जर्मन दार्शनिक मार्टिन हाइडेगर की तीन कवितायें
डॉ मधु कपूर इस वेब पत्रिका के लिए अब जाना पहचाना नाम हो गया है। दार्शनिक विषयों पर उनके करीब दर्जन भर लेख इस वैबसाइट पर प्रकाशित हो चुके हैं। डॉ मधु कपूर दार्शनिक होने के अलावा कवि भी हैं और एक दिन हम उनकी कवितायें भी ज़रूर पढ़ेंगे। फिलहाल उनके अकादमिक विषय दर्शन और कविता का एक दुर्लभ कॉम्बिनेशन उन्होंने हमें भेजा है, खास तौर पर राग दिल्ली के इस नए संस्कारण के लिए। उन्होंने जर्मन दार्शनिक मार्टिन हाइडेगर की तीन कविताओं का अनुवाद किया है और उन कविताओं पर एक नोट लिखा है, जिसे आप नीचे कविताओं से पहले पढ़ेंगे।
जर्मन दार्शनिक मार्टिन हाइडेगर (Martin Heidegger), भाषा और अस्तित्व के पारस्परिक सम्बन्ध की गहरी सोच के लिए विख्यात हैं। उनकी कविताएँ उनके दार्शनिक चिंतन का प्रतिफलन है जिन्हें वे ‘Thought poems’ का नाम देते है। बीसवी शताब्दी की जर्मन कविताओं में वह बिम्बों और संकेतों के सूक्ष्म प्रयोगों और भावों एवं शैली पर नियंत्रण द्वारा दार्शनिक जान फूंक देते हैं।
हाइडेगर मानते हैं कि भाषा सिर्फ संवाद का वाहक नहीं होती, बल्कि कुछ ऐसे ‘अंदरूनी कथन का निक्षेप’ करती है जो बिलकुल नया होता है, और इस तरह हमारी समझ के दायरे को विस्तृत करती है। भाषा वास्तव में अस्तित्व का ऐसा आवरण है, जो सिर्फ सांस्कृतिक परिवेश को ही उजागर नहीं करती बल्कि हमें सत्य के करीब ले जाती है, जहाँ हम अपने अस्तित्व को खंगालते है। वह अपने पूर्ववर्ती एक और रहस्यवादी कवि राईना मारिया रिल्क (Rainer Maria Rilke) के रोमांटिसिस्म और गिओर्ग त्रकल (Georg Trakl) के अभिव्यक्तिवाद (expressionism) से प्रभावित होकर कविता को दार्शनिक बुनावट देते है, जिससे सत्य का उद्घाटन किया जा सके।
लय और उपमाओं के संगम से अतिरिक्त कविता जीवन के अर्थ का सन्धान करती है, और अस्तित्व को अपने ही भाषा के आईने के सामने खड़ा कर देती है। वे भाषा को “अस्तित्व का आगार” (House of being) यानि एक ऐसा विश्राम-गृह मानते है, जो अस्तित्व को प्रकाशित करती है। भाषा और अस्तित्व का यह अद्भुत नृत्य कविताओं के माध्यम से मानव मन को एक ऊँची उड़ान देता है।
पाठक कल्पना करे हर शब्द एक पात्र की तरह होता है जो अपने अन्दर निहित क्षमता को प्रकाशित करता है। उदाहरण के लिए थाली में चाय नहीं पी जा सकती, किन्तु वही कार्य एक प्याली कर सकती है। ‘प्याली’ या ‘थाली’ नाम उच्चारण करने के साथ साथ उसके अस्तित्व की पहचान हो जाती है, अर्थात उसका छिपा हुआ स्वरूप बाहर आ जाता है-- कि यह पात्र किस काम के लायक है। भाषा के द्वारा अस्तित्व का घूंघट उठ जाता है और उसका छुपा हुआ मुख उसके सामने आ जाता हैं, जिसकी असली चाबी कविता के पास है. Thought poems नाम से रचित उनके ग्रन्थ से तीन कवितायें यहाँ प्रस्तुत हैं.
1 - भाषा
(Language)
शब्द कब
वाणी के स्वर बनेंगे ?
हस्ताक्षर मात्र से ही वे
अर्थ के वाहक नहीं होते।
शब्द मूल स्रोत (अस्तित्व) तक
पहुंचाते है
प्राणियों को प्रथागत रूप से।
जहाँ सन्नाटे की घंटियाँ शोर मचाती हैं,
जहाँ विमुक्ति की विचार-कविताएँ
सहजता से, स्पष्टता से
उठ खड़ी होती हैं।
2 - शब्द और संसार
(Word and World)
क्या तुम सुनते हो,
मौन की पुकार
जो शब्दों में छिपी है।
उसका सामना करो
शब्दों की लय को पहचानो
दुनिया की गति से ख़ुश।
लेकिन तुम्हारे लिए अधिक मौन कब होता है?
कब?
यहाँ "कभी भी?"
अधीर प्रतीक्षा
हमेशा विलंबित गति से आती है।
पर मौन कैसे पलता है
बिन कुछ मांगे,
क्योंकि सब कुछ एक प्रक्रिया तहत है,
अपने को निचोड़ना और कठिन परिश्रम?
अथवा
क्या दुनिया अनुकम्पा में पलती है,
एहसानों से भरी?
3 - संवाद
(Dialogue)
संवाद
ताकि कहानी भाषा में गूंथी जा सके
अनकहा अपने को छुपा सके,
कहानी से बाहर आकर
अनकहा फ़ैल सके।
लेकिन जब खिले,
तो उसकी कोई सीमा न रहे,
जहाँ हम प्रतीक्षा करते हैं
टकराने की,
नहीं; शुरुआत की
शुरुआत
संसार में,
मौन में कथन का
दुनियावी अपहरण,
आगमन से पूर्णता
स्वतंत्र निश्चय की क्षमता से
अस्तित्व को छुपाने तक -
वह ऐसे ही संकेत,
संवाद भेजता है...
(डॉ मधु कपूर कलकत्ता के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में दर्शनशास्त्र की प्रोफेसर रही हैं। दर्शनशास्त्र के अलावा साहित्य में उनकी विशेष रुचि रही है। उन्हीं के शब्दों में, "दार्शनिक उलझनों की गुत्थियों को साहित्य के रास्ते में तलाशती हूं।" डॉ कपूर ने हिंदी से बंगला में कुछ पुस्तकों का अनुवाद किया है और कुछ कविता संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं। दर्शन पर उनके निबंधों का एक संग्रह Dice Doodle Droll Dance हाल ही में दिल्ली में सम्पन्न हुए विश्व पुस्तक मेला में रिलीज़ हुआ है।)
(डिस्क्लेमर : इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के स्वयं के हैं। रागदिल्ली.कॉम के संपादकीय मंडल का इन विचारों से कोई लेना-देना नहीं है।)