लोकतन्त्र को चुनौती दे रही है उन्मादी भीड़...

विद्या भूषण अरोरा | समाज-एवं-राजनीति | Jan 03, 2019 | 282

ईद का मौका सर पर होने के बावजूद उल्लास और उत्सव की तरफ ध्यान जाने की बजाय आपके स्तम्भकार का ध्यान गया बल्लभगढ़ के एक गाँव के जुनैद की तरफ जिसे ट्रेन में उन्मादी भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला। ईद की खरीददारी करने गया मात्र पन्द्रह साल का जुनैद भीड़ के पागलपन का शिकार हुआ। इस घटना को एक सामान्य क़ानून-व्यवस्था या जिसे आप अंग्रेजी में लॉ एंड ऑर्डर प्रॉब्लम कहते हैं, मानकर छोड़ा जा सकता था. लेकिन काश कि ये ऐसी ही बात हो।

सच्चाई ये है कि गाय और गौमांस का नाम लेकर होने वाली हत्याओं की कड़ी लम्बी ही होती जा रही है. ऐसी घटनाएं जिनसे मानवता शर्मसार हो जाए, बढती ही जा रही हैं. उत्तरप्रदेश के अखलाक से होकर अलवर, राजस्थान के पहलु खान की हत्या और अब जुनैद और उसके भाइयों पर हमला – ये हो क्या रहा है! क्या हमारा पूरा समाज पागलपन के किसी खास दौर से गुज़र रहा है? अगर ये पूरे समाज का उन्माद नहीं है तो लगातार होती  इन घटनाओं के खिलाफ कोई सशक्त आवाज़ क्यूँ नहीं उठ रही? अपनी विश्वसनीयता खो चुके विरोधी दलों के नेताओं के औपचारिक बयान महज़ खानापूर्ति करते हैं, हालाँकि फिर भी उनका होना भी ज़रूरी है लेकिन इस निराशानजक माहौल में सबसे ज्यादा ज़रूरी ये है कि भारतीय समाज पूरी ताकत से ये आवाज़ लगाकर कहे कि गोमांस या गौमाता के नाम पर हो रही इन नृशंस कार्यों का हमारे धर्म या हमारी मान्यताओं से कोई लेना-देना नहीं और हम ऐसी घटनाओं से आहत हैं! लेकिन अफ़सोस कि ऐसी कोई ख़ास आवाजें सुन नहीं रही – क्या अच्छा होता कि भारतीय समाज में वो स्वत;स्फूर्त ढंग से उठ खड़े होने की मैच्योरिटी होती और पूरी उर्जा के साथ ऐसे लोगों को ललकारा जाता जो समाज में नफरत का पैगाम दे रहे हैं ! ऐसी घटनाएं लोकतन्त्र के लिए भी खतरा हैं !

आप याद रखिये कि लोकतंत्र पर खतरा केवल सरकारों की तरफ से आये, ऐसा नहीं होता – लोकतन्त्र पर खतरा ऐसे समूहों की तरफ से भी आ सकता है जो अपना प्रभुत्व बढ़ने के लिए माफिया के स्टाइल में ऑपरेट करें ! अफ़सोस की बात ये कि ना तो जुनैद के राज्य के मुख्यमंत्री (हरियाणा के श्री खट्टर) और ना ही केंद्र सरकार की तरफ से ऐसा कोई सन्देश आया है कि जिससे ये पता चलता कि देश की सरकारें ऐसी घटनाओं को हलके में नहीं ले रहीं और उनसे निपटने के लिए सरकार सख्त से सख्त कारवाई के मूड में हैं. ऐसे संदेशों के अभाव में ही इस बात की ज़रूरत और बढ़ जाती है कि आम आदमी अपनी आवाज़ को बुलंद करे ! जहाँ भी चर्चा हो, आम आदमी को कोशिश करनी चाहिए कि वह बिना नेताओं के भी अपनी बात सशक्त ढंग से कहे, वह आगे आकर कह दे कि हम ये उन्माद और पागलपन सहन नहीं करेंगे और ऐसे नेताओं का भी साथ नहीं देंगे जो ऐसी घटनाओं पर मौन साधकर बैठे रहते हैं !

आजकल तो अकेले आदमी के पास भी अपनी बात कहने का मंच मौजूद है यानी वह सोशल मीडिया पर आकर अपनी भड़ास ढंग से निकाल सकता है ! अगर आज हम चुप रहेंगे तो सिस्टम को धीरे धीरे समझ आ जाएगा कि ये लोग कुछ बोलते-बालते नहीं हैं, इसलिए इनके साथ कुछ भी किया जा सकता है और एक दिन पता चलेगा कि हम वो सब धीरे धीरे खोते जा रहे हैं जो हमने स्वंतत्रता आन्दोलन की विरासत से कमाया था! एक समय वो भी आ सकता है कि हम अपने नागरिक अधिकारों को खोते जायेंगे लेकिन उन्माद कुछ ऐसा होगा कि हमें पता ही नहीं चलेगा कि ये सब कब हो गया!

इस स्तम्भकार को मालूम है कि अभी ये सब बहुत बढ़ा-चढा कर कही गई बात लग रही होगी लेकिन इस स्तम्भ के पढने वालों में से अधिकांश ने आपातकाल नहीं देखा होगा! उस समय श्रीमती इंदिरा गाँधी ने ये कह कर सारे मौलिक अधिकार सस्पेंड कर दिए थे कि कुछ लोग (जयप्रकाश नारायण) पुलिस और सेना को  भड़का रहे हैं और देश में अराजकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं ! इसलिए किसी बड़ी घटना की प्रतीक्षा किये बगैर आप सब गलत बातों और प्रवृतियों का पुरजोर विरोध करना सीख लें ताकि दुबारा आपातकाल जैसी स्थिति ना आये ! क्या संयोग है कि ये लिखे जाने के समय आपातकाल की वर्षगांठ भी है और स्वयम प्रधानमन्त्री मोदी ने कहा है कि आपातकाल की घटनाओं से सबक लेने की ज़रूरत है और हमें अपने लोकतन्त्र को बचाए रखने के लिए सदैव सजग रहना होगा !

विद्या भूषण अरोरा 



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