युद्ध के समय आसमान : ओंकार केडिया की नई कविताएँ
इन कविताओं को प्रकाशित करते समय ईरान और इस्राइल के बीच चल रहा युद्ध अपने नवें दिन में पहुँच गया है. आज जब हम दोनों देशों के बीच मिसाइलों की बारिश और लड़ाकू जहाजों द्वारा बम बरसना देख रहे हैं तो लग रहा है कि युद्ध अपने चरम पर आ गया है किन्तु दोनों देशों का कहना है कि युद्ध अभी कितना ही और ज़्यादा भयानक भी हो सकता है. ओंकार केडिया ने अपनी इन दो छोटी-छोटी कविताओं में एक आम आदमी की बेबसी का ब्यान किया है जो युद्ध की विभीषिका से त्रस्त तो है किन्तु स्वयं को कितना बेबस पाता है.
1. युद्ध के समय आसमान
इन दिनों आसमान में
नहीं दिखते बादल,
बस धुआँ दिखता है,
नहीं कड़कती बिजली,
बमों के धमाके होते हैं,
नहीं होतीं बौछारें,
मिसाइलें बरसती हैं ।
इन दिनों आसमान में
नहीं उड़ते परिंदे,
लड़ाकू विमान दिखते हैं,
ड्रोन उड़ते हैं।
इन दिनों आसमान में
न सितारे दिखते हैं, न चाँद,
पर रह-रहकर कौंध जाती हैं
प्रकाश की कटारें।
बहुत दिनों से आसमान में
नहीं उगा सूरज,
शायद हमारी तरह वह भी
बहुत डरता है युद्ध से।
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2. बेबस दुनिया
नई-नई मिसाइलों के सामने
बेबस लगती हैं पुरानी बंदूकें,
लड़ाकू विमानों के आगे
बौने लगते हैं पैदल सैनिक।
सीमा नहीं रही तबाही की,
अब किसे चाहिए परमाणु बम,
फ़र्क़ नहीं नागरिक और सामरिक में,
जैसे सैनिक ठिकाने, वैसे अस्पताल।
सभी को चिंता है वतन की,
किसी को परवाह नहीं मानवता की,
हुक्मरानों की ज़िद के आगे
कोई मोल नहीं ज़िंदगी का।
जहां देखो, वहीं दिखाई पड़ती हैं
युद्ध की भीषण लपटें,
कोई नहीं जो बुझा सके इन्हें,
आज बेबस है सारी दुनिया।
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ओंकार केडिया पूर्व सिविल सेवा अधिकारी हैं। भारत सरकार में उच्च पदों पर पदासीन रहने के बाद वह हाल तक असम रियल एस्टेट एपिलेट ट्राइब्यूनल के सदस्य रहे हैं और आजकल गुवाहाटी में रह रहे हैं। इनका कविता संग्रह इंद्रधनुष काफी चर्चित हुआ। अंग्रेजी में इनकी कविताओं का पहला संग्रह Daddy भी काफी चर्चित रहा। पिछले दिनों वृद्धावस्था पर इनकी 51 कविताओं का संग्रह 'बूढ़ा पेड़' हाल ही में प्रकाशित हुआ है।