहा है कि जिस रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने जाँच कराने से इंकार कर दियाए वह रिपोर्ट तो अभी तक आई ही नहीं!
जहाँ तक सामाजिक समरसता की बात है तो 2018 में भी इस बारे में कोई उम्मीद नहीं बनी और कहीं ना कहीं से ऐसी ख़बरें आती रहीं कि हिन्दू.मुस्लिम के बीच सौहार्द बिगाड़ने की कुत्सित कोशिशें जारी रहीं! यह घटना तो हाल ही की है कि देश की राजधानी दिल्ली से बहुत करीब . लगभग सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित बुलन्दशहर में पहले गाय की हड्डियों का ढेर मिला और फिर इस बहाने इलाके में हिंसा फ़ैलाने का प्रयास किया गया . एक कर्तव्यनिष्ठ पोलिस अधिकारी की हत्या भी कर दी गई और आरोप लग रहे हैं कि राजनैतिक दबाव में उत्तरप्रदेश पुलिस असली अपराधियों तक नहीं पहुँच रही! कहने की आवश्यकता नहीं कि यह सब दुर्भाग्यपूर्ण है और हमें दुआ करनी चाहिए कि आने वाले वर्ष में समाज को बांटने वाली प्रवृतियों पर लगाम लगेगी! किसी भी समाज के लिए सबसे महत्वपूर्ण ये होता है कि उसके हर वर्ग को उन्नति के लिए समान अवसर मिलें क्यूंकि जैसा कि हम इस स्तम्भ में पहले भी कई बार ये निवेदन कर चुके हैं कि कोई भी देश तब तक उन्नति नहीं कर सकता जब तक कि उसके सभी वर्ग तरक्की की राह पर ना हों! समाज यदि एक पूरा शरीर है तो अलग अलग वर्ग उसके अंगों के समान हैं . इसलिए कोई अल्पबुद्धि ही ये सोचेगा कि सिर्फ हमारी जाति या सिर्फ हमारे धर्म के लोग आगे बढ़ जाएँ और बाकियों का जो हो सो हो! चलिए उम्मीद करें कि 2019 हमारे देश और समाज के लिए बीते वर्ष कुछ बेहतर ही होगा !