दीपाली शर्मा 'deez' की तीन नई कविताएं
इस वेबपत्रिका के पाठक यहाँ देख चुके हैं कि डॉ दीपाली शर्मा ‘deez’ की कविताओं का अपना ही एक अन्दाज़ है, शायद वह अपना एक अलग ही रास्ता ढूँढ रही हैं। इस बार फिर उनकी कविताओं में आप बाल-सुलभ चपलता भी देख सकते हैं और प्रकृति और अपने आसपास के लिए गहरी चिंता भी! शायद वह प्रयोग कर रही हैं और उनके प्रयोगों के लिए यह वेबपत्रिका मंच बन सकी है तो हमें संतोष है।
1. बचपन के दिन
कौन कहता है कि
बचपन के दिन वापस नहीं आते हैं
खुद घर में सफ़ाई करते हैं
खुद ही खाना बनाते हैं
फिर टी वी के सामने बैठ जाते हैं
कौन कहता है कि
बचपन के दिन वापस नहीं आते हैं
वही रामायण वही महाभारत
वही सीरीयल्ज़ देखे जाते हैं
शक्तिमान देख बच्चे ठहठहाते हैं
कौन कहता है कि
बचपन के दिन वापस नहीं आते हैं
फिर चिड़ियों की आवाज़ों से
सुबह और शाम चहचहाते हैं
रात के आसमाँ में
फिर से हज़ारों तारे टिमटिमाते हैं
कौन कहता है कि
बचपन के दिन वापस नहीं आते हैं
हाँ मन के ये डर नए हैं
भागे भी भगाए नहीं जाते हैं
खबरें ख़ौफ़नाक हैं
दूर तक आशा देख नहीं पाते हैं
एक दूसरे से दूर ही रहना
फ़ोन कम्प्यूटर से ही सब कहना है
सब सबको यह ही सिखाते हैं
कौन कहता है कि
बचपन के दिन वापस आते हैं
पर डर तो बचपन में भी थे
अलग रंग अलग रूप के थे
हमसे उसने लड़ना भी सीखा था
हौसलों के आगे हर डर फ़ीका था
आज फिर हौसलों से डर भागेंगे
एक नयी सुबह में हम जागेंगे
फिर दूरदर्शन के आगे बैठ जाएँगे
फिर से वही बचपन के दिन लौट आएँगे
—-
2. ये चिड़िया
ये जो रोज़ सुबह सुबह चिड़ियाँ
मेरी खिड़की के सामने
पेड़ पे आ जाती हैं
अपनी चीं चीं चीं चीं से
मुझे नींद से जगाती हैं
फिर अलसा के मैं उठ जाती हूँ
धीमे धीमे चाय बनाती हूँ
हाथ में कप ले के
खिड़की पे आ जाती हूँ
चीं चीं की आवाज़ में
मधुर सुर मैं पाती हूँ
एक बुलबुल उस पेड़ पर जो बैठी
तो एक फुनगी वाली रंगीन सी चिड़िया
एकदम से ऐंठी
बोली कौन है री तू
ये तो मेरी डाल है
नहीं गलने वाली तुम्हारी दाल है
मुझे अंग्रेज़ी वाले ‘सनबर्ड’ हैं कहते
मुझे चाहने वाले बड़े घरों में रहते
सुनकर बुलबुल भी गुर्राई
और होने लगी वहाँ चीं-चीं की लड़ाई
तभी वहाँ इक़ छोटी सी ‘टेलरबर्ड’ भी आई
थी छोटी पर बड़ी ठसक से बोली
यहाँ क्या चल रही है लड़ाई
और फिर उसने
उन दोनों की दोस्ती कराई
इतने में इक मैना उड़ते-उड़ते आयी
और सबको इक ताज़ा खबर सुनाई
बोली, चुप से इक बात सुनो
खबर बड़ी निराली है
पक्षियों की दुनिया में
खलबली करने वाली है
ये सुनके दूर से तोते भी आए
साथ में अपने कठफड़वे को भी लाए
सबको देख के क़व्वे भी पेड़ पे आए
सारे पक्षी बैठे महफ़िल खूब जमाए
उनको सुनने के लिए मैंने भी कान उठाए
तब जा के समझा ये क्यों थे चकराए
मैना बोली इंसान को घर पे ही रहना है
आज के अख़बार का ऐसा कुछ कहना है
सुना है गाड़ियाँ रेल जहाज़ सब गए हैं थम
अब कुछ दिन दुनिया पे राज करेंगे हम
ये सुन के सब ने खूब किया हुडदंग
निकल पड़े दुनिया को अपने रंग के रंग
तोता मैना सनबर्ड और टेलरबर्ड ने की तैयारी
बोले कि करेंगे आज पार्टी खूब सारी
खूब उड़े इधर से उधर
कहीं चील तो कहीं फाख्ता
गोरैया कबूतर कोयल हुदहुद भी गए बुलाए
सबने मिल डालों पर झूले खूब झुलाए
फिर थक कर जब बैठे एक पेड़ पे सब
बोले हवा कितनी है साफ़
और कितना नीला नभ
ये इंसान अंदर ही रहें
कुछ ऐसा हो जाए अब
तभी सयानी चिड़िया आई
बोली तुम क्यों करते नादानी
यह धरती हम सब की है
और हम सब इसके प्राणी
इंसान पशु पक्षी पेड़ पोधे
मिल कर रहते हैं जब
देखो फिर करें कैसे कैसे ग़ज़ब
ये बातें सुन के मैं चकराई
तब कुछ मेरे समझ में आई
ठीक कहती ये चिड़िया रानी
एक हमारी धरती और
हम सब हैं इसके प्राणी
—
3. अख़बार
तुम आते तो सुबह होती है
वरना दुनिया यूँ ही सोती है
तुम ना मिलो तो चाय अधूरी है
तुमसे मिलके ही खुलती नींद पूरी है
तुम सिर्फ़ खबर ही नहीं लाते हो
तुम सबके बहुत काम आते हो
सब्ज़ी तुम में लिपट के आती है
रोटी भी तुम में आसरा पाती है
बच्चों के भी खूब काम आते हो
कापियों में जिल्द बन कर खूब भाते हो
तुमसे कई खिलौने भी बनाते हैं
तुम कभी तो बैठने के काम भी आते हो
तुम्हारे पीछे छुप के कई रोए हैं
और तुम्हारे ही पीछे कई सोए है
किसी ने तुम्हारे पीछे नज़र चुरायी है
किसी ने तुम्हारे नीचे गलती छुपायी है
आते हो बहुत काम हो
पर जाते कौड़ियों के दाम हो
जीवन का यह सच भी तुम सिखाते हो
इंसान का अंत भी ये ही है
ऐसा तुम बताते हो
तुम मेरे यार हो
तुम मेरे प्यार हो
और तुम ही अख़बार हो ....
—-
(डॉ. दीपाली शर्मा श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र विभाग में एसोसियेट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। करियर के तौर पर अर्थशास्त्र को अपनाने के बावजूद उनका साहित्यिक रुझान हमेशा ही बना रहा। स्वयं उनके शब्दों में, “मैं सिर्फ़ अपने मन में उमड़ते-घुमड़ते विचारों को कविता में पिरो देती हूं, बिना यह चिंता किये कि वो तयशुदा साहित्यिक मानदंडों पर खरी उतरती हैं या नहीं हैं! मेरी कविताएं अगर कुछ सहृदय पाठकों के मन को भी छू जाती हैं तो यह मेरे लिए बहुत संतोष की बात होगी।")