अध्यात्म एवं दर्शन

आकाशगंगा में चमकता दूसरा सितारा - यह ‘अन्य’ कौन?

यह एक सामान्य धारणा है कि शब्द से अर्थ का बोध होता है किंतु सभी शब्दों से सभी अर्थों का बोध नहीं होता अपितु किसी निश्चित शब्द से किसी निश्चित अर्थ का ही बोध होता है. फिर निश्चयता कितनी है, यह प्रश्न बराबर हमें कुरेदता रहता है. ‘दर्द महसूस करना’ और किसी ‘अन्य के दर्द को समझना’  बिलकुल पृथक होकर भी पृथक नहीं होते है. चिकित्सक समझता है दांत के दर्द और पेट के दर्द में क्या फर्क है, महसूस नहीं कर सकता है.

पुनर्जन्म : स्वयं की वापसी या निराधार भ्रम

पिछले कुछ समय से दार्शनिक प्रश्नों और सिद्धांतों को हमारी वेबपत्रिका के लिए सहज-सुगम शैली में प्रस्तुत कर रहीं डॉ मधु कपूर का यह लेख ‘पुनर्जन्म : स्वयं की वापसी या निराधार भ्रम’ आत्मा पर लिखे जा रहे उनके लेखों की कड़ी में शायद अंतिम है।

आत्मा की अमरता ‒ सम्भावनाओं की गांठों का खुलना

"आध्यात्मिक" शब्द का अर्थ ही है "आत्मा से सम्बंधित" अर्थात गहराई तक जाकर स्पष्ट देखना, सामान्य भौतिकता से परे कुछ सोचना। 

केवल अनुष्ठान नहीं, व्रतनिष्ठा व साधना को गहन करने वाला पर्व

इन दिनों विश्व भर के जैन धर्मावलम्बी पर्यूषण पर्व मना रहे हैं। श्वेताम्बर और दिगम्बर मतानुयायी इसे 31 अगस्त से 17 सितंबर तक मनाएंगे – 7 सितंबर तक श्वेताम्बर और फिर 17 सितंबर थे दिगम्बर।

आत्मा की धारणा : अपना समाज स्वयं चुनती है आत्मा!

“कोई कहता है मृत्यु के बाद जीवात्मा शरीर को कपड़ों की तरह बदल कर अन्य शरीर धारण कर लेती है, कोई कहता है, जीवात्मा परम आत्मा  में विलीन हो जाती है, कोई कहता है -- शरीर के साथ आत्मा भी नष्ट हो जाती है...

Politics of Statues goes on but...

When I visited the Statue of Equality in Hyderabad, which honors Ramanuja, an influential 11th-century Vaishnavite saint and philosopher, known for his teachings on Vishishtadvaita (qualified non-dualism). I was thoroughly impressed after visiting the complex. Let me provide a brief description.

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