क्या अर्थव्यवस्था के लिए फिर चुनौती बन रही है कोविड महामारी?
नितिन प्रधान*
कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रोन का असर जैसे जैसे बढ़ रहा है, बीते दो वर्ष की भांति अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता भी बढ़ती जा रही है। यह सही है कि ओमिक्रोन को ज्यादा घातक नहीं बताया जा रहा है, लेकिन यह भी सच है कि मरीजों की संख्या इसमें बहुत तेजी से बढ़ रही है और यह एक सीमा पर पहुंच कर आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित भी कर सकती हैं। फिलहाल दिल्ली, महाराष्ट्र और केरल में ओमिक्रोन के मामले बढ़ने की गति सबसे अधिक है। इन्हीं राज्यों ने महामारी के फैलाव को रोकने के लिए कदम भी उठा लिये हैं जिनमें काम करने वाले लोगों की आवाजाही को सीमित करने वाले प्रतिबंध भी शामिल हैं। ये कदम यहीं तक सीमित रहते हैं तो आर्थिक गतिविधियों पर बहुत अधिक असर संभवतः न हो, परंतु यदि ओमिक्रोन के मरीजों की तादाद यूं ही बढ़ती रही तो स्थितियां पलट भी सकती हैं। ऐसे में अर्थव्यवस्था के पिछले वर्ष के शुरुआती महीनों की स्थिति में चले जाने का जोखिम बढ़ जाएगा, जहां सीधे तौर पर मांग और आपूर्ति की व्यवस्था बाधित होती है।
कुछ ब्रोकिंग एजेंसियों का अनुमान है कि स्थितियां इसी तरह बनी रहीं तो नए साल के शुरुआती महीनों में मांग धीमी रह सकती है। इन रिपोर्टों के मुताबिक सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों की मांग में बहुत अधिक तेजी नहीं दिख रही है। ग्रामीण बाजार देश की अर्थव्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रखते हैं। ऑटोमोबाइल से लेकर कंज्यूमर ड्यूरेबल जैसे उद्योगों का भविष्य काफी हद तक इसी ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर निर्भर रहते हैं। कोविड महामारी का यह नया दौर ऐसे वक्त में आ रहा है जब अर्थव्यवस्था में सुधार दिख रहा है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि यदि मौजूदा स्थितियों में कोई बदलाव होता है तो उसका असर अर्थव्यवस्था पर भी दिखेगा। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए आगामी बजट में अर्थव्यवस्था की इस रफ्तार को बनाये रखने के उपायों को शामिल करने की चुनौती होगी। महंगाई, बेरोजगारी के आंकड़े अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच रहे हैं। ऐसे में केंद्र सरकार का अगला बजट बेहद महत्वपूर्ण होगा।
अर्थव्यवस्था की रफ्तार को तेज करने की दिशा में सबसे ज्यादा चिंता एमएसएमई क्षेत्र (लघु एवं सूक्ष्म उद्यम) को लेकर है। नोटबंदी, जीएसटी और अब कोविड की वजह से लगे लॉकडाउन ने सबसे ज्यादा दिक्कत एमएसएमई इकाइयों यानि छोटे-छोटे उद्यमों को ही पहुंचाई है। ऊपर से बैंकिंग सेक्टर की तरफ से कर्ज को लेकर नए रुख ने इस क्षेत्र की कार्यशील पूंजी की जरूरतों को बुरी तरह प्रभावित किया। इसके अतिरिक्त एमएसएमई क्षेत्र की तरफ से कई नियमों में बदलाव की मांग भी आ रही है। मसलन दिवालिया कानून के तहत अभी एमएसएमई को ऑपरेशनल क्रेडिटर के तौर पर गिना जाता है। और दिवालिया कानून के तहत जब लेनदारी का हिसाब-किताब होता है तब ऑपरेशनल क्रेडिटर्स की लेनदारी बट्टेखाते में डाल दी जाती है या फिर बहुत कम राशि की वसूली इनके हिस्से में आती है। एमएसएमई सेक्टर की फेडरेशन चाहती है कि उन्हें क्रेडिटर्स के रूप में अलग दर्जा दिया जाए और उनकी लेनदारी को प्राथमिकता की श्रेणी में रखा जाए। इसके लिए सॉल्वेंसी कानून में संशोधन करना होगा। एमएसएमई क्षेत्र का अर्थव्यवस्था में योगदान देखते हुए वित्त मंत्री इस तरह के बदलावों का ऐलान आने वाले बजट में कर सकती हैं।
