धीरज सिंह की तीन नई कवितायें...!
कविता – 1
तुम्हारे न होने की लय
एक बार को लगा
समय बलवान है
शायद तुम्हारे न होने के
मरहम जितना बलवान
पर
कभी भी साँस लेने लगता है
वो ख़ालीपन से बना दुख और
समय का सारा ताव भुरभुरा कर
घुटने टेक देता है।
समय भी बेचारा क्या करे
तुम्हारे न होने की टीस ही तो है
उजालों के वो झरने जो थामे हैं
मेरे होने को ।
तुम्हारी ग़ैर मौजूदगी के दंश
पोसते हैं
दिल की भट्टी में
जमी बर्फ को ।
तुम्हारे शोक का रेशम
अब रज़ाई नहीं मेरी त्वचा है ।
दीवारें तुम्हारे लिए बहाए आंसुओं से नम नहीं
उन आंसुओं से ही खड़ी हैं ।
न हो ये शोक तो
तो सूख जाएगी ये हंसी ।
तुम्हारी मौत का शोक
मेरे ज़िंदा रहने की लय है ।
मुझे मालूम है
अगर तुम्हें याद कर मैं खील-खील नहीं बिखराता तो
वो वक़्त की मेहरबानी नहीं
बल्कि
तुम्हारे शोक का ही जीवनदायनी संगीत है ।
कविता -2
सूर्य को देखते रहना चाहिए
ज़िद का भी एक बहाव होता है
वो समय को भी गढ़ सकता है
कितना कुछ तो बाक़ी होता है
जो ऊँघता रहता है
आदत और आलस से बनी गुफाओं में
थोड़ा उम्र का झुरमुट
कुछ आराम का रेशम
कुछ गुनाहों की लज्जत
और वो ‘बाक़ी’
लिपट जाता है विस्मृतियों की बारिशों में
इन धुओं के प्रेतों से
जूझने का कोई मतलब तो नहीं
पर
उनके साथ सो जाने से
वो ‘बाक़ी’ भी मर जाएगा
इसलिए उन रूमानी गुफाओं से बाहर आ
सूर्य को देखते रहना चाहिए
और
फिर से ज़िद करके देखते रहना चाहिए।
कविता – 3
सनद जीवन की
एक ठहरी हुई सी अनंत प्यास
उसमें झूलते कुछ बिना जिए सपने
अमूर्त क़ैद
एक कभी न थमने वाली अपूर्णता की
तरस
जो सिलती एक बेआवाज़ गूँज
बे पता आवारा हसरतें
गर्म हवा से बनी सुनसान सड़कों सी
अजब मौजूदगी
बड़बड़ाती सोच और ढलते सकून की
ये उत्सव है ख़ाली दरारों का
ये संगीत है चुभते ख़ालीपन का
इसमें थिरकता मौत का अट्टहास ही तो है
सनद जीवन के कंगाल पूरेपन की
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(धीरज सिंह भारतीय सूचना सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं। वह आधुनिक क्ला, संगीत, फिल्मों और टेलीविज़न पर भी काफी लिखते रहे हैं।)
(डिस्क्लेमर : इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के स्वयं के हैं। रागदिल्ली.कॉम के संपादकीय मंडल का इन विचारों से कोई लेना-देना नहीं है।)