चीनी की मिठास में कड़वाहट रोकने की कोशिश
महंगाई को काबू में रखने के लिए सरकार के विभिन्न विभागों की सहभागिता होती है। कीमतों को नियंत्रित करना उतना आसान नहीं होता, लेकिन सरकार यदि नीतिगत निर्णय सही तरीके से ले तो बाजार में कीमतों पर उसका असर अवश्य दिखता है। चीनी के मामले में लगभग यही हुई है। सहकारी आंदोलन को पुनर्जीवित और सुदृढ़ कर सरकार ने देश में चीनी को कड़वा होने से बचा लिया है।
चीनी के बाजार में कड़वाहट भरने में चीनी मिलों की आर्थिक स्थिति का योगदान काफी अधिक होता है। इससे बचने के लिए हमेशा से सरकारें चीनी उदयोग को समर्थन देती आई हैं। इस सरकार ने भी बीते एक दशक में इसी तरह के कदम उठाये हैं और चीनी मिलों को निरंतर राहत देने का प्रयास किया है। इसके तहत मिलों को किसानों को उचित एवं लाभकारी भुगतान या राज्य परामर्शित मूल्य (एसएपी) पर गन्ने के अधिक मूल्य का भुगतान करने पर अतिरिक्त आयकर से छूट दी गई है। इसके साथ ही सरकार ने चीनी सहकारी मिलों के पुराने लंबित मुद्दों का समाधान कर दिया है।
यहाँ यह ध्यातव्य है कि विश्व में सबसे ज्यादा गन्ना भारत में उगाया जाता है, जो पूरे उत्पादन का लगभग 35 प्रतिशत है। गन्ने की खेती हर वर्ष लगभग 30 लाख हेक्टेयर भूमि पर की जाती है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2024-25 सीजन में भारत का कुल चीनी उत्पादन 34.5 मिलियन मीट्रिक टन होगा और चार मिलियन मीट्रिक टन चीनी एथेनॉल उत्पादन के लिए जाएगा। इस सकारात्मक स्थिति को पाने में किसानों को गन्ने का बेहतर और समय पर भुगतान की भी अहम भूमिका है। भारत सरकार के हालिया जारी आंकड़ों के अनुसार इस साल गन्ने की बुवाई 56.88 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है, जबकि 2023 में यह 55.45 लाख हेक्टेयर रही है। भारत 2025 तक 20 प्रतिशत एथेनॉल मिश्रण हासिल करने की ओर अग्रसर है।
केंद्रीय बजट में चीनी सहकारी समितियों को निर्धारण वर्ष 2016-17 से पहले की अवधि के लिए गन्ना किसानों को मूल्य भुगतान के लिए लगभग 10,000 करोड़ रुपए की राहत प्रदान की गई। केंद्र सरकार ने चीनी क्षेत्र को आत्मनिर्भर रूप में आगे बढ़ने में सक्षम बनाने के लिए एक दीर्घकालिक उपाय के रूप में चीनी मिलों को चीनी से एथनॉल के उत्पादन और अतिरिक्त चीनी के निर्यात के लिए प्रोत्साहित किया है। इससे चीनी मिलें किसानों को समय पर गन्ने का भुगतान कर सकती हैं। इससे मिलों की वित्तीय स्थिति भी बेहतर हो सकती है। केंद्र सरकार के इन्हीं निर्णयों की वजह से चीनी क्षेत्र पिछले दो गन्ना पेराई सत्र से बिना सब्सिडी के ही सफलतापूर्वक आत्मनिर्भर हो गया है।
भारत में चीनी का उत्पादन मूलतः गन्ने से किया जाता है। गन्ने को नकदी फसल माना जाता है और यह चीनी आधारित उद्योगों का मुख्य आाधार है। भारत में चीनी उद्योग की सफलता की गाथा देश में व्यापार के लिए अत्यधिक सहायक समग्र पारिस्थितिकी तंत्र निर्माण के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकारों, किसानों, चीनी मिलों, एथनॉल डिस्टिलरीज के सहयोगपूर्ण प्रयासों का ही परिणाम है।
