राजनीतिक परिदृश्य पर एक उड़ती सी नज़र

विद्या भूषण अरोरा | समाज-एवं-राजनीति | Feb 01, 2019 | 100

लोकसभा चुनाव तीन महीने दूर रह गए हैं। अगर राजनैतिक परिदृश्य पर एक नज़र डालें तो पिछले एक वर्ष में स्थितियाँ कुछ इतनी तेज़ी से बदली हैं कि भाजपा सरकार अब कुछ बौखलाई हुई लग रही है। उधर कॉंग्रेस तीन प्रदेशों मे सरकार बनाने के बाद महसूस कर रही है कि उसने 2014 मे जो ज़मीन खो दी दी थी, उसका एक बड़ा भाग उसे वापिस मिल सकता है। सभी विपक्षी दल महागठबंधन बनाने और ना बनाने के बीच मे झूल रहे हैं। अभी सभी राजनीतिक दल ऐसी स्थिति मे लग रहे हैं जैसे परीक्षा से कुछ दिन पहले निकम्मे बच्चों की हालत होती है।

सबसे पहले सरकार की बौखलाहट की बात कर लें। आज जब यह स्तम्भ लिखा जा रहा है तो खबरें आ रही है कि स्वायत संस्थानो से असहज महसूस करने वाली भाजपा सरकार ने एक और संस्थान का बंटाढार कर दिया है। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के अध्यक्ष ने और उनके अलावा एक सदस्य ने सरकार द्वारा नेशनल सैंपल सर्वे ओर्गेनाइज़ेशन (NSSO) की वर्ष 2017-18 की रिपोर्ट रोके जाने के विरोध में इस्तीफा दे दिया है। इस रिपोर्ट में वर्ष 2017-18 के दौरान देश मे रोजगार और बेरोजगारी का विस्तृत ब्यौरा है।

अर्थशास्त्रियों को उम्मीद थी कि रिपोर्ट आने के बाद बेरोजगारी की वास्तविक स्थिति का आकलन हो सकेगा और नोटबंदी के कारण देश में रोजगार किस गति से समाप्त हुए, ये पता चल सकेगा।

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की ये कोई पहली रपट ना होती। इसका गठन वर्ष 2006 में इस उद्देश्य से किया गया था कि यह संस्था देश में मौजूद सांख्यिकीय प्रणालियों के काम-काज की निगरानी और समीक्षा करेगी। लेकिन जैसा कि इस सरकार ने कई अन्य संस्थानों के साथ किया है, इसको भी इतना कुंड कर दिया है  कि इस करीब करीब चलता कर दिया है।

मोदी सरकार की खासियत ये है कि ये ना तो विरोधियों के शोर की चिंता करती है और ना किन्हीं बुद्धिजीवियों की चिंता की – इसको जो करना होता है, वह वो करती जाती है। स्वाभाविक है कि सरकार के समर्थक उसके इस रवैये से बहुत प्रसन्न रहते हैं। उन्हें लगता है कि मोदी जी बहादुर प्रधान मंत्री हैं जो किसी की नहीं सुनते और ‘देश-हित” के काम में लगे रहते हैं। फिर इसी तरह के संदेश व्हाट्सएप्प पर आते रहते हैं जिनसे ऐसी धारणाओं को बल मिलता है।

सरकार की बौखलाहट का एक नमूना है अयोध्या में उस ज़मीन की मांग करने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना जो विवादग्रस्त नहीं है ताकि उस पर तो मंदिर-निर्माण शुरू हो जाये! एकबारगी तो ये बात जायज़ लगती है लेकिन इसमें सबसे बड़ा पेंच ये है कि पहले तीन अवसरों पर सुप्रीम कोर्ट इस अनुरोध को अस्वीकार कर चुका है। स्पष्ट है कि सरकार को ये बात तो ज़रूर मालूम होगी किन्तु राम मंदिर के मुद्दे पर सरकार जनता के सामने चुनावों से पहले नेकनीयत दिखना चाहती है।

