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शाम आती है, आती रहेगी
सुधीरेन्द्र शर्मा*
क्या यह समझना सही होगा कि हम दिनों को तो 'सेलिब्रेट' करते हैं लेकिन दिन के भीतर...
जागें जथा सपन भ्रम जाई
डॉ मधु कपूर*
पिछले कुछ समय से इस वेब-पत्रिका में हम विभिन्न दार्शनिक सिद्धांतों पर डॉ मधु कपूर के...
चाकू: हथियार या विचार – सलमान रुश्दी की नई किताब पर...
सुधीरेन्द्र शर्मा*
35 वर्ष पूर्व ईरान के धार्मिक और राजनीतिक नेता अयातुल्लाह ख़ुमैनी ने भारत में जन्मे ब्रिटिश...
द्विमुखी सत्य की संकल्पना
डॉ मधु कपूर*
आजकल पूरे विश्व में ‘उत्तर-सत्य काल’ या ‘Post-truth Era’ का बोलबाला है। ऐसे में...
‘ना’ कहने का साहस – बच्चों की समझदार कहानियाँ -3
राजेन्द्र भट्ट*
राजेन्द्र भट्ट के नए-नए साहित्यिक प्रयोगों की प्रयोगशाला यह वेबपत्रिका ही है। अभी कुछ...
अहसास दोस्ती का और एहसान रिश्तेदारी का – दोस्ती और रिश्तेदारी...
सुधीरेन्द्र शर्मा*
रिश्तेदारी का उद्गम कैसे और कब हुआ इस पर विचार करने से अच्छा तो यह है कि...
उर्वशी के बहाने – दिनकर का उनकी पचासवीं पुण्य-तिथि पर स्मरण
राजेन्द्र भट्ट*
‘जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध’ - रामधारी सिंह दिनकर की यह कालजयी चेतावनी...
काल की चपेट – दार्शनिक सिद्धांतों की व्याख्या-शृंखला का छठा लेख
डॉ मधु कपूर*
काल का व्यक्तित्व बहु आयामी है। हमारी हर क्रिया में काल...
क्या गुल खिलाएगी मतदाताओं की खामोशी !
राजकेश्वर सिंह*
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में हुआ फीका मतदान कुछ ज्यादा चौकाने वाला नहीं है। यह आशंका...