वैसे चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही तक सरकार के खजाने की हालत में काफी सुधार आया है। खासतौर पर कर संग्रह के मोर्चे पर सरकार को इस वर्ष काफी राहत है। इससे यह संकेत भी मिल रहा है कि अर्थव्यवस्था अब वापिस कोविड पूर्व स्थिति की तरफ बढ़ रही है। उद्योगों की स्थिति का अंदाज काफी हद तक अग्रिम कर की राशि से लगाया जाता रहा है। अग्रिम कर जमा करने की आखिरी तारीख 15 दिसंबर तक सरकार को 459917.10 करोड़ रुपये की राशि प्राप्त हुई थी। यह पिछले वित्त वर्ष में इस अवधि तक जमा कुल अग्रिम कर से 53.50 प्रतिशत अधिक है। वित्त वर्ष 2021-22 में अब तक शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह में 60 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जा चुकी है। कुल मिलाकर 16 दिसंबर तक सरकार के खजाने में 945276.6 करोड़ रपये का प्रत्यक्ष कर संग्रह हो चुका है। बीते वित्त वर्ष इस अवधि तक 587702.9 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष कर संग्रह हुआ था। जबकि 2019-20 के वित्त वर्ष में यह राशि 675409.5 करोड़ रुपये का कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह सरकार के खजाने में आया था। इसी तरह इस वर्ष जीएसटी संग्रह के मामले में भी सरकार को राहत है। यह लगातार एक लाख करोड़ रुपये से अधिक बना हुआ है। नवंबर 2021 में सरकार का जीएसटी संग्रह 131526 करोड़ रुपये रहा। देश में जीएसटी लागू होने के बाद यह दूसरी सबसे बड़ी बढ़ोतरी है। जीएसटी का संग्रह बताता है कि आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि हो रही है। हालांकि सरकार जीएसटी के आंकड़ों में यह स्पष्ट नहीं करती कि इसमें कितना हिस्सा मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादों से आया और कितना सेवा क्षेत्र से प्राप्त हुआ। बावजूद इसके सरकार के लिए इसमें निरंतर वृद्धि राहत की बात है।
जहां तक गैर कर संग्रह का सवाल है, उस मोर्चे पर सरकार को इस वर्ष एयर इंडिया के विनिवेश में बड़ी सफलता मिली है। लेकिन सरकार के खजाने में इस विनिवेश से बहुत अधिक राशि नहीं आयी है। कुछ अन्य कंपनियों का विनिवेश पाइपलाइन में है जिसमें शिपिंग कॉरपोरेशन भी शामिल है। वित्त मंत्री ने चालू वित्त वर्ष के बजट में विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था। लेकिन यह पूरा हो पाएगा, कहना बहुत मुश्किल है। विनिवेश गैर कर संग्रह का बड़ा स्रोत है। इसलिए इस मोर्चे पर सरकार को बहुत अधिक राहत की उम्मीद नहीं है। बावजूद इसके राजस्व संग्रह के मामले में भले ही सरकार राहत महसूस कर रही है। राजकोषीय घाटा वित्त मंत्री को फिलहाल तनाव नहीं दे रहा। बजट में वित्त मंत्री ने चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी के 6.8 प्रतिशत राजकोशीय घाटे का अनुमान लगाया था जो करीब 15.06 लाख करोड़ करोड़ रुपये बैठता है। कंट्रोलर जनरल अकाउंट्स के मुताबिक अक्टूबर के अंत तक सरकार का राजकोषीय घाटा 5.47 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है जो बजट अनुमान का करीब 36 प्रतिशत है। वित्त वर्ष की बाकी अवधि में सरकार का खर्च बढ़ता है और राजस्व संग्रह की यही रफ्तार बनी रहती है तो वित्त मंत्री के लिए आने वाले वर्ष में बजट का आकार बढ़ाने में अधिक सुविधा रहेगी।
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*दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख रहे नितिन प्रधान बीते 30 वर्ष से मीडिया और कम्यूनिकेशन इंडस्ट्री में हैं। आर्थिक पत्रकारिता का लंबा अनुभव।
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