आईसक्रीम - ओंकार केडिया की क्षणिकाएं
आईसक्रीम - कुछ क्षणिकाएं
ओंकार केडिया*
हम दोनों ऐसे मिले,
जैसे अलग-अलग फ़्लेवर की आइसक्रीम,
अब तुम तुम नहीं रही,
मैं मैं नहीं रहा,
काश कि मिलने से पहले
हमें पता होता
कि यह नया फ़्लेवर
न तुम्हें अच्छा लगेगा,
न मुझे.
पत्थर की तरह मत बनो,
पानी की तरह भी नहीं,
थोड़ा सख़्त बनो,
थोड़ा नरम,
आइसक्रीम की तरह.
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उसने आइसक्रीम फ़्रीज़र में रखी,
सोचा, बाद में खाएगा,
आइसक्रीम जमी रही,
वह ख़ुद पिघल गया.
पिघल गई है ज़िन्दगी
मेरे देखते-देखते,
बस स्टिक बची है,
जिस पर यहाँ-वहाँ चिपकी है
कुछ कतरे आइसक्रीम।
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हो न मिठास मुझ में तो हर्ज़ नहीं,
उजियारा होना चाहिए,
तैयार हूँ मैं पिघलने को,
पर आइसक्रीम की तरह नहीं,
मोमबत्ती की तरह!
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इतनी देर नहीं चलती
आइसक्रीम और ज़िन्दगी
कि सामने रखी हो
और हम सोचते रहें
कि इसका करना क्या है। _________________________________________________________________
हम दोनों ऐसे मिले,
जैसे आइसक्रीम के दो स्कूप,
अच्छा रहा मिलन,
पर और अच्छा होता
अगर मैं थोड़ा कम पिघलता,
तुम थोड़ा ज़्यादा। _________________________________________________________________________

*ओंकार केडिया पूर्व सिविल सेवा अधिकारी हैं और भारत सरकार में उच्च पदों पर पदासीन रहने के बाद आजकल वह असम रियल एस्टेट एपिलेट ट्राइब्यूनल के सदस्य हैं और गुवाहाटी में रह रहे हैं। वह अपने ब्लॉग http://betterurlife.blogspot.com/और http://onkarkedia.blogspot.com/ पर वर्षों से कवितायें और ब्लॉग लिख रहे हैं।