क्या दिल्ली, बंगलौर और हैदराबाद में भूगर्भीय जल खत्म होने वाला है?
क्या दिल्ली बंगलौर और हैदराबाद से सचमुच भूगर्भीय जल दो बरस के अंदर समाप्त हो जाएगा?
आज के इंडियन एक्सप्रेस में मुखपृष्ठ पर एक सकारात्मक खबर भी ऐसी है कि मन द्रवित हो जाता है। खबर ये है कि तेलंगाना के एक दूरदराज़ के आदिवासी गाँव में जब पीने के पानी का नल पहुंचा तो ग्रामवासियों ने उस नल का स्वागत माला पहना कर किया क्यूंकि कोठगुडम ज़िले में स्थित गोठिकोया गाँव के लोगों को अब तक पीने का पानी लेने एक किलोमीटर दूर जाना पड़ता था! तेलंगाना सरकार ने अगस्त 2016 में हर गाँव में पीने का पानी पहुंचाने की एक योजना चलाई जिसके तहत अब एक लाख किमी से कुछ ज़्यादा बड़ी पाइपलाइन बिछाई जा चुकी है और पूरा लक्ष्य अगले तीन महीने यानि मार्च 2019 तक पा लेने की योजना है।
तेलंगाना जैसे एक नव.गठित राज्य ने ये कर दिखाया ये प्रशंसनीय है लेकिन सबसे अच्छी ये बात है कि उनके इस कदम से अन्य राज्यों के लिए भी एक पैमाना तय हो गया है कि उन्हें भी जल्द से जल्द ऐसा करना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी की यह आलोचना होती है और शायद सही ही होती है कि वह हमेशा यही गाना गाते रहते हैं कि आज़ादी के सत्तर बरस में कुछ नहीं हुआ लेकिन अगर पीने के पानी की व्यवस्था की तरफ देखें तो सच में पिछली सरकारें चलाने वालों से भी ये पूछने का मन होता है कि ऐसा क्यूँ हुआ कि अगर आप सबके लिए रोटी कपड़ा मकान नहीं भी जुटा सकते थे तो कम से कम पीने के साफ पानी का इंतज़ाम करना ही चाहिए था।
अब देश में पीने के पानी की समस्या कितनी विकराल है इस पर ज़रा ध्यान दे लीजिये। वर्ल्ड बैंक के अनुसार भारत में समस्या की विकरालता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत में हो रही लगभग पाँचवाँ हिस्सा मौतें ऐसी बीमारियों से हो रही हैं जिनके मूल में स्वच्छ पेय जल की अनुपलब्धता ही है। ये लिंक देखिये http://wateraidindia.in/faq/drinking-water-problems-india/ वॉटर ऐड इंडिया के एक अनुमान के अनुसार देश में साढ़े सात करोड़ से भी ज़्यादा लोगों की स्वच्छ जल तक कोई पहुँच नहीं है और ये हालात सुधरने के आसार नहीं है बल्कि जनसंख्या के बढ्ने के साथ स्थिति की गंभीरता बढ्ने ही वाली है।
देश में नदियों की हालत हमने इतनी खराब कर दी है कि वो कहीं भी सुरक्षित जल स्रोत के रूप मे इस्तेमाल नहीं हो सकतीं और इसलिए देश में पेयजल का मुख्य स्रोत भूगर्भीय जल ही है। सबसे ज़्यादा चिंताजनक बात ये है कि देश के अधिकांश हिस्सों मे भूगर्भीय जल का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है और सरकार के नीति आयोग के अनुसार देश के 21 शहरों में लगभग दो वर्ष के अंदर ही भूगर्भीय जल पूरी तरह समाप्त हो सकता है। इन शहरों मे दिल्ली बंगलौर और हैदराबाद जैसे महानगर भी शामिल हैं! अब आप अनुमान लगा लीजिये कि ऐसा होने पर इन शहरों मे कैसा हाहाकार मचेगा और खासतौर पर यहाँ के उन लोगों की क्या हालत होगी जो पानी के लिए पूरी तरह भूगर्भीय जल पर ही निर्भर करते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने चार बरस पहले बहुत ही गाजेबाजे के साथ स्वच्छ भारत मिशन शुरू किया था जिसके तहत देश भर में शौचालय बनाए जा रहे हैं लेकिन अभियान के बारे में जो भी खबरें आ रही हैं उनमें ऐसी खबरों की संख्या काफी ज़्यादा है जो ये बताती हैं कि शौचालय बन तो रहे हैं किन्तु बहुत सारी जगहों पर पानी ना होने से उनका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा। आपके इस स्तंभकार को बहुत आश्चर्य होता है कि ऐसी कौनसी विवशताएँ रही होंगी जिनके चलते पूरे भारत में स्वच्छ पीने के पानी को उपलब्ध कराना अभियान का हिस्सा नहीं बनाया गया। यदि संसाधनों की उपलब्धता मुद्दा था तो उन्हीं संसाधनों को दोनों कार्यों के लिए इस्तेमाल करना चाहिए था चाहे सीमित समय में उनका कवरेज उतना व्यापक ना भी होता। 2019 में होने वाले आम चुनावों में किसानों की दुर्दशा तो मुख्य मुद्दा बन गई है और ऐसा होना भी चाहिए था लेकिन देखना है कि क्या कोई राजनीतिक दल स्वच्छ पीने का पानी उपलब्ध कराने के वादे को भी उतना महत्व देता है जितना कि उसे मिलना चाहिए?
स्तंभकार को अनुमान है कि जल से संबंधित और बहुत सारे सवाल हैं जो उठाए जाने चाहिए जैसे एक तो यही कि ऐसी स्थिति हुई क्यूँ और क्या जल के सवाल को अन्य प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल से अलग करके देखना उचित होगा इत्यादि लेकिन वैसे बुनियादी सवालों पर हमारी कोशिश होगी कि आने वाले दिनों में हम विशेषज्ञ राय ही आपके सामने रखें!
विद्या भूषण अरोरा