पिछले पांच वर्षों में भारत सरकार के प्रयास चीनी उद्योग को 2018-19 में वित्तीय संकट से बाहर निकालने से लेकर 2021-22 में आत्मनिर्भरता तक पहुंचाने और उत्पादन में वृद्धि के महत्वपूर्ण कारक रहे हैं। गन्ना से शक्कर या शुगर, गुड़, शराब, कई रसायन या केमिकल, एथेनॉल और स्प्रिट जैसे बहुत से उत्पाद बनाए जाते हैं। इन वर्षों में इथेनॉल के जैव ईंधन क्षेत्र के रूप में विकास से चीनी क्षेत्र को खासा समर्थन मिला है, क्योंकि चीनी से एथनॉल के उत्पादन से चीनी मिलों की वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ है। इससे गन्ना किसानों का भुगतान तेज हुआ है औऱ कार्यशील पूंजी की जरूरत कम हुई है तथा मिलों के पास अतिरिक्त चीनी कम होने से पूंजी के फंसने के मामले कम हुए हैं।
एथनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम के तहत 2025 तक 20 प्रतिशत सम्मिश्रण का लक्ष्य
देश में शीरे एवं चीनी आधारित डिस्टिलरीज की एथनॉल उत्पादन क्षमता बढ़कर 683 करोड़ लीटर प्रति वर्ष हो गई है। एथनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम के तहत 2025 तक 20 प्रतिशत सम्मिश्रण के लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रगति जारी है। आगामी सत्र में चीनी से इथेनॉल का उत्पादन 36 लाख टन से बढ़कर 50 लाख टन होने की उम्मीद है। इससे चीनी मिलों को लगभग 25,000 करोड़ रुपए का राजस्व मिलेगा। एथनॉल मिश्रण कार्यक्रम ने विदेशी मुद्रा की बचत के साथ-साथ देश की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत किया है। 2025 तक 60 एलएमटी से अधिक अतिरिक्त चीनी को एथनॉल में बदलने का लक्ष्य रखा गया है, जिससे चीनी के ऊंचे भंडार की समस्या का समाधान होगा और मिलों की तरलता में सुधार होगा। इससे किसानों के गन्ना बकाए के समय पर भुगतान करने में मदद मिलेगी और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
भारत सरकार चीनी मिलों और डिस्टिलरीज को अपनी आसवन क्षमता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है। इसके लिए सरकार बैंकों से उन्हें कर्ज मुहैया करा रही है, जिस पर छह प्रतिशत की दर से या बैंकों द्वारा वसूले गए ब्याज पर 50 प्रतिशत ब्याज की आर्थिक सहायता जो भी कम हो, उसका बोझ सरकार द्वारा वहन किया जा रहा है। चीनी मिलों को चीनी को एथनॉल निर्माण के लिए इस्तेमाल करने और अधिशेष चीनी का निर्यात करने के लिए सरकारी प्रोत्साहन से चीनी मिल समय पर किसानों को गन्ने का भुगतान जारी रख सकेंगे और आर्थिक तथा विनिर्माण गतिवधियों को जारी रखने के लिए मिलों की वित्तीय स्थिति भी बेहतर बनी रहेगी।
अधिकतम चीनी से एथेनॉल बनाने और अधिकतम चीनी के निर्यात से चीनी मिलों की तरलता में सुधार होगा, जिससे वे किसानों के गन्ना बकाये का समय से भुगतान करने में सक्षम होंगी, और घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में स्थिरता भी आएगी। इससे चीनी मिलों के राजस्व में सुधार होगा और सरप्लस चीनी की समस्या का भी समाधान होगा। मिश्रण के स्तर में सुधार के साथ जैव ईंधन के आयात पर निर्भरता में कमी आएगी और वायु प्रदूषण की स्थिति में भी सुधार होगा। इससे कृषि अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी, जो किसानों की आर्थिक उन्नति में भी सहायक होगा।
(दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख रहे नितिन प्रधान बीते 30 वर्ष से मीडिया और कम्यूनिकेशन इंडस्ट्री में हैं। आर्थिक पत्रकारिता का लंबा अनुभव।)
(डिस्क्लेमर : इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के स्वयं के हैं। रागदिल्ली.कॉम के संपादकीय मंडल का इन विचारों से कोई लेना-देना नहीं है।)