अब विपक्षी दलों की बात करें तो वहाँ पूरा ‘कन्फ़्यूजन’ चल रहा है। किसी को समझ नहीं आ रहा कि वो किधर जाये? कॉंग्रेस को उत्तर प्रदेश के गठबंधन में जगह नहीं मिली लेकिन लोग कयास लगा रहे हैं कि ये भी एक योजना के तहत हुआ है। इन लोगों का कहना है कि कॉंग्रेस भाजपा के वोट काटेगी और उससे गठबंधन को फायदा हो जाएगा। उधर अमेठी-रायबरेली में तो गठबंधन कोई उम्मीदवार खड़ा ना करने की घोषणा कर ही चुका है, कुछ अन्य सीटों पर भी सपा-बसपा अपने कमज़ोर उम्मीदवार खड़े कर सकते हैं।

कॉंग्रेस पार्टी में भी दो बड़ी बातें हुई हैं। पहली तो ये कि प्रियंका गांधी राजनीति में सक्रिय हो गईं हैं और इसे पार्टी के लिए बहुत सकारात्मक माना जा रहा है। इस पर कभी अलगा से भी चर्चा की जा सकती है। दूसरी बात ये कि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने न्यूनतम आय गारंटी की योजना को लागू करने की बात कही है। कहा जा रहा है कि यह पार्टी का मास्टर-स्ट्रोक है। इसका असर इन्दिरा गांधी के गरीबी हटाओ नारे जैसा होने वाला है। कुछ लोगों का ये भी मानना है कि राहुल गांधी ने सरकार द्वारा ऐसी किसी घोषणा की पहले ही हवा निकालने के लिए ऐसा किया है।

देश के लिए ये चुनाव काफी महत्वपूर्ण होने जा रहे हैं। पिछले लगभग साढ़े चार वर्षों में देश में कट्टरपंथी लोगों की तूती बोलती रही है। धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले लोगों ने देश में एक तनावपूर्ण माहौल बना कर छोड़ा हुआ है। इसके अलावा किसान भी खासे परेशान हैं क्यूंकी किसानी पूरी तरह घाटे का सौदा होता जा रहा है। बेरोजगारी का आलम ये है कि सरकार को अपने ही एक संगठन की रिपोर्ट छिपानी पड़ रही है। लेकिन इसका ये अर्थ नहीं कि लोग मोदी सरकार से पूरी तरह उकता गए हैं। अभी से ही जो एक-आध सर्वे आने शुरू हो गए हैं, उनका कहना है कि एनडीए को 250 से कम सीटें नहीं मिलेंगी। ऐसे में ये अनुमान लगाना बहुत मुश्किल होगा कि अगला प्रधान मंत्री कौन होगा।

यदि एनडीए को कम सीटें आईं तो भी कुछ नए दल जोड़ने की कोशिश ज़रूर करेगा। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि इसीलिए तो शायद संघ ने नितिन गडकरी को आगे किया है जो उस सूरत में प्रधानमंत्री के रूप में पेश किए जाएँगे ताकि छोटे छोटे नए दल उन्हें समर्थन दे सकें।

तो अगले तीन-चार महीने आपके लिए बहुत रोचक रहने वाले हैं। बहुत सावधानी से अपने मताधिकार का प्रयोग कीजिएगा।

विद्या भूषण अरोरा

यह आलेख उत्तरांचल पत्रिका के फरवरी 2019 में प्रकाशित हो रहा है।



We are trying to create a platform where our readers will find a place to have their say on the subjects ranging from socio-political to culture and society. We do have our own views on politics and society but we expect friends from all shades-from moderate left to moderate right-to join the conversation. However, our only expectation would be that our contributors should have an abiding faith in the Constitution and in its basic tenets like freedom of speech, secularism and equality. We hope that this platform will continue to evolve and will help us understand the challenges of our fast changing times better and our role in these times.

About us | Privacy Policy | Legal Disclaimer | Contact us | Advertise with us

Copyright © All Rights Reserved With

RaagDelhi: देश, समाज, संस्कृति और कला पर विचारों की संगत

Best viewed in 1366*768 screen resolution
Designed & Developed by Mediabharti Web Solutions